Jump to content
नव आचार्य श्री समय सागर जी को करें भावंजली अर्पित ×
अंतरराष्ट्रीय मूकमाटी प्रश्न प्रतियोगिता 1 से 5 जून 2024 ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • अध्याय 14 - जैनधर्म तथा हिन्दूधर्म की तुलनात्मक विशेषताएँ

       (0 reviews)

    Vidyasagar.Guru

    जैनधर्म अनादिनिधन है। जैनधर्म का कोई आदि नहीं है और न कोई अन्त है। हिन्दूधर्म की उत्पत्ति किससे हुई आदि का तुलनात्मक विश्लेषण इस अध्याय में है।


    1. जैनधर्म एवं हिन्दू धर्म की तुलनात्मक विशेषताएँ बताइए ?

    जैनधर्म हिन्दूधर्म
    1. जैन धर्म शाश्वत है । 1.वैदिक धर्म का उद्गम वेद है।
    2. तीर्थङ्कर ऋषभदेव एवं महावीर जैन धर्म के संस्थापक नहीं, अपितु प्रचारक थे। 2.वेद की विभिन्न ऋचाओं के लेखक ऋषि थे।
    3. सिन्धु घाटी की सभ्यता में जैनधर्म के अस्तित्व के प्रमाण हैं। 3. सिन्धु घाटी की सभ्यता के बहुत बाद वैदिक आर्य आए।
    4. जैनधर्म के अनुसार मनुष्य सर्वज्ञ हो सकता है। 4. ब्रह्मा, विष्णु, महेश ही सर्वज्ञ हैं । मनुष्य सर्वज्ञ नहीं हो सकता है।
    5. जैनधर्म के अनुसार ईश्वर सृष्टिकर्ता नहीं है। 5.वैदिक धर्म के अनुसार ईश्वर सृष्टिकर्ता है।
    6. जैनों के मूल ग्रन्थों की भाषा प्राकृत है। 6.हिन्दुओं के मूल ग्रन्थों की भाषा संस्कृत है।
    7. शूद्र भी धर्म श्रवण एवं धर्मपालन का अधिकारी है।(सा.ध.,2/22) 7.शूद्र वेद को सुनने तथा धार्मिक अनुष्ठान करने का अधिकारी नहीं है।
    8. मोक्ष हेतु पुत्र आवश्यक नहीं है। 8. पुत्रोत्पत्ति के बिना कोई व्यक्ति मोक्ष प्राप्त नहीं कर सकता है।
    9. दिगम्बर साधु नवधा भक्ति पूर्वक आहार लेते हैं। 9. हिन्दू संन्यासी नवधा भक्ति के बिना आहार लेते हैं।
    10. जैनों में श्राद्ध प्रथा नहीं है । 10. हिन्दुओं में पितरों के लिए श्राद्ध करने की परम्परा है।
    11. पुरातात्त्विक प्रमाणों से सिद्ध होता है कि जैन प्रतिमाएँ और मन्दिरों का निर्माण हिन्दुओं से पुराना है । 11. हिन्दुओं में मूर्तिपूजा और मन्दिर निर्माण जैनों के बाद प्रारम्भ हुआ।
    12. राम शलाका पुरुष थे वे विष्णु के अवतार नहीं थे। 12. राम विष्णु के अवतार थे ।
    13. जैन धर्म ब्रह्मा, विष्णु और महेश को मान्यता नहीं देता है । 13. हिन्दुओं में ब्रह्मा, विष्णु, महेश इन तीनों की मान्यता है ।
    14.तीर्थङ्करों की गृहस्थावस्था की पत्नियों की पूजा नहीं की जाती है। संन्यस्त जीवन में परिग्रह का पूर्ण अभाव है। 14. विष्णु - लक्ष्मी, शिव-पार्वती, कृष्ण - रुक्मणी, राम-सीता आदि दम्पत्ति की पूजा की जाती है ।
    15. जैनों का मूल मन्त्र णमोकार मन्त्र है । 15. हिन्दुओं का मूल मन्त्र गायत्री मन्त्र है।
    16. जैन धर्म निवृत्ति प्रधान है । 16. हिन्दूधर्म प्रवृत्ति प्रधान है ।
    17. जैनधर्म अवतार बाद को नहीं मानते हैं । 17. हिन्दूधर्म अवतार बाद को मानते हैं ।
    18. जैनधर्म के अनुसार कर्म स्वत: फल देते हैं । 18. हिन्दूधर्म के अनुसार कर्मों का फल ईश्वर देते हैं ।
    19. जैनों में रात्रि भोजन निषेध है, इसका पालन बहुतायत होता है। 19. कहीं-कहीं रात्रि भोजन का निषेध किया गया है, किन्तु इसका पालन बहुतायत से नहीं होता है ।
    20.वस्तु स्वातन्त्र्य जैनधर्म की विशेषता है। 20. हिन्दूधर्म में वस्तु ईश्वराधीन है।
    21.जैनधर्म की परिभाषा बहुत स्पष्ट है । 21. हिन्दूधर्म की परिभाषा स्पष्ट नहीं है ।
    22. अष्टाविध कर्म विभाजन जैन शास्त्रों में मिलता है । 22. हिन्दू शास्त्रों में कर्म का जैनों जैसा अष्टविध विभाजन नहीं मिलता है ।
    23. जैनधर्म के अनुसार सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र इन तीनों की एकता मोक्ष का मार्ग है । 23. हिन्दूधर्म भिन्न-भिन्न मार्गों से मोक्ष मानता है ।
    24. तीर्थङ्करों की मूर्ति पूजा का लक्ष्य गुणों की प्राप्ति है । 24. हिन्दू पूजा का लक्ष्य वरदान प्राप्ति तथा सांसारिक अभ्युदय की प्राप्ति भी है।


