शेष स्वर्गों के देवों के विषय में कहते हैं-
शेषाः स्पर्शरूपशब्दमन: प्रवीचाराः॥८॥
अर्थ - शेष स्वर्गों के देव स्पर्श, रूप, शब्द और मन से ही मैथुनसेवन करते हैं।
English - The Heavenly beings in the next fourteen Heavens derive pleasure of sex by touch, sight, sound and thought of celestial beings of the opposite sex.
अर्थात् सानत्कुमार और माहेन्द्र स्वर्ग के देव अपनी-अपनी देवियों के आलिंगन मात्र से ही परम सन्तुष्ट हो जाते हैं। यही बात देवियों की भी है। ब्रह्म, ब्रह्मोत्तर, लांतव और कापिष्ठ स्वर्ग के देव अपनी-अपनी देवियों के सुन्दर रूप, श्रृंगार, विलास वगैरह के देखने मात्र से ही सन्तुष्ट हो जाते हैं। शुक्र, महाशुक्र, शतार और सहस्रार स्वर्ग के देव अपनीअपनी देवियों के मधुर गीत, कोमल हास्य, मीठे वचन तथा आभूषणों का शब्द सुनने से ही तृप्त हो जाते हैं। आनत, प्राणत, आरण और अच्युत स्वर्ग के देव अपनी-अपनी देवियों का मन में चिन्तन कर लेने से ही शान्त हो जाते हैं।