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नव आचार्य श्री समय सागर जी को करें भावंजली अर्पित ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • अध्याय 5 : सूत्र 4

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    Vidyasagar.Guru

    अब इन द्रव्यों के बारे में विशेष कथन करते हैं-

     

    नित्यावस्थितान्यरूपाणि ॥४॥

     

     

    अर्थ - ये ऊपर कहे द्रव्य नित्य हैं, अवस्थित हैं और अरूपी हैं।

     

    English - These six substances are eternal, non-destructible, fixed in number (i.e. six) and, except for matter, are formless.

     

    विशेषार्थ - प्रत्येक द्रव्य में दो प्रकार के गुण पाये जाते हैं - विशेष और सामान्य। जैसे धर्म द्रव्य का विशेष गुण तो गति में सहायक होना है। और सामान्य गुण अस्तित्व है। इसी तरह सब द्रव्यों में सामान्य और विशेष गुण पाये जाते हैं। कभी भी द्रव्यों के इन गुणों का नाश नहीं होता। जिस द्रव्य का जो स्वभाव है, वह स्वभाव सदा रहता है। अतः सभी द्रव्य नित्य हैं। तथा इनकी संख्या भी निश्चित है। न तो ये छह से बढ़कर सात होते हैं और न कभी छह से घटकर पाँच होते हैं, सदा छह के छह ही रहते हैं। इससे इन्हें अवस्थित कहा है। तथा (पुद्गल को छोड़कर) इनमें रूप, रस, वगैरह नहीं पाया जाता। इसलिए ये अरूपी अर्थात् अमूर्तिक हैं।


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