अब मन:पर्यय के दोनों भेदों में विशेषता बतलाते हैं-
विशुद्ध्यप्रतिपाताभ्यां तद्विशेषः॥२४॥
अर्थ - ऋजुमति और विपुलमति में विशुद्धि और अप्रतिपात की अपेक्षा से विशेषता है।
English - The differences between the two are due to purity and infallibility.
मन:पर्यय ज्ञानावरणकर्म के क्षयोपशम से जो आत्मा में उज्वलता होती है, वह विशुद्धि है और संयम परिणाम की वृद्धि होने से गिरावट का न होना अप्रतिपात है। ऋजुमति से विपुलमति अधिक विशुद्ध होता है। तथा ऋजुमति होकर छूट भी जाता है, किन्तु विपुलमति । वाले का चरित्र वर्धमान ही होता है, अतः वह केवलज्ञान उत्पन्न होने तक बराबर बना रहता है।