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नव आचार्य श्री समय सागर जी को करें भावंजली अर्पित ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • अध्याय 1 : सूत्र 22

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    Vidyasagar.Guru

    आगे क्षयोपशमनिमित्तक अवधिज्ञान किसके होता है, यह बतलाते हैं-

     

    क्षयोपशम-निमित्तः षड्विकल्पः शेषाणाम्॥२२॥  

     

     

    अर्थ - क्षयोपशम निमित्त नामक अवधिज्ञान छह प्रकार का होता है। और वह मनुष्य और तिर्यञ्चों के होता है।

     

    English - Clairvoyance from destruction-cum-subsidence (i. e. arising from the lifting of the veil) is of six kinds. It is acquired by the rest (namely human -  beings and animals).

     

    विशेषार्थ - अवधिज्ञानावरण कर्म का क्षयोपशम जिसमें निमित्त है, उसे क्षयोपशम निमित्त अवधिज्ञान कहते हैं। यद्यपि सभी अवधिज्ञान क्षयोपशम के निमित्त से होते हैं, फिर भी इस अवधिज्ञान का नाम क्षयोपशम निमित्त इसलिए रखा गया कि इसके होने में क्षयोपशम ही प्रधान कारण है, भव नहीं। इसी से इसे गुणप्रत्यय भी कहते हैं।

     

    इसके छह भेद हैं - अनुगामी, अननुगामी, वर्धमान, हीयमान, अवस्थित, अनवस्थित। जो अवधिज्ञान अपने स्वामी जीव के साथ-साथ जाता है, उसे अनुगामी कहते हैं। इसके तीन भेद हैं - क्षेत्रानुगामी, भवानुगामी और उभयानुगामी। जिस जीव के जिस क्षेत्र में अवधिज्ञान प्रकट हुआ वह जीव यदि दूसरे क्षेत्र में जाये तो उसके साथ जाये और छूटे नहीं, उसे क्षेत्रानुगामी कहते हैं। जो अवधिज्ञान परलोक में भी अपने स्वामी जीव के साथ जाता है, वह भवानुगामी है। जो अवधिज्ञान अन्य क्षेत्र में भी साथ जाता है और अन्य भव में भी साथ जाता है, वह उभयानुगामी है। जो अवधिज्ञान अपने स्वामी जीव के साथ नहीं जाता, वह अननुगामी है। इसके भी तीन भेद हैं जो पूर्वोक्त तीन भेदों से उल्टे हैं। विशुद्ध परिणामों की वृद्धि होने से जो अवधिज्ञान बढ़ता ही जाता है, उसे वर्धमान कहते हैं। संक्लेश परिणामों की वृद्धि होने से जो अवधिज्ञान घटता ही जाता है, उसे हीयमान कहते हैं। जो अवधिज्ञान जिस मर्यादा को लेकर उत्पन्न हुआ हो, उसी मर्यादा में रहे, न घटे और न बढ़े, उसे अवस्थित कहते हैं और जो घटे-बढ़े, उसे अनवस्थित कहते हैं।


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