कुछ ही भवों में नियम से मोक्ष जाने वाले मनुष्यों में श्रेष्ठ एवं सम्पूर्ण लोक में प्रसिद्ध पुरुष शलाका पुरुष कहलाते हैं। इनकी संख्या प्रत्येक अवसर्पिणी के चतुर्थकाल में तथा उत्सर्पिणी के तृतीय काल में (दुःषमा - सुषमा ) 63 होती है इनका वर्णन इस अध्याय में है ।
1. शलाका पुरुषों के नाम बताइए ?
24 तीर्थङ्कर, 12 चक्रवर्ती, 9 बलदेव, 9 नारायण, 9 प्रतिनारायण = 63 तथा इनमें तीर्थङ्करों के 48 माता - पिता, 11 रुद्र, 9 नारद, 24 कामदेव, 14 कुलकर मिलाने से 169 महापुरुष होते हैं ।
2. शलाका पुरुषों की विशेषताएँ बताइए ?
- कभी भी तीर्थङ्कर -तीर्थङ्कर का चक्रवर्ती - चक्रवर्ती का बलभद्र - बलभद्र का ,नारायण-नारायण का और प्रतिनारायण - प्रतिनारायण का परस्पर मिलाप नहीं होता है। तुम जाओगे तो चिह्न मात्र से ही उसका और तुम्हारा मिलाप हो सकेगा। एक दूसरे के शंख शब्द सुनना तथा रथों की ध्वजाओं का देखना इन्हीं चिह्नों से तुम्हारा और उसका साक्षात्कार होगा (ह.पु., 54/58-60)
- सभी शलाका पुरुष वज्रवृषभनाराच संहनन से सहित, सुवर्ण के समान वर्ण वाले, उत्तम शरीर के धारक, सम्पूर्ण सुलक्षणों से युक्त और समचतुरस्र संस्थान से युक्त होते हैं। (ति.प., 4/1382)
- तीर्थङ्कर, चक्रवर्ती, बलदेव, नारायण एवं कामदेवों की दाढ़ी, मूछें नहीं होती हैं । (बो .पा. टी., 32/98)
तीर्थङ्कर
जिसके द्वारा संसार सागर से पार होते हैं, वह तीर्थ है और इसी तीर्थ के प्रवर्तक तीर्थङ्कर कहलाते हैं इनकी गर्भावतरण आदि कल्याणकों के समय सौधर्मइन्द्र अनेक देवों सहित उत्सव मनाते हैं । इनके भोजन, वस्त्र, आभूषण आदि सभी सामग्री स्वर्ग लोक से सौधर्म इन्द्र लाता है।
चक्रवर्ती
जो छ:खण्ड रूप भरत क्षेत्र का स्वामी हो और बत्तीस हजार मुकुट बद्ध राजाओं का तेजस्वी अधिपति हो वह चक्रवर्ती कहलाता है । ( ति.प., 1/48 ) भूमण्डल के समस्त मनुष्यों में श्रेष्ठ वैभव और भोग के स्वामी होने के कारण चक्रवर्तियों को नरेन्द्र भी कहा जाता है। पूर्व जन्मों में की गई तपस्या के फल स्वरूप चक्रवर्तियों की आयुधशाला में चक्ररत्न प्रकट होता है । ध्यान रहे चक्ररत्न प्रकट होने पर चक्रवर्ती चक्ररत्न की पूजा नहीं करता बल्कि जिनेन्द्र भगवान् की पूजा कर चक्रवर्ती दिग्विजय के लिए निकलता है । ( ति प., 4 / 1315)
3. चक्रवर्ती का वैभव बताइए ?
