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  • अध्याय 9 - राजा श्रेणिक

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    Vidyasagar.Guru

    तीर्थङ्कर महावीर स्वामी के समवसरण का मुख्य श्रोता एवं समवसरण में 60,000 प्रश्न करने वाले राजा श्रेणिक एवं उनका पुत्र अभय कुमार के बौद्धिक प्रश्नोत्तरों का वर्णन इस अध्याय में है ।


    1. राजा श्रेणिक के पिता का नाम बताइए ?
    राजा श्रेणिक के पिता का नाम उपश्रेणिक था ।


    2. उपश्रेणिक ने श्रेणिक से कहा कि नवीन घट को ओस से भरना है ?
    राजा श्रेणिक ने ओस के जल से भीगी हुई घास थीं वहाँ घास पर उसने एक कपड़ा डाल दिया । जिस समय वह कपड़ा ओस के जल में भीग गया तब उस भीगे कपड़े को निचोड़ - निचोड़कर उस जल से घड़े को अच्छी तरह भर दिया।


    3. उपश्रेणिक ने श्रेणिक से कहा कि इन पिटारे एवं जलघट के मुँह खोले बिना भूख-प्यास शान्त करना है ?
    श्रेणिक ने पिटारे के मुँह को खोले बिना ही जिसमें बूँदी, राजगिर, लाई के मोदक रखे थे। जिसे लेकर इधर-उधर हिलाने से उस पिटारे से निकले हुए दाने को खाकर उसने अपनी भूख शान्त की तथा घड़ा में ऊपर से कपड़ा ढका था तब उसने उस कपडे को थोड़ा-सा नीचे किया (घड़े के मुख से अन्दर की ओर) जिससे कुछ पानी कपड़े के ऊपर आ गया उस पानी को अपनी अञ्जुलि से पीकर प्यास शान्त की ।


    4. श्रेणिक को जब उसके पिता उपश्रेणिक ने देश निकाला दे दिया तब श्रेणिक पैदल-पैदल जा रहा था। उसके साथ रास्ते में कौन हो गया और क्या-क्या हुआ ?
    श्रेणिक को जब देश निकाला दिया तब श्रेणिक पैदल-पैदल जा रहा था । उसके साथ रास्ते में श्रेष्ठी इन्द्रदत्त हो गया। श्रेणिक ने इन्द्रदत्त से बहुत से प्रश्न किए जिससे इन्द्रदत्त तो उसे बड़ा मूर्ख समझ रहा था। जब इन्द्रदत्त का नगर आया तो वह श्रेणिक को इन्द्र तालाब के पास बैठाकर यह कहकर चला गया कि जब तक मेरा समाचार न मिले इस स्थान से नहीं जाना ।


    5. श्रेष्ठी इन्द्रदत्त ने अपने घर जाकर अपनी बेटी से क्या कहा और बेटी ने उसके (श्रेणिक के) के प्रश्नों के क्या उत्तर दिए?

