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अंतरराष्ट्रीय मूकमाटी प्रश्न प्रतियोगिता 1 से 5 जून 2024 ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • अध्याय 8 - कुलकर

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    Vidyasagar.Guru

    पुरुषों की बहत्तर कलाएँ होती हैं जिनमें मुख्य दो कलाएँ होती हैं। प्रथम जीव की आजीविका और दूसरी जीव का उद्धार। अतः भोगभूमि के समापन एवं कर्मभूमि के प्रारम्भ में आक्रान्त जीवों को जीवन जीने की कला सिखाने वाले कुलकर कहलाते हैं । इन कुलकरों की आयु, ऊँचाई एवं कार्य का वर्णन इस अध्याय में है ।


    1. कुलकर किन्हें कहते हैं, ये कब और कितने होते हैं, इनके नाम, परिचय एवं कार्य क्या हैं?
    भोगभूमि के समापन से आक्रान्त मनुष्यों को जीवन जीने की कला का उपाय बताते हैं, वे मनु कहलाते हैं तथा आर्य पुरुषों को कुल की भाँति एकत्रित रहने का उपदेश देने से कुलकर कहलाते हैं। इन्होंने वंश स्थापित किए थे इसलिए कुलधर कहलाते हैं। तथा युग के आदि में होने से युगादि पुरुष भी कहे जाते हैं ।
    ये अवसर्पिणी के तृतीय काल में पल्य का आठवाँ भाग शेष रहने पर क्रमश: चौदह होते हैं । इनके नाम, परिचय एवं कार्य निम्न प्रकार हैं :-

    1. प्रतिश्रुति

    • पटरानी-स्वयम्प्रभा
    • शरीर का वर्ण- हेमवर्ण                                   
    • ऊँचाई  - 1800 धनुष              
    • आयु -    1/10 पल्य
    •  जन्मान्तराल - तृतीय काल में 1/8 पल्य शेष रहने पर

     

    कार्य - अवसर्पिणी के तृतीय काल में पल्य का आठवाँ भाग शेष रहने पर तेजाङ्ग कल्पवृक्षों की कान्ति नष्ट हो जाने पर आकाश में (आषाढ़ी पूर्णिमा के दिन) सूर्य और चन्द्र का प्रादुर्भाव होता है, उन रवि, शशि के दर्शन से भयभीत हुए वे सब आर्य और आर्या शीघ्र ही प्रतिश्रुति कुलकर की शरण में जाते हैं, तब प्रतिश्रुति कुलकर शीघ्र ही अपने बच्चों द्वारा सूर्य-चन्द्र के उदय काल आदि के स्वरूप का वर्णन कर उनका भय दूर करते हैं। (ति.प., 4/428-436)

     

    2. सन्मति

    • पटरानी-यशस्वति
    • शरीर का वर्ण-  स्वर्ण समान                              
    • ऊँचाई  -13,000 धनुष             
    • आयु -     1/100 पल्य
    •  जन्मान्तराल -  1/80 पल्य

     

     

    कार्य - सर्व तेजाङ्ग कल्पवृक्षों की कान्ति नष्ट हो जाने से आकाश ग्रह एवं तारागणों से भर गया, जिसके देखने से भयभीत हुए आर्य-आर्या शीघ्र ही सन्मति कुलकर की शरण को प्राप्त हुए । उनके भय को नाश करने के लिए वे इस प्रकार श्रेष्ठ वचन बोले कि हे भद्र जनो ! ये ग्रह हैं और ये शुभ तारागण आदि हैं । इस ज्योतिष चक्र से आप लोगों को किञ्चित् भी भय नहीं करना चाहिए, क्योंकि अब इन्हीं ज्योतिष देवों के द्वारा आप लोगों को दिन और रात्रि के भेद का ज्ञान होगा। (ति.प., 4/437-445 )


    3. क्षेमङ्कर

     

    • पटरानी-सुनन्दा   
    • शरीर का वर्ण-   स्वर्ण समान                             
    • ऊँचाई  -800 धनुष              
    • आयु -  1/1000 पल्य 
    •  जन्मान्तराल - 1/800 पल्य

     

