इसके सिवा अन्य भावनाएँ भी बताते हैं-
मैत्रीप्रमोदकारुण्यमाध्यस्थानि च सत्त्वगुणाधिक क्लिश्यमानाविनयेषु ॥११॥
अर्थ - समस्त प्राणियों में ऐसी (मैत्री) भावना रखना चाहिए कि किसी भी प्राणी को दुःख न हो। गुणवान पुरुषों को देखकर हर्षित होना चाहिए और अपनी भक्ति प्रकट करना चाहिए। दु:खी प्राणियों को देखकर उनका दु:ख दूर करने का प्रयत्न करना चाहिए और जो उद्धत लोग हैं, उनमें माध्यस्थ भाव रखना चाहिए। ऐसा करने से अहिंसा आदि व्रत परिपूर्ण होते हैं।
English - Benevolence towards all living beings, joy at the sight of the virtuous, compassion and sympathy for the afflicted, and tolerance towards the insolent and ill-behaved are the right sentiments.