    अपने घर जाकर सेठी इन्द्रदत्त ने कहा बेटी तेरे योग्य एक अत्यन्त रूपवान युवा, गुणी मनोहर, तेजस्वी और बुद्धिमान वर मेरे साथ इस नगर में आया किन्तु उसमें महाभारी दोष है कि वह विचार रहित वचन बोलने के कारण मूर्ख मालूम पड़ता है ।
    उसके सभी प्रश्नों के सटीक उत्तर इन्द्रदत्त की बेटी ने दिए जो निम्नाङ्कित हैं-
    पिता - श्रेणिक ने मुझे मामा कहा ?
    बेटी- मामा कहकर पुकारा इसका अर्थ था कि संसार में भानजा अत्यन्त माननीय एवं प्रिय होता है इसलिए मामा कहने से तो उस कुमार ने आपके प्रेम की आकांक्षा की।
    पिता- उसने कहा था मैं और आप बहुत थक गए हैं इससे जिह्वारथ पर चढ़कर चले ?
    बेटी - सज्जन पुरुष मार्ग में चलते-चलते थक जाते हैं उस समय वे उस थकावट को अनेक प्रकार के प्रश्न-उत्तरों से अर्थात् आपस में धार्मिक चर्चा करते हुए दूर करते हैं। कुमार का लक्ष्य भी उस समय थकावट को दूर करने के लिए ही था ।
    पिता - राजकुमार श्रेणिक सड़क पर तो अपने जूते हाथ में लेकर चल रहा था किन्तु जैसे ही नदी आयी वह जूते पहनकर नदी में से चलने लगा ?
    बेटी - कुमार का यह कार्य बहुत ही बुद्धिमानी का था क्योंकि सड़क पर तो कंटक - पत्थर, गन्दगी देखकर चलते हैं किन्तु नदी के अन्दर बहुत से कंटक एवं पत्थरों के टुकड़े रहते हैं जो पैर में चुभते हैं तथा जल में रहने वाले जीव काट भी सकते हैं, इससे वह नदी में जूते पहनकर गया ।
    पिता - राजकुमार धूप में चल रहा था तब छाता हाथ में लिए था किन्तु जब वह वृक्ष की सघन छाया में छाता तानकर बैठ गया?
    बेटी- क्योंकि वृक्ष पर रहने वाले पक्षी की बीट (मल) गिरने की सम्भावना रहती है ।
    पिता - राजकुमार ने कहा ये नगर आबाद है, या उजड़ा हुआ?
    बेटी - जिस नगर में धर्मात्मा पुरुष, जिनमन्दिर और दिगम्बर साधु हो वह आबाद नगर कहलाता तथा जिसमें यह नहीं होते वह नगर उजड़ा हुआ कहलाता है ।
    पिता - राजकुमार ने कहा यह स्त्री जिसे पुरुष पीट रहा था, वह बन्धन मुक्त है या बन्धन युक्त है ?

    बेटी- अविवाहित स्त्री बन्धन मुक्त एवं विवाहित स्त्री बन्धन युक्त कहलाती हैं ।
    पिता - राजकुमार ने एक शव को देखकर के कहा यह व्यक्ति आज का मरा है या पहिले का मरा हुआ है?
    बेटी - जो धर्मात्मा, दयावान, ज्ञानवान, पात्रों को दान देने वाला आदि होता है । वह मर जाता है । तब उसको अभी का मरा हुआ कहते हैं तथा इससे जो विपरीत दानरहित, पापसहित होता है । वह पहिले से ही मरा हुआ माना जाता है ।
    पिता - राजकुमार ने एक धान्य से परिपूर्ण खेत को देखकर कहा इसके स्वामी ने इसका उपभोग कर लिया है अथवा करेगा?
    बेटी- जो कर्ज लेकर खेत बोया जाता है। उसके धान्य का तो पहले ही उपभोग कर लिया जाता है । और जो खेत बिना कर्ज के बोया जाता है उस खेत को उस खेत का स्वामी भोगेगा ऐसा कहा जाता है।

     अन्त में बेटी कहती पिताजी ! उक्त प्रश्नों से कुमार श्रेणिक अत्यन्त निपुण विद्वानों के मनों को हरण करने वाला, समस्त कलाओं में प्रवीण और अनेक प्रकार के शास्त्रों में होशियार है, ऐसा समझना चाहिए। हे तात् ! आप धैर्य रखें कुमार श्रेणिक की बुद्धि की परीक्षा और भी कर लेती हूँ किन्तु बताइए वह कुमार कहाँ पर है ।


    पिता - बेटी । नन्द श्री वह इसी नगर में तालाब के पास ठहरा हुआ है ।


    नन्दश्री ने अपनी सखी निपुणमती को बुद्धि के द्वारा परीक्षा कर अपने यहाँ आने का निमन्त्रण दे आयी । निपुणमती ने श्रेणिक से कहा मैं नख में तेल लाई हूँ इसे आप शरीर में लगाकर स्नानकर इन्द्रदत्त के घर पधारिए। श्रेणिक-बेटी उसका घर कहा है? इसके उत्तर में उसने अपने कान में पहने आभूषण को दिखा दिया जिसमें ताड़ का वृक्ष था।