    कार्य- इनके काल में वहाँ रहने वाले मृग, शेर आदि क्रूरता को प्राप्त हो गये थे। तब मनु ने कहा कि काल दोष के प्रभाव से इनके मनों में विकार उत्पन्न हो गया है, अत: इनको शीघ्र छोड़ देना चाहिए। आप लोगों को अब इनका विश्वास नहीं करना चाहिए। (ति.प., 4/446-450)

     

    4. क्षेमन्धर

     

    • पटरानी-विमला    
    • शरीर का वर्ण-   स्वर्ण समान                             
    • ऊँचाई  -775 धनुष              
    • आयु -  1/10,000 पल्य 
    •  जन्मान्तराल - 1/8,000 पल्य

     

    कार्य - इस समय सिंहादि पशु अत्यन्त क्रूरता को प्राप्त हो गए थे । सिंहादिक मनुष्यों का माँस खाने लगे थे। अतः उन उत्तम बुद्धि को धारण करने वाले मनु ने लकड़ी आदि द्वारा ताड़न आदि की शिक्षा दी । (ति.प.,4/451-54)

     

    5. सीमङ्कर ऊँचाई

    • पटरानी-मनोहारी 
    • शरीर का वर्ण-   स्वर्ण समान                             
    • ऊँचाई  -750 धनुष              
    • आयु -  1/1,00,000पल्य
    •  जन्मान्तराल - 1/80,000 पल्य

     

    कार्य- इस समय कल्पवृक्ष अल्प फल देने लगे थे और मनुष्यों में लोभ बढ़ चला था । कल्पवृक्षों में लुब्ध हुए वे युगल परस्पर विवाद करने लगे थे। तब सीमा निर्धारित करके सीमङ्कर द्वारा उनका पारस्परिक संघर्ष रोका गया। (ति.प., 4/455-458)
     

    6. सीमन्धर

     

    • पटरानी-यशोधारिणी
    • शरीर का वर्ण-   स्वर्ण समान                             
    • ऊँचाई  -725 धनुष            
    • आयु - 1/10,00,000पल्य
    •  जन्मान्तराल - 1/8 लाख पल्य

     

    कार्य - इस कुलकर के समय में कल्पवृक्ष अत्यन्त विरल और अल्पफल एवं अल्प रस वाले हो जाते हैं,इसलिए भोगभूमिज मनुष्यों के बीच इनके विषय में नित्य ही कलह उत्पन्न होने लगता है। इस कलह को दूर करने के निमित्त वृक्षों तथा पौधों आदि को चिह्न रूप मान कर सीमा नियत की । ( ति.प., 4/ 460-463)

     

    विशेष- सीमा निर्धारित का अर्थ उनके स्वामित्व का विभाजन किया ।

     

    7. विमल वाहन

    • पटरानी-सुमति
    • शरीर का वर्ण-   स्वर्ण समान                             
    • ऊँचाई  - 700 धनुष            
    • आयु - 1/1,0000000पल्य
    •  जन्मान्तराल -1/80 लाख पल्य

     

    कार्य- इस समय गमनागमन से पीड़ा को प्राप्त हुए भोगभूमिज मनुष्य इस मनु के उपदेश से हाथी आदि का सवारी के रूप में उपयोग करने लगे। (ति.प.,4/464-466)


    8. चक्षुष्मान

    • पटरानी-धारिणी 
    • शरीर का वर्ण-   स्वर्ण समान                             
    • ऊँचाई  -675 धनुष           
    • आयु -  1/10 करोड़ पल्य 
    •  जन्मान्तराल -1/8 करोड़ पल्य

     

    कार्य-अवधिज्ञान ही आपके नेत्र थे । उस समय पूर्व में कभी नहीं देखे हुए अपने पुत्र के दर्शन से जीवित रहने वाले आर्यजनों को बहुत भय उत्पन्न हुआ, उसी क्षण कुलकर ने अपने पुत्र की उत्पत्ति सुख प्राप्ति के लिए होती है, ऐसा कहकर सन्तान वृद्धि से होने वाले उन जीवों के भय को दूर किया। (ति.प., 4/467-471)

     

    9. यशस्वी

     

    • पटरानी-कान्तमाला
    • शरीर का वर्ण-   स्वर्ण समान                             
    • ऊँचाई  -650 धनुष           
    • आयु -  1/100 करोड़ पल्य 
    •  जन्मान्तराल -1/80 करोड़ पल्य

