अब प्रत्येक द्रव्य का कार्य बतलाते हैं-
गतिस्थित्युपग्रहौ धर्माधर्मयोरुपकारः ॥१७॥
अर्थ - जीव और पुद्गल की गति रूप उपकार धर्म द्रव्य करता है। और स्थिति रूप उपकार अधर्म द्रव्य करता है।
English - The functions of the media of motion and rest are to assist motion and rest respectively of the soul and the matter.
विशेषार्थ - जीव और पुद्गल द्रव्य एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाते आते हैं। यह गमन करने की शक्ति तो जीव और पुद्गलों में ही है। अतः गमन करने में अन्तरंग कारण तो वे स्वयं ही हैं। किन्तु बाह्य सहायक के बिना कोई कार्य नहीं होता। अतः बाह्य सहायक धर्म द्रव्य है। किन्तु यदि कोई जीव या पुद्गल गमन नहीं करता हो तो उसे धर्मद्रव्य चलने की प्रेरणा नहीं करता। जैसे मछली में गमन करने की शक्ति तो स्वयं ही है, परन्तु बाह्य सहायक जल है। किन्तु यदि मछली न चले तो जल उसे जबरन नहीं चलाता है। फिर भी जल के बिना मछली गमन नहीं कर सकती, अतः उसके गमन करने में जल सहायक है। ऐसे ही अधर्म द्रव्य चलते हुए जीव पुद्गलों को ठहरने में सहकारी कारण है। जैसे ग्रीष्म ऋतु में गमन करते हुए पथिकों को ठहरने में वृक्ष की छाया सहायक है। परन्तु वह अधर्मद्रव्य या छाया जबरन किसी को नहीं ठहराता है।
शंका - भूमि, जल वगैरह ही गति वगैरह में सहायक देखे जाते हैं, फिर धर्म और अधर्म द्रव्य को मानने की क्या आवश्यकता है ?
समाधान - भूमि, जल वगैरह तो किसी-किसी के ही चलने या ठहरने में सहायक हैं। किन्तु धर्म और अधर्म द्रव्य तो सभी जीव और पुद्गलों की गति और स्थिति में साधारण सहायक हैं। फिर एक कार्य की उत्पत्ति में अनेक कारण भी अवश्य होते हैं। अतः ऊपर की शंका ठीक नहीं है।