Jump to content
मूकमाटी प्रश्न प्रतियोगिता प्रारंभ ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • अध्याय 6 : सूत्र 4

       (0 reviews)

    Vidyasagar.Guru

    आगे स्वामी की अपेक्षा आस्रव के भेद कहते हैं-

     

    सकषायाकषाययोः साम्परायिकेर्यापथयोः ॥४॥

     

     

    अर्थ - कषाय सहित जीवों के साम्परायिक आस्रव होता है। और कषाय रहित जीवों के ईर्यापथ आस्रव होता है।

     

    English - There are two kinds of influx, namely samparayik influx caused to persons with passions, which extends transmigration, and iryapath influx caused to persons free from passions, which prevents or shortens transmigration.

     

    विशेषार्थ - स्वामी के भेद से आस्रव में भेद है। आस्रव के स्वामी दो हैं- एक सकषाय जीव, दूसरे कषाय रहित जीव। जैसे वट आदि वृक्षों की कषाय यानि गोंद वगैरह चिपकाने में कारण होती है, उसी तरह क्रोध आदि भी आत्मा से कर्मों को चिपटा देते हैं, इसलिए उन्हें कषाय कहते हैं। तथा जो आस्रव संसार का कारण होता है, उसे साम्परायिक आस्रव कहते हैं और जो आस्रव केवल योग से ही होता है, उसे ईर्यापथ आस्रव कहते हैं। इस ईर्यापथ आस्रव के द्वारा जो कर्म आते हैं, उनमें एक समय की भी स्थिति नहीं पड़ती; क्योंकि कषाय के न होने से कर्म जैसे ही आते हैं, वैसे ही चले जाते हैं। इसी से कषाय सहित जीवों के जो आस्रव होता है; उसका नाम साम्परायिक है; क्योंकि वह संसार का कारण है। और कषाय रहित जीवों के अर्थात् ग्यारहवें गुणस्थान से लेकर तेरहवें गुणस्थान तक जो आस्रव होता है, वह केवल योग से ही होता है, इसलिए उसे ईर्यापथ आस्रव कहते हैं।


    User Feedback

    Create an account or sign in to leave a review

    You need to be a member in order to leave a review

    Create an account

    Sign up for a new account in our community. It's easy!

    Register a new account

    Sign in

    Already have an account? Sign in here.

    Sign In Now

    There are no reviews to display.


×
×
  • Create New...