आगे स्वामी की अपेक्षा आस्रव के भेद कहते हैं-
सकषायाकषाययोः साम्परायिकेर्यापथयोः ॥४॥
अर्थ - कषाय सहित जीवों के साम्परायिक आस्रव होता है। और कषाय रहित जीवों के ईर्यापथ आस्रव होता है।
English - There are two kinds of influx, namely samparayik influx caused to persons with passions, which extends transmigration, and iryapath influx caused to persons free from passions, which prevents or shortens transmigration.
विशेषार्थ - स्वामी के भेद से आस्रव में भेद है। आस्रव के स्वामी दो हैं- एक सकषाय जीव, दूसरे कषाय रहित जीव। जैसे वट आदि वृक्षों की कषाय यानि गोंद वगैरह चिपकाने में कारण होती है, उसी तरह क्रोध आदि भी आत्मा से कर्मों को चिपटा देते हैं, इसलिए उन्हें कषाय कहते हैं। तथा जो आस्रव संसार का कारण होता है, उसे साम्परायिक आस्रव कहते हैं और जो आस्रव केवल योग से ही होता है, उसे ईर्यापथ आस्रव कहते हैं। इस ईर्यापथ आस्रव के द्वारा जो कर्म आते हैं, उनमें एक समय की भी स्थिति नहीं पड़ती; क्योंकि कषाय के न होने से कर्म जैसे ही आते हैं, वैसे ही चले जाते हैं। इसी से कषाय सहित जीवों के जो आस्रव होता है; उसका नाम साम्परायिक है; क्योंकि वह संसार का कारण है। और कषाय रहित जीवों के अर्थात् ग्यारहवें गुणस्थान से लेकर तेरहवें गुणस्थान तक जो आस्रव होता है, वह केवल योग से ही होता है, इसलिए उसे ईर्यापथ आस्रव कहते हैं।