अब अवधिज्ञान का विषय बतलाते हैं-
रूपिष्ववधेः॥२७॥
अर्थ - अवधिज्ञान के विषय का नियम रूपी पदार्थों में है।
English - (The scope) of clairvoyance is that which has form.
यहाँ पूर्व सूत्र से ‘असर्वपर्यायेषु' पद ले लेना चाहिए। तथा ‘रूपी' शब्द से पुद्गल द्रव्य लेना चाहिए, क्योंकि एक पुद्गल द्रव्य ही वास्तव में रूपी है। अतः अवधिज्ञान पुद्गल द्रव्य की कुछ पर्यायों को जानता है। इतना विशेष है कि पुद्गल द्रव्य से सम्बद्ध जीव द्रव्य की भी कुछ पर्यायों को जानता है; क्योंकि संसारी जीव कर्मों से बँधा होने से मूर्तिक जैसा ही हो रहा है। किन्तु मुक्त जीव को तथा अन्य अमूर्तिक द्रव्यों को अवधिज्ञान नहीं जानता। वह तो अपने योग्य सूक्ष्म अथवा स्थूल पुद्गल द्रव्य की त्रिकालवर्ती कुछ पर्यायों को ही जानता है।