इस शंका के समाधान के लिए आगे का सूत्र कहते हैं-
भेदसाताभ्यां चाक्षुषः ॥२८॥
अर्थ - भेद और संघात दोनों से स्कन्ध चक्षु इन्द्रिय का विषय होता नयापीठ।
English - The stock produced by the combined action of division (fission) and union (fusion) can be perceived by the eyes.
विशेषार्थ - आशय यह है कि अनन्त परमाणुओं का स्कन्ध होने से ही कोई स्कन्ध चक्षु इन्द्रिय के द्वारा देखने योग्य नहीं हो जाता। किन्तु उनमें भी कोई दिखाई देने योग्य होता है और कोई दिखाई देने योग्य नहीं होता। ऐसी स्थिति में यह प्रश्न पैदा होता है कि जो स्कन्ध अदृश्य है, वह दृश्य कैसे हो सकता है ?
उसके समाधान के लिए एक सूत्र कहा गया है, जो बतलाता है कि केवल भेद से ही कोई स्कन्ध चक्षु इन्द्रिय से देखने योग्य नहीं हो जाता, किन्तु भेद और संघात दोनों से ही होता है। जैसे, एक सूक्ष्म स्कन्ध है। वह टूट जाता है। टूटने से उसके दो टुकड़े हो जाने पर भी वह सूक्ष्म ही बना रहता है और इस तरह वह चक्षु इन्द्रिय के द्वारा नहीं देखा जा सकता। किन्तु जब वह सूक्ष्म स्कन्ध दूसरे स्कन्ध में मिलकर अपने सूक्ष्मपने को छोड़ देता है और स्थूल रूप धारण कर लेता है तो चक्षु इन्द्रिय का विषय होने लगता है - उसे आँख से देखा जा सकता है।