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वतन की उड़ान: इतिहास से सीखेंगे, भविष्य संवारेंगे - ओपन बुक प्रतियोगिता ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • अध्याय 7 : सूत्र 22

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    Vidyasagar.Guru

    अतः सल्लेखना का निरूपण करते हैं-

     

    मारणान्तिकीं सल्लेखनां जोषिता ॥२२॥

     

     

    अर्थ - मरण काल उपस्थित होने पर गृहस्थ को प्रीतिपूर्वक सल्लेखना करना चाहिए।

     

    English - At the end of one's duration of life, the householder votaries should make their body and internal passions emaciated by abandoning their sources gradually at the approach of death. This is called Sallekhana.

     

    विशेषार्थ - सम्यक् रीति से काय को और कषाय को क्षीण करने का नाम सल्लेखना है। जब मरणकाल उपस्थित हो तो गृहस्थ को सबसे मोह छोड़कर धीरे-धीरे खाना-पीना भी छोड़ देना चाहिए और इस तरह शरीर को कृश करने के साथ ही कषायों को भी कृश करना चाहिए तथा धर्म-ध्यान-पूर्वक मृत्यु का स्वागत करना चाहिए।

     

    शंका - इस तरह जान बूझकर मौत को बुलाना क्या आत्मवध नहीं कहा जायेगा ?

    समाधान - नहीं, जब मनुष्य या स्त्री रागवश या द्वेष वश जहर खाकर, कुँए में या नदी में डूबकर या फाँसी लगा कर अपना घात करते हैं, तब आत्मघात होता है। किन्तु सल्लेखना में यह बात नहीं है। जैसे, कोई व्यापारी नहीं चाहता कि जिस घर में बैठ कर वह सुबह से शाम तक धन संचय करना चाहता है, वह नष्ट हो जाये। यदि उसके घर में आग लग जाती है तो भरसक उसको बुझाने की चेष्टा करता है। किन्तु जब देखता है। कि घर को बचाना असम्भव है तो फिर घर की परवाह न करके धन को बचाने की कोशिश करता है। इसी तरह गृहस्थ भी जिस शरीर के द्वारा धर्म को साधता है, उसका नाश नहीं चाहता। और यदि उसके नाश के कारण रोग आदि उसे सताते हैं तो अपने धर्म के अनुकूल साधनों से उन रोग आदि को दूर करने की भरसक चेष्टा करता है। किन्तु जब कोई उपाय कारगर होता नहीं दिखायी देता और मृत्यु के स्पष्ट लक्षण दिखायी देते हैं, तब वह शरीर की पर्वाह न करके अपने धर्म की रक्षा करता है। ऐसी स्थिति में सल्लेखना को आत्मवध कैसे कहा जा सकता है ?


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