धर्मादिक द्रव्य कहाँ रहते हैं, सो बतलाते हैं-
लोकाकाशेऽवगाहः ॥१२॥
अर्थ - धर्म आदि द्रव्य लोकाकाश में रहते हैं। आशय यह है कि आकाश तो सर्वत्र है। उसके बीच के जितने भाग में धर्म आदि छहों द्रव्य पाये जाते हैं, उतने भाग को लोकाकाश कहते हैं। और उसके बाहर सब ओर जो आकाश है, उसे अलोकाकाश कहते हैं। धर्मादि द्रव्य लोकाकाश में ही पाये जाते हैं, बाहर नहीं।
English - These substances_the media of motion and rest, the time, the souls and the matter are located in the space of the universe. The space outside the universe has no substance other than space.
शंका - यदि धर्मादि द्रव्यों का आधार लोकाकाश है, तो आकाश का आधार क्या है ?
समाधान - आकाश का आधार अन्य कोई नहीं है, वह अपने ही आधार है।
शंका - यदि आकाश अपने आधार है तो धर्मादि द्रव्यों को भी अपने ही आधार होना चाहिए। और यदि धर्मादि द्रव्यों का आधार कोई अन्य द्रव्य है तो आकाश का भी दूसरा आधार होना चाहिए ?
समाधान - आकाश से बड़ा कोई द्रव्य नहीं है, जिसके आधार आकाश रह सके। आकाश तो सब ओर अनन्त है-उसका कहीं अन्त ही नहीं है। तथा निश्चयनय से सभी द्रव्य अपने आधार हैं-कोई द्रव्य किसी दूसरे द्रव्य के आधार नहीं है। किन्तु व्यवहारनय से धर्मादि द्रव्यों का आधार आकाश को कहा जाता है, क्योंकि धर्मादि द्रव्य लोकाकाश से बाहर नहीं पाये जाते।
शंका - लोक में जो पूर्वोत्तरकाल-भावी होते हैं, उन्हीं में आधारआधेयपना देखा जाता है। जैसे मकान पहले बन जाता है तो पीछे उसमें मनुष्य आकर बसते हैं। किन्तु इस तरह आकाश पहले से है और धर्मादि द्रव्य उसमें बाद को आये हैं, ऐसी बात तो आप मानते नहीं। ऐसी स्थिति में व्यवहारनय से भी आधार-आधेयपना नहीं बन सकता ?
समाधान - आपकी आपत्ति ठीक नहीं है। जो एक साथ होते हैं, उनमें भी आधार-आधेयपना देखा जाता है। जैसे शरीर और हाथ एक साथ ही बनते हैं फिर भी ‘शरीर में हाथ है' ऐसा कहा जाता है। इसी तरह यद्यपि सभी द्रव्य अनादि हैं फिर भी ‘आकाश में धर्मादि द्रव्य हैं' ऐसा व्यवहार होने में कोई दोष नहीं है।