- प्रत्येक चक्रवर्ती के मन को हरण करने वाली और अभिनव लावण्य रूप रेखा वाली 96,000 रानियाँ होती है। उनमें से 32,000 राजकन्याएँ, 32,000 विद्याधर राजाओं की कन्याएँ 32,000 म्लेच्छ कन्याएँ होती हैं। एवं एक पट्टरानी होती है।
- प्रत्येक चक्रवर्ती के संख्यात हजार पुत्र पुत्रियाँ होती हैं और 32,000 गणबद्ध नामक देव उनके अङ्गरक्षक होते हैं ।
- 360 वैद्य एवं 360 रसोइए होते हैं ।
- चौदह रत्न एवं नव निधियाँ होती हैं ।
- चँवरों को 32 यक्ष दुराया करते हैं । तथा एक यक्ष के बन्धु कुल का प्रमाण साढ़े तीन करोड़ होता है ।
- तीन करोड़ गाय तथा एक करोड़ थालियाँ |
- 18 करोड़ घोड़े, 84 लाख हाथी, 84 लाख रथ, 84 लाख योद्धा, कई करोड़ विद्याधर, 88 हजार म्लेच्छ राजा होते हैं ।
- 32,000 नाट्य शालाएँ एवं 32,000 संगीत शालाएँ भी होती हैं ।
- 12 योजन तक सुनाई देने वाले 12 भेरी (नगाड़े), 12पटह (वाद्ययन्त्र)
- चक्रवर्ती 1. दिव्यपुर, 2 . रत्न, 3. निधि, 4. सैन्य, 5. भाजन, 6. भोजन, 7. शय्या, 8. आसन, 9. वाहन और 10. नाट्य ये दशाङ्ग भोग भोगते हैं । ( ति .प., 4/1383-1409)
विशेष- चक्रवर्ती का और भी वैभव ग्राम, नगर आदि तिलोयपण्णत्ती ग्रन्थ से जानना चाहिए ।
4. चक्रवर्ती के चौदह रत्न एवं नवनिधियों के बारे में बताइए ?
चौदह रत्नों में प्रथम सात जीव रत्न हैं तथा शेष रत्न अजीव हैं ।
- अश्व- पवनञ्जय नामक अश्व तिमिस्र गुफा के कपाट का उद्घाटन करते समय बारह योजन तक छलांग लगाता है ।
- हाथी - विजयगिरि नामक हाथी सवारी के लिए ।
- बढ़ई ( स्थपति ) - भद्रमुख नामक उन्मग्ना - निमग्ना नदियों पर पुल बनाना ।
- गृहपति - कामवृष्टि नामक भण्डार आदि की सम्हाल करना ।
- सेनापति - अयोध्य नामक सेनापति गुफाओं के द्वार खोलना एवं सेना का संचालन करना ।
- पुरोहित - बुद्धि समुद्र नामक धार्मिक अनुष्ठान कराता है।
- स्त्री - सुभद्रा नामक स्त्री उपभोग का साधन है। (विशेष- इन सात रत्नों में तुरङ्ग, हाथी और स्त्री ये तीन रत्न विजयार्ध पर्वत पर तथा शेष चार रत्न अपनी नगरी में उत्पन्न होते हैं।
- छत्र - सूर्यप्रभ नामक छतरी वर्षा से कटक की रक्षा करती है ।
- असि - भूतमुख नामक असि शत्रुसंहार के लिए।
- दण्ड- प्रचण्डवेग नामक दण्ड गुफाओं के कपाट खोलने के लिए एवं वृषभाचल पर प्रशस्ति लिखने के लिए ।
- चक्र - सुदर्शन नामक चक्र छः खण्डों के विजय के लिए ।
- काकिणी - चिन्ताजननी काकिणी अन्धकार को दूर करती है।
- चिन्तामणि- चूडामणि रत्न मनोवाञ्छित पदार्थों को प्रदान करता है ।
- चर्मरत्न - मज्झमय तम्बू से गङ्गा आदि नदियों के जल से कटक की रक्षा करता है ।
विशेष- अजीव सात रत्नों में प्रथम चार अर्थात् छत्र, असि, दण्ड, चक्र आयुधशाला में तथा शेष तीन अर्थात् काकिणी, चिन्तामणि और चर्मरत्न श्रीगृह में उत्पन्न होते हैं । (ति.प., 4/1389-1393)