    श्रेणिक ने जमीन में एक गड्ढ़ा कर उसमें पानी भरकर निपुणमती से कहा इसमें तेल डाल दो। उस पानी सहित तेल को लगाकर तालाब में स्नानकर श्रेष्ठी इन्द्रदत्त के घर को चला । घर कहाँ तब उसे याद आया कि उस बेटी के कान के आभूषण में ताड़ का वृक्ष बताया था । अत: जहाँ ताड़ का वृक्ष है वही उसका घर है । नन्दश्री ने अपने घर के सामने घुटने तक कीचड़ भरवा दिया । कीचड़ से श्रेणिक के पैर लथपथ हो गए तब नन्द श्री ने निपुणमती द्वारा पैर धोने के लिए एक चुल्लू पानी दिया। श्रेणिक ने बाँस की लकड़ी से कीचड़ को खरोंचकर अलग कर उस पर पानी में से थोड़े पानी में एक कपड़ा गीलाकर अपने पैर धो लिए और शेष पानी को वापस कर दिया और मकान में प्रवेश किया । अन्दर प्रवेश करते ही नन्दश्री ने श्रेणिक से कहा- आपको यहीं पर भोजन करना है ।


    श्रेणिक ने कहा मेरी प्रतिज्ञा (नियम) है मेरे हाथ में बत्तीस चावल के दाने हैं, चावलों से भाँति-भाँति के व्यञ्जनों का जो आहार मुझे कराएगा उसी के यहाँ भोजन करूँगा ।
     

    नन्दश्री ने उन चावलों को पीसकर पूयें बनाए और निपुणमती के द्वारा बाजार में बेचने को कहा। निपुणमती सफेद साड़ी पहनकर बाजार गई । और कहा ये पूयें देवों द्वारा प्रदत्त हैं जो भी इसे खाएंगा उसकी जो इच्छा है वह पूर्ण होगी। एक ने बहुत रुपये देकर सारे पूयें खरीद लिए उन रुपयों से बहुत सी सामग्री लेकर नन्द श्री ने भोजन कराया ।


    अन्त में नन्दश्री ने एक अति टेढ़े छेद का मूँगा कुमार को दिया और उसमें धागा डालने को कहा । श्रेणिक ने उस धागे के अग्रभाग में गुड़ लगाकर छेद में अपनी शक्ति अनुसार डाला वह थोड़ा गया और उसको चीटिंयों के बिल में रख दिया। गुड़ की चाह से चींटियों ने धागा को खींचकर पार कर दिया। जब धागा मूँगें से पार हो गया तब श्रेणिक ने मूँगे को लाकर नन्दश्री को दे दिया । तत् पश्चात् श्रेष्ठी इन्द्रदत्त ने नन्दश्री का विवाह कुमार श्रेणिक से कर दिया।


    कालान्तर में रानी नन्दश्री ने अभयकुमार नामक पुत्र को जन्म दिया। धीरे-धीरे समय निकलता गया उधर राजगृही में राजा उपश्रेणिक ने अपना राज्य चिलाती पुत्र को देकर संन्यास के लिए चले गए ।


    चिलाती पुत्र राज्य के योग्य नहीं था । अत: वहाँ के नगरवासी श्रेणिक के पास जाकर निवेदन किया आप चलिए। श्रेणिक नन्द श्री नामक रानी एवं पुत्र अभयकुमार को यह कहकर जाने लगे कि राजा बनते ही दोनों को बुला लेंगे ।


    राजा बनते ही श्रेष्ठी इन्द्रदत्त बेटी नन्द श्री एवं नाती/ पोता अभयकुमार को लेकर राजगृह की ओर चल दिए । बीच में नन्दीग्राम रुके इन्द्रदत्त और नन्द श्री भोजनादि करने लगे । तथा नवीन पदार्थों को देखने का प्रेमी अभयकुमार नन्दिग्राम देखने चला गया ।


