आगे अवधिज्ञान और मन:पर्यय ज्ञान में विशेषता बतलाते हैं-
विशुद्धि-क्षेत्र-स्वामि-विषयेभ्योऽवधि
मन:पर्यययोः॥२५॥
अर्थ - अवधिज्ञान और मनःपर्ययज्ञान में विशुद्धि, क्षेत्र, स्वामी और विषय की अपेक्षा से अन्तर है।
English - Telepathy (manah paryaha) and clairvoyance (avadhi) differ with regard to purity, space, knower, and objects.
विशेषार्थ - इसका खुलासा इस प्रकार है - अवधिज्ञान जिस रूपी द्रव्य को जानता है, उसके अनन्तवें भाग सूक्ष्म रूपी द्रव्य को मनःपर्यय ज्ञान जानता है। अतः अवधिज्ञान से मन:पर्यय ज्ञान विशुद्ध है। अवधिज्ञान की उत्पत्ति का क्षेत्र समस्त त्रसनाड़ी है, किन्तु मन:पर्यय ज्ञान मनुष्य लोक में ही उत्पन्न होता है। अवधिज्ञान के विषय का क्षेत्र समस्त लोक है, किन्तु मन:पर्यय ज्ञान के विषय का क्षेत्र पैंतालीस लाख योजन विस्तार प्रमाण ही है। इतने क्षेत्र में स्थित अपने योग्य विषय को ही ये ज्ञान जानते हैं। तथा अवधिज्ञान चारों गतियों के सैनी पंचेन्द्रिय पर्याप्तक जीवों के होता है, किन्तु मन:पर्यय ज्ञान कर्मभूमि के गर्भज मनुष्यों के ही होता है, उनमें भी संयमियों के ही होता है। संयमियों में भी वर्धमान चरित्र वालों के ही होता है, हीयमान चरित्र वालों के नहीं होता। वर्धमान चरित्र वालों में भी सात प्रकार की ऋद्धियों में से एक दो ऋद्धियों के धारी मुनियों के ही होता है। और ऋद्धिधारियों में भी किसी के ही होता है, सभी के नहीं होता। विषय की अपेक्षा भेद आगे सूत्रकार स्वयं कहेंगे। इस तरह अवधि और मन:पर्यय ज्ञान में विशुद्धि वगैरह की अपेक्षा भेद जानना चाहिए।