नव निधि - 12 योजन लम्बी, 9 योजन चौड़ी,8 योजन गहरी । चक्रवर्ती के जीवन काल में नष्ट न होने वाली 9 निधि होती हैं । निधिपाल नामक देवों के द्वारा सुरक्षित, निरन्तर लोगों के उपकार में आती हैं। ये गाड़ी के आकार की थीं, चार - चार भौरों और आठ-आठ पहियों सहित थीं । तथा चक्रवर्ती के मनोरथों को पूर्ण करती हैं। ये कामवृष्टि नामक गृहपति के अधीन रहती हैं। एक-एक हजार देव (यक्ष ) इनकी देखरेख करते हैं। (ह.पु., 11/110-113)
- काल निधि - ऋतु के अनुसार फल, पुष्प आदि प्रदान करती है ।
- महाकाल निधि - अनेक प्रकार के बर्तन प्रदान करती है ।
- पाण्डु निधि - धान्य प्रदान करती है ।
- माणव निधि - विविध प्रकार के आयुध प्रदान करती है ।
- शङ्खनिधि - अनेक प्रकार के वाद्य यन्त्र प्रदान करती है ।
- पद्म निधि - अनेक प्रकार के वस्त्र प्रदान करती है ।
- नैसर्प निधि - भवन आदि प्रदान करती है ।
- पिङ्गल निधि - अनेक प्रकार के आभूषण प्रदान करती है।
- नानारत्न निधि - अनेक प्रकार के रत्न प्रदान करती है ।
1,2,3 पद्म पुराण, 20/124-192 4.ति.प., 4 / 1303-04 5. ति .प., 4/1306-07
विशेष -
- इन 12 चक्रवर्तियों में 8 चक्रवर्ती मोक्ष को, मघवा एवं सनत् कुमार तीसरे स्वर्ग को प्राप्त हुए । तथा ब्रह्मदत्त और सुभौम सातवीं पृथ्वी (नरक) को प्राप्त हुए। (ति.प., 4/1422)
- सभी चक्रवर्ती अपने पूर्व के मनुष्य भव में मुनि दीक्षा धारण करके घोर तप करते हुए स्वर्ग को जाते हैं, फिर वहाँ से आकर चक्रवर्ती होते हैं।
- चक्रवर्ती अपनी पृथक् विक्रिया के द्वारा अपने शरीर के अनेक रूप बनाता है।
- चक्रवर्ती इन्द्रियों के उत्कृष्ट विषय को धारण करता है अर्थात् स्पर्श, रसना और घ्राण के उत्कृष्ट विषय 9 योजन तक, कर्ण इन्द्रिय 12 योजन तक तथा चक्षु इन्द्रिय 47,263 7/20 योजन तक के विषयों को ग्रहण करता है ।
6. बलदेवों का वैभव बताइए?
शलाका पुरुषों में चक्रवतियों के पश्चात् बलदेवों का स्थान है । इन्हें बलभद्र, हलधर भी कहते हैं । बलदेव नारायण के भाई होते हैं। सभी बलदेव पूर्वभव में तपश्चरण कर देव होते हैं । वहाँ से च्युत हो बलदेव होते हैं। इनकी 8000 रानियाँ, 16000 देश तथा 16000 राजा उनके अधीन होते हैं । बलदेवों के अपराजित नामक हलायुध, अमोघ नाम के तीक्ष्ण बाण, कौमुदी नामक गदा और रत्नावतंसिका नामक माला ये चार होते हैं । इन सब रत्नों की अलग-अलग 1000-1000 यक्ष देव रक्षा करते हैं । (उ.पु., 68 1666-674)
विशेष -8 बलदेव मोक्ष को प्राप्त हुए और अन्तिम बलदेव ब्रह्मस्वर्ग को प्राप्त हुए हैं। ये स्वर्ग से च्युत हो कृष्ण जी के तीर्थ में जो आगामी भव में 16 वें निर्मल नाम के तीर्थङ्कर होने वाले हैं, उनके तीर्थकाल में ये मोक्ष को जायेंगे। (ति.प., 4/1449)
7. वर्तमान काल के बलदेवों के नाम बताइए?
