अब व्रती का स्वरूप कहते हैं-
नि:शल्यो व्रती ॥१८॥
अर्थ - जो शल्य रहित हो उसे व्रती कहते हैं।
English - Anybody free from deceitfulness, non-belief in realities and desire in worldly pleasures is the votary.
विशेषार्थ - शरीर में घुसकर तकलीफ देने वाले कील काँटे आदि को शल्य कहते हैं। जैसे कील काँटा कष्ट देता है, वैसे ही कर्म के उदय से होने वाला विकार भी जीव को कष्टदायक है, इसलिए उसे शल्य नाम दिया है। शल्य तीन प्रकार का है- माया, मिथ्यात्व और निदान। मायाचार या धूर्तता को माया कहते हैं। मिथ्या तत्त्वों का श्रद्धान करना, कुदेवों को पूजना मिथ्यात्व है। और विषयभोग की चाह को निदान कहते हैं। जो इन तीनों शल्यों को हृदय से निकाल कर व्रतों का पालन करता है, वही व्रती है। किन्तु जो दुनिया को ठगने के लिए व्रत लेता है, या व्रत लेकर यह सोचता रहता है कि व्रत धारण करने से मुझे भोगने के लिए अच्छी अच्छी देवांगनाएँ मिलेंगी, या जो व्रत लेकर भी मिथ्यात्व में पड़ा है, वह कभी भी व्रती नहीं हो सकता।