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नव आचार्य श्री समय सागर जी को करें भावंजली अर्पित ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • अध्याय 6 : सूत्र 8

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    Vidyasagar.Guru

    अब जीवाधिकरण के भेद कहते हैं-

     

    आद्यं संरम्भसमारम्भारम्भयोगकृतकारितानुमतकषायविशेषैस्त्रिस्त्रिस्त्रिश्चतुश्चैकशः ॥८॥

     

     

    अर्थ - संरम्भ-समारम्भ-आरम्भ ये तीन, मन-वचन-काय ये तीन, कृत- कारित-अनुमोदन ये तीन, क्रोध, मान, माया और लोभ ये चार, इन सबको परस्पर में गुणा करने से प्रथम जीवाधिकरण के एक सौ आठ भेद होते हैं।

     

    English - The substratum of the living is of 108 kinds made up of three stages (try to do, make arrangements and start to do) multiplied by three yoga (mind, speech and body) multiplied by three ways (do, get it done or approve others do) multiplied by four passions (anger, pride, deceitfulness and greed). 

     

    विशेषार्थ - प्रमादी होकर हिंसा वगैरह करने का विचार करना संरम्भ है। हिंसा वगैरह की साधन सामग्री जुटाना समारम्भ है। हिंसा वगैरह करना आरंभ है। स्वयं करना कृत है। दूसरे से कराना कारित है। कोई करता हो तो उसकी सराहना करना अनुमोदना है। इसमें मूल वस्तु संरम्भ, समारम्भ और आरम्भ है। इन तीनों में से प्रत्येक के काय, वचन और मन के भेद से तीन तीन प्रकार हैं। इन तीन तीन प्रकारों में से भी प्रत्येक भेद के कृत, कारित और अनुमोदना की अपेक्षा से तीन तीन भेद हैं। इस प्रकार संरम्भ, समारम्भ और आरम्भ के नौ नौ प्रकार हुए। इन नौ नौ प्रकारों में से भी प्रत्येक प्रकार चार कषायों की अपेक्षा से चार चार प्रकार का होता है। अतः प्रत्येक के ३६,३६ भेद होने से तीनों के मिल कर १०८ भेद होते हैं। ये ही जीवाधिकरण के भेद हैं।


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