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नव आचार्य श्री समय सागर जी को करें भावंजली अर्पित ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • अध्याय 6 : सूत्र 6

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    Vidyasagar.Guru

    सब संसारी जीवों में योग की समानता होते हुए भी आस्रव में भेद होने का हेतु बतलाते हैं-

     

    तीव्रमन्दज्ञाताज्ञातभावाधिकरणवीर्यविशेषेभ्यस्तद्विशेषः ॥६॥

     

     

    अर्थ - तीव्रभाव, मन्दभाव, ज्ञातभाव, अज्ञातभाव, अधिकरण और वीर्य, इनकी विशेषता से आस्रव में भेद हो जाता है।

     

    English - Influx is differentiated on the basis of intensity or feebleness of thought-activity, intentional or unintentional nature of the action, the substratum and its peculiar potency.

     

    विशेषार्थ - क्रोधादि कषायों की तीव्रता को तीव्रभाव कहते हैं। कषायों की मन्दता को मन्दभाव कहते हैं। अमुक प्राणी को मारना चाहिए, ऐसा संकल्प करके उसे मारना ज्ञातभाव है। अथवा प्राणी का घात हो जाने पर यह ज्ञान होना कि मैंने इसे मार दिया, यह भी ज्ञातभाव है। मद से या प्रमाद से बिना जाने ही किसी का घात हो जाना अज्ञात भाव है। आस्रव के आधार द्रव्य को अधिकरण कहते हैं। और द्रव्य की शक्ति विशेष को वीर्य कहते हैं। इनके भेद से आस्रव में अन्तर पड़ जाता है। ये जहाँ जैसे होते हैं, वैसा ही आस्रव भी होता है।


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