     

    कार्य- ये ज्ञान नेत्र एवं यश से विभूषित थे । उस समय सन्तान उत्पत्ति के बाद माता-पिता जीवित रहने लगे तब कुलकर ने सन्तान के नामकरण एवं सन्तान उत्पत्ति का महामहोत्सव करने का उपदेश दिया। (ति.प.,4/472-475)

     

    10. अभिचन्द्र

    • पटरानी -श्रीमती
    • शरीर का वर्ण- स्वर्ण समान
    • ऊँचाई- 625 धनुष
    • आयु- 1/1000 करोड़ पल्य
    • जन्मान्तराल- 1/800 करोड़ पल्य

     

    कार्य- इन्होंने प्रजा के लिए शिशुओं का रुदन रोकने हेतु उपदेश दिया। रात्रि में चन्द्रमण्डल दिखाकर क्रीड़ा कराने का एवं सन्तान को बोलना सिखाओ और उनका यत्न करो । यह उपदेश सुन भोगभूमिज मनुष्य शिशुओं के साथ वैसा ही व्यवहार करने लगे । वे (युगल) कुछ दिन रहकर आयु के क्षीण होने पर विलीन हो जाते हैं । (ति.प.,4/476-480)


    11. चन्द्राभ

    • पटरानी- प्रभावती
    • शरीर का वर्ण- स्वर्ण समान
    • ऊँचाई- 600 धनुष
    • आयु- 1 / 10000 करोड़ पल्य
    • जन्मान्तराल-  1/8000 करोड़ पल्य

     

    कार्य - उस काल में शीत बढ़ गई थी, तुषार छाने लगा था और अतिवायु चलने लगी थी। शीतल वायु के स्पर्श से अत्यन्त दुःख पाकर भोगभूमिज मनुष्य तुषार से आच्छादित चन्द्रादिक ज्योषितगण को नहीं देख पाते थे। इस कारण अत्यन्त भय को प्राप्त उन भोगभूमिज पुरुषों को चन्द्राभ कुलकर ने कहा कि भोगभूमि की हानि होने से अब कर्मभूमि निकट आ गई है। अब तुषार सूर्य की किरणों से नष्ट होगा । तथा वे भोगभूमिज मनुष्य सूर्य की किरणों से शीत को नष्ट करते हुए पुत्र - कलत्र के साथ जीवित रहने लगे ।(ति.प., 4/482-488 )


    12. मरुदेव

    • पटरानी -सत्या नाम की अनुपमा
    • शरीर का वर्ण- स्वर्ण समान
    • ऊँचाई- 575धनुष
    • आयु- 1 / 1 लाख करोड़ पल्य
    • जन्मान्तराल- 1/80,000 करोड़ पल्य

     

    कार्य - उस समय में बिजली युक्त मेघ गरजते हुए बरसने लगे थे। तब इन्होंने नदी और समुद्र को पार करने के लिए पुल, नाव आदि का तथा पर्वत आदि पर चढ़ने के लिए सीढ़ियों आदि का विधान किया। (ति.प., 4/489- 495 )


    13. प्रसेनजित

    • पटरानी- अमितमति
    • शरीर का वर्ण-स्वर्ण समान
    • ऊँचाई- 550धनुष
    • आयु- 1/10 लाख करोड़ पल्य
    • जन्मान्तराल-1/8 लाख करोड़ पल्य

     

    कार्य - इसी समय सन्तानों की उत्पत्ति जरायु पटल से आवृत्त होने लगी थी । तब इनने प्रजा को जरायु आदि
    काटने का तथा स्नान आदि कराने का उपदेश दिया ।


    कार्य-आपके पिता अमितगति ने आपका विवाह उत्तम कन्या से विधिपूर्वक किया था । ये प्रथम कुलकर जो युगल उत्पन्न नहीं हुए और इसी समय से युगल सन्तान की उत्पत्ति का नियम समाप्त हुआ । (ति.प.,4/496-500)

     

    14. नाभिराय

    • पटरानी- मरुदेवी
    • शरीर का वर्ण- स्वर्ण समान
    • ऊँचाई- 525 धनुष
    • आयु- 1 पूर्व कोटि
    • जन्मान्तराल- 1/80 लाख करोड़ पल्य

