सातावेदनीय कर्म के आस्रव के कारण कहते हैं-
भूतव्रत्यनुकम्पादानसरागसंयमादियोगः क्षान्तिः शौचमिति सद्भेद्यस्य ॥१२॥
अर्थ - प्राणियों पर और व्रती पुरुषों पर दया करना यानि उनकी पीड़ा को अपनी पीड़ा समझना, दूसरों के कल्याण की भावना से दान देना, राग सहित संयम का पालना, आदि शब्द से संयमासंयम, (एकदेश संयम का पालना), अकाम निर्जरा (अपनी इच्छा न होते हुए भी परवश होकर जो कष्ट उठाना पड़े, उसे शान्ति के साथ सहन करना), बालतप (आत्मज्ञान रहित तपस्या करना), इनको मनोयोग पूर्वक करना, क्षान्ति (क्षमा भाव रखना), शौच (सब प्रकार के लोभ को छोड़ना) इस प्रकार के कामों से सातावेदनीय कर्म का आस्रव होता है। यहाँ इतना विशेष जानना कि यद्यपि प्राणियों में व्रती भी आ जाते हैं फिर भी जो व्रतियों का अलग ग्रहण किया है, सो उनकी ओर विशेष लक्ष्य दिलाने के उद्देश्य से किया है।
English - Compassion towards living beings in general and the devout in particular, charity, asceticism with attachment, restraint-cum-non-restraint, involuntary dissociation of karmas without effort, austerities not based on right knowledge, contemplation, equanimity, freedom from greed_these lead to the influx of karmas that cause pleasant feeling.