योग के द्वारा जो कर्म आता है, वह कर्म दो प्रकार का है-पुण्य कर्म और पाप कर्म। अतः अब यह बताते हैं कि किस योग से किस कर्म का आस्रव होता है |
शुभः पुण्यस्याशुभः पापस्य ॥३॥
अर्थ - शुभ योग से पुण्य कर्म का आस्रव होता है और अशुभ योग से पाप कर्म का आस्रव होता है।
English - Influx is of two types-the good and the evil caused by virtuous and wicked yoga respectively. The influx of good karmas helps purify the soul while the influx of evil karmas takes the soul away from its purification.
विशेषार्थ - किसी के प्राणों का घात करना, चोरी करना, मैथुन सेवन करना आदि अशुभ काय योग है। झूठ बोलना, कठोर असभ्य वचन बोलना आदि अशुभ वचन योग है। किसी के मारने का विचार करना, किसी से ईर्ष्या रखना आदि अशुभ मनोयोग है। इनसे पाप-कर्म का आस्रव होता है। तथा प्राणियों की रक्षा करना, हित मित वचन बोलना, दूसरों का भला सोचना आदि शुभ योग है। इनसे पुण्य-कर्म का आस्रव होता है।
शंका - योग शुभ अशुभ कैसे होता है?
समाधान - शुभ परिणाम से होने वाला योग शुभ है और अशुभ परिणाम से होने वाला योग अशुभ है।
शंका - जो शुभ कर्मों का कारण है, वह शुभ योग है और जो पाप कर्मों के आगमन में कारण है, वह अशुभ योग है। यदि ऐसा लक्षण किया जाय तो क्या हानि है?
समाधान - यदि ऐसा लक्षण किया जायेगा तो शुभ योग का अभाव ही हो जायेगा; क्योंकि आगम में लिखा है कि जीव के आयुकर्म के सिवा शेष सात कर्मों का आस्रव सदा होता रहता है। अतः शुभ योग से भी ज्ञानावरण आदि पाप कर्मों का बन्ध होता है। इसलिए ऊपर का लक्षण ही ठीक है।
शंका-जब शुभयोग से भी घाति कर्मों का बन्ध होता है, तो सूत्रकार ने ऐसा क्यों कहा कि शुभ योग से पुण्य कर्म का बन्ध होता है?
समाधान - यह कथन घाति कर्मों की अपेक्षा से नहीं है। किन्तु अघाति कर्मों की अपेक्षा से है। अघातिया कर्म के दो भेद हैं- पुण्य और पाप। सो उनमें से शुभयोग से पुण्यकर्म का आस्रव होता है और अशुभ योग से पापकर्म का आस्रव होता है। शुभ योग के होते हुए भी घातिया कर्मों का अस्तित्व रहता है, उनका उदय भी होता है, उसी से घातिया कर्मों का बन्ध होता है।