आगे नित्य का स्वरूप बतलाते हैं-
तभावाव्ययं नित्यम् ॥३१॥
अर्थ - वस्तु के स्वभाव को तद्भाव कहते हैं और उसका नाश न होना नित्यता है।
English - Permanence is indestructibility of the essential nature (quality) of the substance.
विशेषार्थ - यद्यपि प्रत्येक वस्तु परिवर्तनशील है, किन्तु परिवर्तन के होते हुए भी वस्तु में कुछ ऐसी एकरूपता बनी रहती है, जिसके कारण हम उसे कालान्तर में भी पहचान लेते हैं कि यह वही वस्तु है, जिसे हमने पहले देखा था। उस एकरूपता का नाम ही नित्यता है।
आशय यह है कि जैनधर्म में प्रत्येक वस्तु को जब प्रतिसमय परिवर्तनशील बतलाया तो यह प्रश्न पैदा हुआ कि जब प्रत्येक वस्तु परिवर्तनशील है तो नित्य कैसे है ? इसका समाधान करने के लिए सूत्रकार ने बतलाया कि नित्य का मतलब यह नहीं है कि जो वस्तु जिस रूप में है, वह सदा उसी रूप में बनी रहे और उसमें (मूलस्वभाव में) कुछ भी परिणमन न हो। बल्कि परिणमन के होते हुए भी उसमें (मूलस्वभाव में) ऐसी एकरूपता का बना रहना ही नित्यता है, जिसे देखकर हम तुरन्त पहचान लें कि यह वही वस्तु है, जिसे पहले देखा था। उक्त कथन का यह अभिप्राय हुआ कि वस्तु नित्य भी है और अनित्य भी है। ऐसी स्थिति में यह शंका होती है कि जो नित्य है, वह अनित्य कैसे है?
इसके समाधान के लिए आगे का सूत्र कहते हैं-