विजय, अचल, धर्म, सुप्रभ, सुदर्शन, नन्दी, नन्दीमित्र, राम और पद्म (बलराम ) ये नौ बलभद्र हुए थे (ति.प.,4/1423)
8. नारायण एवं प्रतिनारायण का वैभव आदि बताइए ?
नारायण को वासुदेव एवं प्रतिनारायण को प्रतिवासुदेव भी कहते हैं । पूर्वभव में निदान सहित तपश्चरण कर स्वर्ग में देव होते हैं और वहाँ से च्युत होकर नारायण प्रतिनारायण का पद प्राप्त करते हैं । नारायण बलदेव के भाई होते हैं । नारायण - प्रतिनारायण की 16,000 - 16,000 रानियाँ होती हैं । नारायण के सात रत्न होते हैं-
1. सुदर्शन नामक चक्र 2 कौमुदी नामक गदा, 3. सौनन्दक नामक खड्ग 4. अमोघ मुखी शक्ति, 5. शार्ङ्गनामक धनुष, 6. महाध्वनि करने वाला पाँच मुख का पाञ्चजन्य नामक शङ्ख,7. अपनी कान्ति के भार से शोभायमान कौस्तुभ नामक महामणि। प्रत्येक रत्न की रक्षा 1000-1000 यक्ष देव करते हैं। (उ.पु., 68/675-677)
9. नारायण प्रतिनारायण में परस्पर में कैसा व्यवहार रहता है?
नारायण प्रतिनारायण का जन्मजात बैर रहता है । नारायण के द्वारा निज चक्र से प्रतिनारायण की मृत्यु होती है तथा दोनों नरक में जाते हैं ।
10. वर्तमान काल के नारायण एवं प्रतिनारायण के नाम बताइए ?
नारायण - 1. त्रिपृष्ठ, 2. द्विपृष्ठ, 3. स्वयम्भू, 4. पुरुषोत्तम, 5. पुरुषसिंह, 6. पुरुषपुण्डरीक,7. पुरुषदत्त, 8. लक्ष्मण, 9. कृष्ण (ति.प., 4/1424 )
प्रतिनारायण - 1. अश्वग्रीव, 2. तारक, 3. मेरक, 4. मधुकैटभ, 5. निशुम्भ 6 बलि 7. प्रहरण, 8. रावण, 9. जरासंघ ।
11. नारदों के बारे में बताइए ?
नारद नारायणों के समय में ही होते हैं तथा इनकी आयु नारायणों के समान ही होती है। ये कलहप्रिय एवं महायुद्ध प्रिय होने से वासुदेवों के समान ही नरक को प्राप्त होते हैं । कदाचित् धर्म से भी स्नेह रखते हैं । हिंसा में आनन्द मानते हैं तथा महाभव्य और जिनेन्द्र भगवान् के अनुगामी होते हैं। (ह.पु., 60/548-550 एवं ति.प., 4/1)
12 . वर्तमान काल के नारदों के नाम बताइए?
1. भीम, 2 . महाभीम, 3. रुद्र 4. महारुद्र, 5. काल 6. महाकाल, 7. दुर्मुख, 8 नरकमुख, 9 अधोमुख । (ति.प.,4/1481)
13. रुद्रों के बारे में बताइए ?
सभी रुद्र कुमारावस्था में दिगम्बरीय दीक्षा धारण कर घोर तपस्या करते हुए इन्हें ग्यारह अङ्ग का ज्ञान हो
जाता है किन्तु दसवें विद्यानुवाद पूर्व का अध्ययन करते समय विषयों के निमित्त तप से भ्रष्ट हो कर सम्यक्त्वरूपी रत्न रहित होते हुए घोर नरकों में डूब गए। ये भी भव्य होते हैं । (त्रि.सा., 841 एवं ति.प., 4/1454)
14. वर्तमान रुद्रों के नाम बताइए ?