     

    कार्य- इस काल में सन्तान उत्पत्ति नाभिनाल से युक्त होने लगी थी । तब आपने माता-पिता के सुख के लिए उस नाल को काटने का उपदेश दिया था, इसलिए प्रजा ने आपका सार्थक नाम नाभिराय रखा। (ति.प.,4/501-508)


    विशेष- इस समय वर्षा होने लगी जिससे पृथ्वी पर अनेक प्रकार के धान्य, वनस्पति आदि उत्पन्न होने लगी। कल्पवृक्षों का अभाव होने से जीवों में आहार की तीव्र इच्छा होने लगी। क्षुधा वेदना से प्रजा अन्तरङ्ग में अत्यन्त दुःखी होती हुई नाभिराय के पास पहुँची और कहने लगी- हे स्वामिन् ! हम लोगों का पुण्य क्षय हो जाने से समस्त कल्पवृक्ष नष्ट हो गए हैं और उनके स्थान पर और कोई नाना प्रकार के अनेक वृक्ष स्वयमेव उत्पन्न हुए हैं, इनमें से कौन-से वृक्ष छोड़ने योग्य हैं और कौन-से भोगने योग्य हैं। यह समझाते हुए आप हमें ऐसा सर्वोत्तम उपाय बताइए जिससे हम लोगों की जीविका चले। तब उन्होंने कहा- इनमें ये तो उत्तम वृक्ष भोगने योग्य और काम में लेने योग्य हैं। तथा ये विष आदि के वृक्ष हैं, जो शीघ्र छोड़ने योग्य हैं ।


    2. कुलकरों की विशेषताएँ बताइए?

    1. सभी कुलकर पूर्व भव में विदेह क्षेत्र में उत्तम कुलोत्पन्न श्रेष्ठ राजा थे ।
    2. सम्यक्त्व ग्रहण के पूर्व पात्रदान से अर्जित पुण्य फल के द्वारा उन पवित्र सभी मनुओं ने भोगभूमि के मनुष्यों की आयु का बन्ध किया ।
    3. आयु बन्ध के बाद जिनेन्द्र भगवान् के पादमूल में क्षायिक सम्यक्त्व ग्रहण किया पश्चात् मरणकर कुलकर हुए ।
    4. किन्हीं कुलकरों को जाति स्मरण और किन्हीं को अवधिज्ञान होता है, जिससे वे प्रजा को हितोपदेश देते हैं। (सि.सा.दी., 9/123-125)

     

    3. कुलकर मात्र अवसर्पिणी काल के तृतीय काल में ही होते हैं ?
    नहीं। जिस प्रकार अवसर्पिणी के तृतीयकाल सुषमा - दुःषमा में पल्य का आठवाँ भाग शेष रहने पर एक-के-बाद एक क्रमश: चौदह कुलकर होते हैं । एवं अन्तिम कुलकर से चतुर्थ काल दुःषमा- सुषमा में प्रथम तीर्थङ्कर उत्पन्न होते हैं ।

    उसी प्रकार उत्सर्पिणी के द्वितीय काल में 1,000 वर्ष शेष रहने पर क्रमश: चौदह कुलकर उत्पन्न होते हैं एवं अन्तिम कुलकर से तृतीय काल दुःषमा- सुषमा में प्रथम तीर्थङ्कर उत्पन्न होते हैं ।

    ***

    णमोकार मन्त्र का जप करना सबसे बड़ा स्वाध्याय है ।


    आचार्यश्री नागसेन जी ने तत्त्वानुशासन ग्रन्थ में कहा है कि-


    स्वाध्यायः परमस्तावज्जपः पञ्चनमस्कृते ।
    पठनं वा जिनेन्द्रोक्त शास्त्रस्यैकाग्रचेतसः ॥ 80 ॥


    अर्थ- एकाग्रचित से पञ्च णमोकार मन्त्र का जप करना सबसे बड़ा स्वाध्याय है, अथवा जिनेन्द्र भगवान् के द्वारा उपदिष्ट शास्त्रों का पढ़ना सो भी परम स्वाध्याय कहलाता है


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