    2. जैन तथा हिन्दू संन्यास में अन्तर बताइए ?

    जैन संन्यास हिन्दू संन्यास
    1. अपनी सारी सम्पत्ति कहीं बाँटना आवश्यक नहीं ।अपने परिवार वालों को सौंपकर संन्यास ग्रहण किया जा सकता है । 1. अपनी सारी सम्पत्ति पुरोहितों, दरिद्रों एवं असहायों को बाँट देनी चाहिए।
    2. मोक्ष की चिन्ता के लिए वेद अध्ययन, सन्तानोत्पत्ति एवं यज्ञों की आवश्यकता नहीं है । 2. वेदाध्ययन, सन्तानोत्पत्ति एवं यज्ञों के उपरान्त तथा देवऋण, ऋषिऋण और पितृऋण चुकाने के उपरान्त ही मोक्ष की चिन्ता करनी चाहिए।
    3. कोई व्यक्ति बच्चों एवं पत्नी का प्रबन्ध किए बिना संन्यासी हो सकता है । 3. जो व्यक्ति बच्चों एवं पत्नी का प्रबन्ध किए बिना संन्यासी हो जाता है, उसे साहसदण्ड मिलता है ।
    4. संन्यासी (साधु) को एकलविहारी नहीं होना चाहिए । 4. संन्यासी को सदा अकेले घूमना चाहिए, नहीं तो मोह तथा विछोह से पीड़ित हो सकता है।
    5. संन्यासी (साधु) के लिए स्नानवर्जित है । 5. संन्यासी के लिए स्नान अनिवार्य है।
    6. जैन मुनि को जटा रखने का निषेध है। वे केशलोंच करते हैं। 6. संन्यासी चाहे तो मुण्डित रहें या जटा रखें।
    7. नारियाँ संन्यास धारण कर सकती है। सन्तानोत्पत्ति धार्मिक कार्य न होकर सांसारिक कार्य है । 7. नारियों के लिए संन्यासाश्रम में प्रविष्ट होने की व्यवस्था नहीं है। उनका उचित धर्म है । अपनी जाति के पुरुषों से सन्तानोत्पत्ति करना ।

     

    ***

     


    User Feedback

    Create an account or sign in to leave a review

    You need to be a member in order to leave a review

    Create an account

    Sign up for a new account in our community. It's easy!

    Register a new account

    Sign in

    Already have an account? Sign in here.

    Sign In Now

    There are no reviews to display.


×
×
  • Create New...