जो देव मनुष्य के दो भव धारण करके मोक्ष जाते हैं, उन्हें बतलाते हैं-
विजयादिषु द्विचरमाः ॥२६॥
अर्थ - यहाँ आदि शब्द प्रकार वाची है। अतः जो देव अहमिन्द्र होने के साथ-साथ जन्म से सम्यग्दृष्टि ही होते हैं, उनका यहाँ आदि शब्द से ग्रहण किया है। इसलिए विजय, वैजयन्त, जयन्त, अपराजित और नौ अनुदिश विमानों के अहमिन्द्र देव मनुष्य के दो भव लेकर मोक्ष जाते हैं। अर्थात् विजयादिक से चयकर मनुष्य होते हैं। फिर संयम धारण करके पुनः विजय आदि में जन्म लेते हैं। फिर वहाँ से चयकर मनुष्य हो, मोक्ष प्राप्त करते हैं। इस तरह वे ‘द्विचरम' कहे जाते हैं। क्योंकि मनुष्यभव से ही मोक्ष मिलता है, इसलिए मनुष्यभव को चरमदेह कहते हैं और जो दो बार चरमदेह को धारण करते हैं, वे द्विचरम कहे जाते हैं।
English - Ahmindras in Vijaya, Vaijayanta, Jayanta, and Aparajita take two births as humans before attaining liberation while those in Sarvarthasiddhi take one birth as humans before attaining liberation.
विशेषार्थ - यहाँ इतना विशेष जानना कि अनुदिश तथा चार अनुत्तरों के देव एक भव धारण करके भी मोक्ष जा सकते हैं। यहाँ अधिक से अधिक दो भव बतलाये हैं, इसी से सर्वार्थसिद्धि का ग्रहण यहाँ नहीं किया; क्योंकि सर्वार्थसिद्धि के देव अत्यन्त उत्कृष्ट होते हैं। इसी से उनके विमान का नाम सर्वार्थसिद्धि सार्थक है। वे एक ही भव धारण करके मोक्ष जाते हैं। त्रिलोकसार में लिखा है कि सर्वार्थसिद्धि के देव, लौकान्तिक देव, सब दक्षिणेन्द्र, सौधर्म स्वर्ग के लोकपाल, इन्द्राणी शचि, ये सब एक मनुष्यभव धारण करके मोक्ष पा जाते हैं।