    वहाँ की प्रजा चिन्तित थी तथा गाँव का मुखिया नन्दिनाथ चिन्तित था । उन्होंने अभय कुमार से कहा- राजगृह के स्वामी राजा श्रेणिक ने एक बकरा हमारे पास भेजा है तथा यह भी कह दिया है इसे बहुत खिलावें-पिलावें किन्तु यह बकरा जैसे का तैसा रहे न मोटा हो न पतला हो । यदि बकरा मोटा या पतला हुआ तो नन्दिग्राम खाली करना पड़ेगा। अभयकुमार ने कहा चिन्तित न हो इसे दिनभर बहुत खिलावें - पिलावें और शाम को उसे एक शेर के सामने लाकर खड़ा कर दें। ऐसा करने से बकरा जैसा का तैसा रहा और नन्दिग्राम वालों ने वह बकरा राजाश्रेणिक के पास भेज दिया । राजा श्रेणिक ने यह समझा कि नन्दिग्राम की प्रजा बुद्धिमान है अभयकुमार की सर्वत्र प्रशंसा हुई । तथा नन्दिग्राम वासियों की प्रार्थना से अभयकुमार वहीं रुक गए। राजा श्रेणिक ने नन्दिग्राम के निवासियों को आज्ञा दी कि शीघ्र एक बावड़ी राजगृह नगर पहुँचा दे। नहीं तो उनको कष्ट का सामना करना पड़ेगा । अभयकुमार ने कहा नन्दिग्राम से राजगृह तक बैल एवं भैसें के कन्धों पर जुआ रखवा दो । जिस समय राजा अपने राजमहल में गाढ़ी निद्रा में सोते हो । बेधड़क हल्ला करते हुए राजमहल में घुस जाओ और बहुत जोर से पुकारकर कहो । नन्दिग्राम की प्रजा बावड़ी लाई है। उन्हें जो आज्ञा होय सो किया जाए। राजा श्रेणिक गहरी निद्रा में शयन कर रहे थे तब मुख से धीरे से यह शब्द निकल गए कि जहाँ से बावड़ी लाए हो वहीं पर बावड़ी ले जाकर रख दो। और राजमहल से शीघ्र ही चले जाओ बस फिर क्या था नन्दिग्राम वाले प्रसन्न होकर चले गए।


    राजा श्रेणिक ने नन्दिग्राम वासियों के लिए आज्ञा दी थी एक हाथी का वजनकर शीघ्र ही मेरे पास भेज दे। अभयकुमार ने नन्दिग्राम वालों को सलाह दी तालाब में एक नाव में हाथी को खड़ा कर जितना नाव का हिस्सा डूब गया उस हिस्से पर कुमार ने एक रेखा खींच दी एवं हाथी को नाव से बाहर कर उसमें उतने ही पत्थर भरवा दिये और वह पत्थर राजा श्रेणिक के पास भिजवा दिए तथा कहा इन पत्थरों के बराबर हाथी का वजन है।


    राजा श्रेणिक ने नन्दिग्राम वालों को एक हाथ प्रमाण खैर ( कत्था ) की एक ठोस लकड़ी देकर कहा इसमें कौन-सा अगला भाग है तथा कौन सा पिछला भाग है ? अभयकुमार नन्दिग्राम वालों को एक तालाब के किनारे ले गए। तालाब में कुमार ने लकड़ी डाल दी। जिस समय वह लकड़ी अपने मूल भाग को आगे कर बहने लगी शीघ्र ही उन्होंने उसका पिछला अगला (आगे) भाग समझ लिया तथा राजाश्रेणिक के पास लकड़ी ले गए।


    विशेष- खैर की लकड़ी मूल भाग को आगे करके बहती है ।


    राजा श्रेणिक ने नन्दिग्राम वालों के पास थोड़े से तिल भेजकर आज्ञा दी कि जितने ये तिल हैं इनके बराबर शीघ्र ही तेल राजगृह पहुँचा दो। अभय कुमार ने उन तिलों को दर्पण पर पूरकर नन्दिग्राम वालों को आज्ञा दी कि जाओ इनका तेल निकलवा लाओ। तेल आने पर कुमार ने तिलों के बराबर ही दर्पण पर तेल पूर दिया और महाराज श्रेणिक की सेवा में किसी मनुष्य द्वारा भिजवा दिया।


    राजा श्रेणिक ने नन्दिग्राम वालों से कहा कि भोजन के योग्य दूध मँगाया है किन्तु वह दूध गाय-भैंस आदि पदार्थों का भी न हो। और न दुपायों ( दो पैर वाली बन्दरी आदि) का हो | नारियल आदि पदार्थों का भी न हो। तथा इस काल की बात करे तो वह सोयाबीन का भी न हो । नन्दिग्राम वालों की ओर से शीघ्र ही कच्चे धान्यों की बालें मँगवाई और उनसे गाय के समान ही उत्तम दूध निकलवाकर कई घड़े भरकर तैयार करायें वे घड़े राजा श्रेणिक की सेवा में राजगृह नगर भेज दिए ।


    राजा श्रेणिक ने नन्दिग्राम वालों को आदेश दिया कि एक ही मुर्गा को मेरे सामने आकर लड़ावे । अभयकुमार ने नन्दिग्राम वालों को सलाह दी मुर्गा के सामने एक दर्पण रख दे। मुर्गा उससे तुरन्त लड़ने लगेगा ।