1. भीमावली, 2. जितशत्रु, 3. रुद्र, 4. वैश्वानर ( विश्वानल), 5. सुप्रतिष्ठ, 6. अचल, 7. पुण्डरीक, 8. अजितन्धर, 9. अजित नाभि, 10 पीठ, 11. सात्यकिपुत्र ।
विशेष- तिलोयपण्णत्ती ग्रन्थ के अनुसार रुद्रों एवं नारदों की उत्पत्ति हुण्डावसर्पिणी काल में ही होती है।(ति.प.,4/1642)
15. कामदेवों के बारे में एवं उनके नाम बताइए ?
चौबीस तीर्थङ्करों के काल में अनुपम आकृति के धारक कामदेव होते हैं। वर्तमान कालीन कामदेवों के नाम इस प्रकार के हैं-
1. बाहुबली, 2. प्रजापति, 3. श्रीधर, 4 . दर्शनभद्र, 5. प्रसेनचन्द्र, 6 . चन्द्रवर्ण, 7. अग्निमुख, 8. सनत्कुमार, 9. वत्सराज, 10. कनकप्रभ, 11. मेघप्रभ, 12. शान्तिनाथ, 13. कुन्थुनाथ, 14. अरनाथ, 15. विजयराज, 16. श्रीचन्द्र, 17. नलराज, 18 हनुमन्त, 19. बलिराज, 20. वसुदेव, 21. प्रद्युम्न, 22. नागकुमार, 23. जीवन्धर, 24. जम्बूस्वामी।
16. कुलकर किन्हें कहते हैं ?
प्रजा के जीवन का उपाय जानने से मनु तथा आर्य पुरुषों को कुल की भाँति एकत्रित रहने का उपदेश देने से कुलकर कहलाते हैं । इन्होंने अनेक वंश स्थापित किए थे, इसलिए कुलधर कहलाते थे, तथा युग के आदि में होने से युगादि पुरुष भी कहे जाते हैं। इनकी संख्या चौदह होती है ।
विशेष -
- कुलकरों का विशेष कथन कुलकर नामक अध्याय में है ।
- चौबीस तीर्थङ्करों के माता-पिता के नामादि तिलोयपण्णत्ती ग्रन्थ से जानना चाहिए।
17. कुछ विशेष प्रसिद्ध हुए महापुरुषों के नाम बताइए?
- नाभिराय - चौदहवें कुलकर ।
- राजा श्रेयांस - दान तीर्थ के प्रवर्तक हस्तिनापुर के राजा ।
- भरत चक्रवर्ती- श्री ऋषभदेव के ज्येष्ठ पुत्र जिन्होंने दीक्षा लेते ही अन्तर्मुहूर्त में केवलज्ञान प्राप्त किया।
- बाहुबली - श्री ऋषभदेव के पुत्र, प्रथम कामदेव तप में प्रसिद्ध हुए। एक वर्ष तक कायोत्सर्ग आसन से खड़े रहे थे।
- रामचन्द्र- अष्टम बलभद्र जैनों के साथ-साथ वैष्णव धर्म में भी प्रसिद्ध हुए ।
- लक्ष्मण- 8 वाँ नारायण भातृ प्रेम में प्रसिद्ध हुए ।
- हनुमान -18 वाँ कामदेव । राम की पार्टी के सक्रिय कार्यकर्त्ता ।
- रावण - 8वाँ प्रतिनारायण नियम पालने में एवं भगवान् की भक्ति में प्रसिद्ध हुए ।
- कृष्ण - 9 वाँ नारायण । एक मुनि की चिकित्सा कराने में प्रसिद्ध हुए ।
- तीर्थङ्कर पार्श्वनाथ - घोर उपसर्ग विजेता ।
- महादेव - 11 वाँ रुद्र पार्वती का पति ।
- तीर्थङ्कर महावीर - सबसे कम समय तक तीर्थङ्कर पद पर रहने वाले ।
- तीर्थङ्कर- उनके माता - पिता, बलभद्र, चक्रवर्ती, अर्द्धचक्रवर्ती, देव और भोगभूमियाँ इनके आहार तो होता है किन्तु नीहार (मल-मूत्र ) नहीं होता है ।(बो. पा. टी., 32)
****