जिससे अपने राष्ट्र की, धर्म की एवं समूह (पार्टी) की पहचान होती है। वह ध्वज कहलाता है । जैन ध्वज कैसा होता है, उसके बारे में इस अध्याय में पढ़ेगे ।
1. ध्वज एवं जैन ध्वज क्या है ?
ध्वज प्रत्येक राष्ट्र की राष्ट्रीयता का प्रतीक होता है जिसके नीचे सभी देशवासी संगठित होकर राष्ट्र के सुख, समृद्धि, शान्ति एवं सुरक्षा हेतु संकल्पित होते हैं और अपने प्राणों की चिन्ता न करते हुए ध्वज की प्रतिष्ठा बनाए रखते हैं ।
इसी प्रकार जैन ध्वज को भी अनादि काल से मान्यता प्राप्त है । क्योंकि तीर्थङ्करों का समवसरण, अकृत्रिम चैत्यालयों, देवों के विमान एवं जिनमन्दिर बिना ध्वज के नहीं रहते हैं ।
2. जैन ध्वज में कितने रङ्गव कौन-कौन से होते हैं ?
जैन ध्वज में पाँच रंग होते हैं- श्वेत, लाल, पीला, हरा एवं काला ।
विशेष -
उपाध्याय परमेष्ठी का रङ्ग किन्हीं ने हरा, किन्हीं ने नीला एवं किन्हीं ने काला भी माना है । इसी प्रकार साधु परमेष्ठी का रङ्ग किन्हीं ने काला एवं किन्हीं ने नीला भी माना है । जैसा कि-
मानसार ग्रन्थ के अध्याय 35 (स्थापत्य एवं मूर्तिकला) में इस प्रकार कहा है-
स्फटिकं श्वेतं रक्तं च, पीतश्यामनिभं तथा ।
एतत्पञ्चपरमेष्ठिनः पञ्चवर्णं यथाक्रमम् ॥
यहाँ रङ्ग क्रमशः श्वेत, लाल, पीला, काला (उपाध्याय का ) एवं नीला (साधुका)
3. पञ्चवर्ण का फल बताइए ?
शान्तौ श्वेतं जये श्यामं भद्रे रक्तमभये हरित् ।
पीतं धनादिसंलाभे, पञ्चवर्ण तु सिद्धये ।।138 ।। (उ. श्रा . )
- श्वेत वर्ण शान्ति का प्रतीक है ।
- श्याम वर्ण विजय का सूचक है ।
- रक्तवर्ण कल्याण का कारक है ।
- हरितवर्ण अभय को दर्शाता है |
- पीतवर्ण धनादि के लाभ का दर्शक है ।
विशेष-
श्वेत रङ्ग - श्वेत रङ्ग अरिहन्त परमेष्ठी के केवल ज्ञान का प्रतीक है। उन्होंने घातिया कर्मों की कालिमा नष्ट करके अन्तरङ्ग में निर्मलता प्राप्त करके उपदेश के माध्यम से विश्वशान्ति का मार्ग प्रशस्त किया।
लाल रङ्ग - लाल रङ्ग सिद्ध परमेष्ठी का प्रतीक है तथा यह रङ्ग शौर्य या पुरुषार्थ का प्रतीक है और सिद्ध पद पुरुषार्थ की चरम सीमा है।
पीला रङ्ग- पीला रङ्ग वात्सल्य का प्रतीक है, आचार्य परमेष्ठी अपने वात्सल्य भाव से शिष्य दीक्षित करते हैं। अनुशासनपूर्वक उन्हें धर्म मार्ग पर चलाते हैं, व्रतों में दोष लगने पर प्रायश्चित्त देकर उन्हें धर्म में स्थिर करते हैं ।
हरा रङ्ग- हरा रङ्ग उपाध्याय परमेष्ठी के ज्ञान का प्रतीक है, अज्ञान दूर होते ही शाश्वत सुख-समृद्धि का मार्ग खुल जाता है । ये परमेष्ठी स्वयं पढ़ते एवं संघ के साधुओं / शिष्यों को पढ़ाते हैं व सम्यग्ज्ञान का मार्ग प्रशस्त करते हैं 1
काला रङ्ग- काला रङ्ग साधु परमेष्ठी के उस वैराग्य का प्रतीक है, जिस पर कोई रङ्ग नहीं चढ़ सकता है।
4. समवसरण की ध्वजा भूमि में कुल कितनी ध्वजाएँ होती हैं ?
ध्वजभूमि में सिंह, गज, वृषभ, गरुड़, मयूर, चन्द्र, सूर्य, हँस, पद्म और चक्र इन चिह्नों से चिह्नित दस प्रकार की होती हैं । चारों दिशाओं में से प्रत्येक दिशा में इन दस प्रकार की ध्वजाओं में से एक-एक, एक सौ आठ रहती हैं और इन में भी प्रत्येक ध्वजा अपनी एक सौ आठ क्षुद्रध्वजाओं से संयुक्त होती हैं।
महाध्वजा 10 x 108 × 4 = 4320
श्रुद्रध्वजा 10×108×108×4 = 4,66,560
कुल = 4,70,880
विशेष - ध्वज को जिनशासन की प्रभावना का प्रतीक माना जाता है इसी कारण " श्री जी " की शोभा यात्रा मे मुनिराज के आगमन एवं गमन के समय श्रावक जैनध्वज को आगे लेकर चलते हैं । इतना ध्यान रखना चाहिए कि यह ध्वज, नौकर, माली आदि लेकर न जाए। श्रावक को लेकर चलना चाहिए यह तुम्हारा सौभाग्य है कि तुम्हें " श्री जी" या मुनिराज के आगे जैनध्वज लेकर चलने को मिल रहा है ।
- प्रत्येक जैन श्रावक को अपने घर में पञ्चरङ्गी जैनध्वज को लगाना चाहिए ।
- जैन ध्वज के बीच में जो स्वास्तिक है, वह शाश्वत एवं शुभकार हैं ।
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