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नव आचार्य श्री समय सागर जी को करें भावंजली अर्पित ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • अध्याय 5 : सूत्र 24

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    Vidyasagar.Guru

    आगे पुद्गल द्रव्य की पर्याय बतलाते हैं-

     

    शब्दबन्धसौक्ष्म्यस्थौल्यसंस्थानभेदतमश्छायातपोद्योतवन्तश्च ॥२४॥

     

     

    अर्थ - शब्द, बन्ध, सूक्ष्मपना, स्थूलपना, संस्थान, भेद, तम, छाया, आतप और उद्योत ये सब पुद्गल की ही पर्याय हैं।

     

    English - Sound, union, fineness, grossness, shape, division, darkness, image, warm light (sunshine) and cool light (moon-light) also characterize the forms of matter.

     

    विशेषार्थ - शब्द दो प्रकार का है - भाषा रूप और अभाषा रूप। भाषा रूप शब्द भी दो प्रकार का है - अक्षर रूप और अनक्षर रूप। मनुष्यों के व्यवहार में आने वाली अनेक बोलियाँ अक्षर रूप भाषात्मक शब्द हैं। और पशु-पक्षियों वगैरह की टें-टें में-में अनक्षर रूप भाषात्मक शब्द हैं। अ-भाषा रूप शब्द दो प्रकार का है-एक जो पुरुष के प्रयत्न से पैदा होता है, उसे प्रायोगिक कहते हैं। और जो बिना पुरुष के प्रयत्न के मेघ आदि की गर्जना से होता है, उसे स्वाभाविक कहते हैं। प्रायोगिक के भी चार भेद हैं चमड़े को मढ़कर ढोल नगारे वगैरह का जो शब्द होता है, वह तत है। सितार वगैरह के शब्द को वितत कहते हैं। घण्टा वगैरह के शब्द को घन कहते हैं। बाँसुरी, शंख वगैरह के शब्द को सुषिर कहते हैं। ये सब शब्द के भेद हैं।

     

    बन्ध भी दो प्रकार का है - वैस्रसिक और प्रायोगिक जो बन्ध बिना पुरुष के प्रयत्न के स्वयं होता है, उसे वैस्रसिक कहते हैं। जैसे पुद्गलों के स्निग्ध और रूक्ष गुण के निमित्त से स्वयं ही बादल, बिजली और इन्द्रधनुष वगैरह बन जाते हैं। पुरुष के प्रयत्न से होने वाला बन्ध प्रायोगिक है। उसके भी दो भेद हैं- एक अजीव का बन्ध, जैसे लकड़ी और लाख का बन्ध। दूसरा जीव और अजीव का बन्ध, जैसे आत्मा से कर्म और नोकर्म का बन्ध।सूक्ष्मपना दो प्रकार का है - एक सबसे सूक्ष्म, जैसे परमाणु। दूसरा आपेक्षिक सूक्ष्म, जैसे बेल से सूक्ष्म आँवला और आँवले से सूक्ष्म बेर। स्थूलपना भी दो प्रकार का है - एक सबसे अधिक स्थूल- जैसे समस्त जगत् में व्याप्त महा स्कन्ध। दूसरा आपेक्षिक स्थूल-जैसे बेर से स्थूल आँवला और आँवला से स्थूल बेल। संस्थान यानि आकार भी दो तरह का है-गोल, चौकोर, लम्बा, चौड़ा आदि आकारों को ‘इत्थं लक्षण' कहते हैं- क्योंकि उन्हें कहा जा सकता है। और जिस आकार को कह सकना शक्य न हो, जैसे बादलों में अनेक प्रकार के आकार बनते बिगड़ते रहते हैं, उन्हें ‘अनित्थं लक्षण कहते हैं। भेद छह प्रकार का है-आरा से लकड़ी चीरने पर जो बुरादा निकलता है, उसका नाम उत्कर है। जौ, गेहूँ के आटे को चूर्ण कहते हैं। घड़े के ठिकरों को खण्ड कहते हैं। उड़द, मूंग वगैरह की दाल के छिलकों को चूर्णिका कहते हैं। मेघ वगैरह के पटल का नाम प्रतर है। लोहे को गर्म करके पीटने पर जो फुलिंगे निकलते हैं, उन्हें अणु-चटन कहते हैं। ये सब भेद यानि टुकड़ों के प्रकार हैं। तम अन्धकार का नाम है। छाया दो प्रकार की होती है-एक तो जिस वस्तु की छाया हो, उसका रूप रंग ज्यों का त्यों उसमें आ जाये, जैसे दर्पण में मुख का रूप रंग वगैरह ज्यों का त्यों आ जाता है। दूसरे प्रतिबिम्ब मात्र, जैसे धूप में खड़े होने से छाया मात्र पड़ जाती है। सूर्य के प्रकाश को आतप या घाम कहते हैं। चन्द्रमा वगैरह के शीतल प्रकाश को उद्योत कहते हैं। ये सब पुद्गल की ही पर्यायें हैं।


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