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नव आचार्य श्री समय सागर जी को करें भावंजली अर्पित ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • अध्याय 2 : सूत्र 25

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    Vidyasagar.Guru

    विग्रहगतौ कर्मयोगः ॥२५॥

     

     

    अर्थ - 'विग्रह' शब्द के दो अर्थ हैं। विग्रह अर्थात् शरीर, शरीर के लिए गमन करने को विग्रहगति कहते हैं।

     

    English - In transit from one body to another, there is the vibration of the karmic body only.

     

    अथवा विरुद्ध ग्रहण करने को विग्रहगति कहते हैं। इसका आशय यह है कि संसारी जीव हमेशा कर्म और नोकर्म को ग्रहण करता रहता है, किन्तु विग्रहगति में कर्म पुद्गलों का तो ग्रहण होता है, नोकर्म पुद्गलों का ग्रहण नहीं होता। इसलिए उसको विरुद्ध ग्रहण कहा है और विरुद्ध ग्रहण पूर्वक जो गमन होता है, उसे विग्रहगति कहते हैं तथा कार्मण शरीर को कर्म कहते हैं; उस कार्मण शरीर के द्वारा जो आत्मा के प्रदेशों में कम्पन होता है, उसको कर्मयोग कहते हैं।

     

    अतः सूत्र का अर्थ हुआ - विग्रहगति में कर्मयोग होता है। उस कर्मयोग के द्वारा ही जीव नवीन कर्मों को ग्रहण करता है तथा मृत्यु स्थान से अपने जन्म लेने के नये स्थान तक जाता है।


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