    राजा श्रेणिक ने नन्दिग्राम वालों को आदेश दिया कि बालू (रेत) की रस्सी मँगाई है। अभयकुमार ने नन्दिग्राम वालों से कहा राजा श्रेणिक से जाकर कहो आपके भण्डार में कोई दूसरी बालू की रस्सी हो तो कृपाकर हमें देवें, जिससे हम वैसी ही रस्सी आपकी सेवा में लाकर हाजिर कर दे । राजा श्रेणिक ने कहा नन्दिग्राम वासियों मेरे यहाँ कोई भी बालू की रस्सी नहीं है। तब नन्दिग्राम वासियों ने कहा ऐसी कठोर आज्ञा हम लोगों को न दें, जिसकी हम लोग पूर्ति न कर सकें।


    राजा श्रेणिक ने नन्दिग्राम वालों को आज्ञा दी एक कुष्माण्ड (कुम्हड़ा/ कद्दू) लेकर आवे वह कुम्हड़ा घड़े के भीतर हो और वह घड़े के बराबर हो । अभयकुमार ने एक घड़ा मँगाया और उसमें बेल सहित कुम्हड़ा को रख दिया, तथा कुछ दिनों बाद वह कुम्हड़ा घड़े के बराबर बढ़ गया और कुमार ने घड़े सहित कुम्हड़ा राजा के पास भिजवा दिया ।


    राजा श्रेणिक इन प्रश्नों के उत्तर से अनुमान लगाया वहाँ कोई बाहर का बुद्धिमान मनुष्य होना चाहिए । तब श्रेणिक ने शीघ्र ही कुछ शूरवीर योद्धाओं को बुलाया और उन्हें आज्ञा दी कि तुम लोग अभी नन्दिग्राम जाओ और वहाँ जो सबसे अधिक बुद्धिमान हो शीघ्र ही उसे तलाश कर आओ । राजसेवक एक उद्यान में रुक गए। वहीं नन्दिग्राम के बालक खेलने आए उन बालकों के साथ अभयकुमार भी था। सभी जामुन के वृक्ष पर चढ़कर फल खाने लगे। राजसेवक भी वहीं बढ़े और प्रार्थना की कुछ फल मुझे भी दो । तब अभयकुमार ने कहा तुम लोग ठण्डे फल लेना चाहते हो या गरम फल ? राजसेवकों को आश्चर्य हुआ कि फल भी ठण्डे गरम होते हैं तब उन्होंने कहा गरम फल चाहिए। कुमार ने फल तोड़कर उन्हें आपस में घिसकर बालू में दूर पटक दिया और कहा ये फल उठा लो ।


    राजसेवकों ने अनुमान लगा लिया यही सबसे बुद्धिमान लगता है। इसी ने राजा के प्रश्नों के उत्तर दिए होगें तथा यह भी जानकारी कर ली यह राजा श्रेणिक का पुत्र अभयकुमार है।


    राजा श्रेणिक को भी विश्वास होगा ऐसे प्रश्नों के उत्तर अभयकुमार ही दे सकता है । राजा श्रेणिक ने राजसेवकों से अभयकुमार को बुलाने के लिए कहा । तथा यह भी कहना कि आपके लिए आज्ञा दी है कि कुमार न तो मार्ग से आवे और न उन्मार्ग से आवे । न दिन में आवे, न रात में आवे । भूखे भी न आवे, भरे पेट भी न आवे । न किसी सवारी से आवे और न पैदल आवे ।


    अभयकुमार ने सूर्यास्त के बाद एवं रात्रि के पहले सन्ध्याकाल में रथ से चला। रथ का पहिया मार्ग में चलाया और दूसरा उन्मार्ग में । कुमार ने चलते समय चना का भोजन किया।
    एवं छींके पर सवार हो अनेक नन्दिग्रामवासियों के साथ आनन्दपूर्वक राजगृह नगर माता एवं नाना के साथ पहुँचे बहुत स्वागत हुआ तथा अभयकुमार के कहने से राजाश्रेणिक ने नन्दिग्राम वासियों को उनका अपराध क्षमा कर दिया ।


    6. अभय कुमार की ओर भी बुद्धिमानी के उदाहरण बताइए?

