जैनधर्म अनादिनिधन है। जैनधर्म का कोई आदि नहीं है और न कोई अन्त है। हिन्दूधर्म की उत्पत्ति किससे हुई आदि का तुलनात्मक विश्लेषण इस अध्याय में है।
1. जैनधर्म एवं हिन्दू धर्म की तुलनात्मक विशेषताएँ बताइए ?
जैनधर्म | हिन्दूधर्म |
---|---|
1. जैन धर्म शाश्वत है । | 1.वैदिक धर्म का उद्गम वेद है। |
2. तीर्थङ्कर ऋषभदेव एवं महावीर जैन धर्म के संस्थापक नहीं, अपितु प्रचारक थे। | 2.वेद की विभिन्न ऋचाओं के लेखक ऋषि थे। |
3. सिन्धु घाटी की सभ्यता में जैनधर्म के अस्तित्व के प्रमाण हैं। | 3. सिन्धु घाटी की सभ्यता के बहुत बाद वैदिक आर्य आए। |
4. जैनधर्म के अनुसार मनुष्य सर्वज्ञ हो सकता है। | 4. ब्रह्मा, विष्णु, महेश ही सर्वज्ञ हैं । मनुष्य सर्वज्ञ नहीं हो सकता है। |
5. जैनधर्म के अनुसार ईश्वर सृष्टिकर्ता नहीं है। | 5.वैदिक धर्म के अनुसार ईश्वर सृष्टिकर्ता है। |
6. जैनों के मूल ग्रन्थों की भाषा प्राकृत है। | 6.हिन्दुओं के मूल ग्रन्थों की भाषा संस्कृत है। |
7. शूद्र भी धर्म श्रवण एवं धर्मपालन का अधिकारी है।(सा.ध.,2/22) | 7.शूद्र वेद को सुनने तथा धार्मिक अनुष्ठान करने का अधिकारी नहीं है। |
8. मोक्ष हेतु पुत्र आवश्यक नहीं है। | 8. पुत्रोत्पत्ति के बिना कोई व्यक्ति मोक्ष प्राप्त नहीं कर सकता है। |
9. दिगम्बर साधु नवधा भक्ति पूर्वक आहार लेते हैं। | 9. हिन्दू संन्यासी नवधा भक्ति के बिना आहार लेते हैं। |
10. जैनों में श्राद्ध प्रथा नहीं है । | 10. हिन्दुओं में पितरों के लिए श्राद्ध करने की परम्परा है। |
11. पुरातात्त्विक प्रमाणों से सिद्ध होता है कि जैन प्रतिमाएँ और मन्दिरों का निर्माण हिन्दुओं से पुराना है । | 11. हिन्दुओं में मूर्तिपूजा और मन्दिर निर्माण जैनों के बाद प्रारम्भ हुआ। |
12. राम शलाका पुरुष थे वे विष्णु के अवतार नहीं थे। | 12. राम विष्णु के अवतार थे । |
13. जैन धर्म ब्रह्मा, विष्णु और महेश को मान्यता नहीं देता है । | 13. हिन्दुओं में ब्रह्मा, विष्णु, महेश इन तीनों की मान्यता है । |
14.तीर्थङ्करों की गृहस्थावस्था की पत्नियों की पूजा नहीं की जाती है। संन्यस्त जीवन में परिग्रह का पूर्ण अभाव है। | 14. विष्णु - लक्ष्मी, शिव-पार्वती, कृष्ण - रुक्मणी, राम-सीता आदि दम्पत्ति की पूजा की जाती है । |
15. जैनों का मूल मन्त्र णमोकार मन्त्र है । | 15. हिन्दुओं का मूल मन्त्र गायत्री मन्त्र है। |
16. जैन धर्म निवृत्ति प्रधान है । | 16. हिन्दूधर्म प्रवृत्ति प्रधान है । |
17. जैनधर्म अवतार बाद को नहीं मानते हैं । | 17. हिन्दूधर्म अवतार बाद को मानते हैं । |
18. जैनधर्म के अनुसार कर्म स्वत: फल देते हैं । | 18. हिन्दूधर्म के अनुसार कर्मों का फल ईश्वर देते हैं । |
19. जैनों में रात्रि भोजन निषेध है, इसका पालन बहुतायत होता है। | 19. कहीं-कहीं रात्रि भोजन का निषेध किया गया है, किन्तु इसका पालन बहुतायत से नहीं होता है । |
20.वस्तु स्वातन्त्र्य जैनधर्म की विशेषता है। | 20. हिन्दूधर्म में वस्तु ईश्वराधीन है। |
21.जैनधर्म की परिभाषा बहुत स्पष्ट है । | 21. हिन्दूधर्म की परिभाषा स्पष्ट नहीं है । |
22. अष्टाविध कर्म विभाजन जैन शास्त्रों में मिलता है । | 22. हिन्दू शास्त्रों में कर्म का जैनों जैसा अष्टविध विभाजन नहीं मिलता है । |
23. जैनधर्म के अनुसार सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र इन तीनों की एकता मोक्ष का मार्ग है । | 23. हिन्दूधर्म भिन्न-भिन्न मार्गों से मोक्ष मानता है । |
24. तीर्थङ्करों की मूर्ति पूजा का लक्ष्य गुणों की प्राप्ति है । | 24. हिन्दू पूजा का लक्ष्य वरदान प्राप्ति तथा सांसारिक अभ्युदय की प्राप्ति भी है। |
2. जैन तथा हिन्दू संन्यास में अन्तर बताइए ?
जैन संन्यास | हिन्दू संन्यास |
---|---|
1. अपनी सारी सम्पत्ति कहीं बाँटना आवश्यक नहीं ।अपने परिवार वालों को सौंपकर संन्यास ग्रहण किया जा सकता है । | 1. अपनी सारी सम्पत्ति पुरोहितों, दरिद्रों एवं असहायों को बाँट देनी चाहिए। |
2. मोक्ष की चिन्ता के लिए वेद अध्ययन, सन्तानोत्पत्ति एवं यज्ञों की आवश्यकता नहीं है । | 2. वेदाध्ययन, सन्तानोत्पत्ति एवं यज्ञों के उपरान्त तथा देवऋण, ऋषिऋण और पितृऋण चुकाने के उपरान्त ही मोक्ष की चिन्ता करनी चाहिए। |
3. कोई व्यक्ति बच्चों एवं पत्नी का प्रबन्ध किए बिना संन्यासी हो सकता है । | 3. जो व्यक्ति बच्चों एवं पत्नी का प्रबन्ध किए बिना संन्यासी हो जाता है, उसे साहसदण्ड मिलता है । |
4. संन्यासी (साधु) को एकलविहारी नहीं होना चाहिए । | 4. संन्यासी को सदा अकेले घूमना चाहिए, नहीं तो मोह तथा विछोह से पीड़ित हो सकता है। |
5. संन्यासी (साधु) के लिए स्नानवर्जित है । | 5. संन्यासी के लिए स्नान अनिवार्य है। |
6. जैन मुनि को जटा रखने का निषेध है। वे केशलोंच करते हैं। | 6. संन्यासी चाहे तो मुण्डित रहें या जटा रखें। |
7. नारियाँ संन्यास धारण कर सकती है। सन्तानोत्पत्ति धार्मिक कार्य न होकर सांसारिक कार्य है । | 7. नारियों के लिए संन्यासाश्रम में प्रविष्ट होने की व्यवस्था नहीं है। उनका उचित धर्म है । अपनी जाति के पुरुषों से सन्तानोत्पत्ति करना । |
***