    1. समुद्रदत्त नामक एक सेठ था उसकी दो पत्नी थी । एक का नाम वसुदत्ता दूसरी का नाम वसुमित्रा उन दोनों में वसुदत्ता को कोई सन्तान नहीं थी, मात्र वसुमित्रा का एक बेटा था। पति के अवसान के बाद वसुदत्ता कहती यह मेरा बेटा है वसुमित्रा कहती यह मेरा बेटा है। दोनों के झगड़े का निर्णय अभयकुमार के पास पहुँचा अभयकुमार ने एक तलवार मँगाई और कहा इस बालक के दो टुकड़े कर देता हूँ, दोनों एक-एक ले जाओ । मातृ स्नेह से बढ़कर संसार में स्नेह नहीं। वसुमित्रा कहती यह मेरा बेटा नहीं, वसुदत्ता का ही बेटा है। उसे दे दो। ऐसे वचन सुनकर अभयकुमार ने तुरन्त समझ लिया इस बालक की माँ वसुमित्रा ही है । तथा वह बालक वसुमित्रा को देकर वसुदत्ता को राज्य से निकाल दिया ।
    2. अयोध्या नगर में एक बलभद्र नामक सच्चा ईमानदार किसान था उसकी पत्नी का नाम भद्रा था । भद्रा को एक बसन्त भी चाहता था और उसने बहुरूपिणी विद्या सिद्धकर बलभद्र का रूप बनाकर असली बलभद्र के घर पहुँचा। और दोनों में झगड़ा प्रारम्भ हो गया कि भद्रा मेरी पत्नी है। सभी को आश्चर्य एक से दो व्यक्ति कैसे हो गए। झगड़ा का निर्णय अभयकुमार के पास पहुँचा ।अभयकुमार भी आश्चर्य चकित हो गया दोनों एक से हैं कैसे पहचाने कि भद्रा किसकी पत्नी है अभयकुमार ने कहा जो इस तुम्बी में से बाहर निकल जाएगा वह असली बलभद्र माना जाएगा और उसको भद्रा मिलेगी जो नकली बलभद्र था उसने बहुरूपिणी विद्या से छोटा रूप बनाकर तुम्बी से निकल गया । अभयकुमार ने समझ लिया यह नकली बलभद्र है और उसको मारपीट कर नगर से बाहर भगा दिया और भद्रा को असली बलभद्र देकर अयोध्या जाने की अनुमति दे दी।
    3. एक दिवस राजा श्रेणिक के हाथ की अङ्गुली में से एक अँगूठी सूखे कुएँ में गिर गई । तब राजा श्रेणिक ने अभयकुमार से कहा बेटा । अँगूठी सूखे कुएँ में गिर गई है। बिना किसी बाँस आदि की सहायता से शीघ्र अँगूठी निकालकर लाओ । राजा श्रेणिक की आज्ञा पाते ही कुमार शीघ्र ही कुएँ के पास गया। कहीं से गोबर मँगाकर कुएँ में अँगूठी के ऊपर गोबर डलवा दिया। जब गोबर सूख गया तब कुएँ के मुँह तक पानी भरवा दिया धीरे-धीरे वह गोबर कुएँ के मुँह तक आ गया । तथा उस अँगूठी को लेकर कुमार ने राजा को दे दी।

    ***

    तीर्थङ्कर महावीर को मोक्ष गये कितने वर्ष हो गए?

    तीर्थङ्कर महावीर को मोक्ष गए कितना समय हो गया इसके बारे में अनेक मत हैं । इनमें युक्ति द्वारा 2,500 वर्ष वाला उचित लगता है । वह इस प्रकार है- पञ्चम काल के प्रारम्भ में मनुष्यों की आयु 120 वर्ष एवं अन्त में घटते घटते 20 वर्ष रहती है । पञ्चम काल 21,000 वर्ष का है आपने मान लिया कि पञ्चम काल 20,000 वर्ष का है। जब 20,000 वर्ष में 100 वर्ष घटती तब 2,500 वर्ष में 121⁄2 वर्ष घटेगी । अतः आज भी 1072 वर्ष के व्यक्ति मिल जाते हैं। अत: इस युक्ति से तीर्थङ्कर महावीर को मोक्ष गये 2,500 वर्ष हुए हैं ।


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