जैनधर्म अनादिनिधन धर्म है। इसका पालन जैन तो करता है । किन्तु इनके अलावा अजैनों में वह देशवासी हो या विदेशी हो उनमें भी जैनत्व पाया जाता है । उसी का वर्णन इस अध्याय में है।
1.सम्राट अशोक का विवाह लिच्छिवी वंश की राजकुमारी से हुआ वह आलू-प्याज का सेवन करती थी । दिव्यवादन ग्रन्थ (संस्कृत) में लिखा रानी ने अशोक के भोजन में प्याज परोसा तब अशोक ने कहा- हे देवि ! मैं उच्च कुलीन हूँ । प्याज ग्रहण नहीं करता। ये प्याज हटाओ । यह अशोक का कुलीन परम्परा के प्रति आचरण।
2. भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम की लड़ाई में जिन्होंने सत्य और अंहिसा के बल पर भारत को सैकड़ों वर्षों की अंग्रेजों की गुलामी से स्वतन्त्र कराया, ऐसे राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी का जीवन जैन संस्कारों से प्रभावित था। जब मोहनदास करमचन्द गाँधी ने अपनी माता पुतलीबाई से पढ़ाई के लिए विदेश जाने की अनुमति माँगी तब उनकी माँ ने अनुमति प्रदान नहीं की, क्योंकि माँ को सन्देह था कि यह विदेश जाकर माँस आदि का भक्षण करने न लग जाए। उस समय एक जैन मुनि बेचर जी स्वामी के समक्ष गाँधी के द्वारा तीन प्रतिज्ञा (माँस, शराब व परस्त्री सेवन का त्याग) लेने पर माँ ने विदेश जाने की अनुमति दी । इस तथ्य को गाँधी जी ने अपनी आत्मकथा सत्य के प्रयोग, पृष्ठ 32 पर लिखा है।
3. अपने भारत देश के पूर्व प्रधानमन्त्री मोरारजी देसाई विदेश में एक सभा में गए। पूरा दिन बीत गया। सायंकाल भोजन का समय होते ही, देसाईजी सभा से मौनपूर्वक उठकर चले गए और भोजन कर पुन: सभा में आकर बैठ गए। सभा संचालक को यह व्यवहार अच्छा नहीं लगा । पूछा देसाईजी से आप सभा का अनुशासन भङ्गकर बीच में ही उठकर क्यों चले गए। देसाई जी ने कहा- मैं भोजन करने गया था संचालक महोदय ने कहा भोजन के लिए यह समय ठीक नहीं था। भोजन तो बाद में भी किया जा सकता था देसाई जी ने कहा कि मैं राजनीति के लिए धर्मनीति का त्याग नहीं कर सकता। मैं रात्रि भोजन नहीं करता अत: दिन में मेरा भोजन करना कर्त्तव्य है । यह है भारत के पूर्व प्रधानमन्त्री की मिशाल।
4. ईस्वी सन् 1981 गोम्मटेश्वर बाहुबली के महामस्तकाभिषेक के कार्यक्रम देश की तत्कालिन प्रधानमन्त्री श्रीमती इन्द्रा गाँधी का जाना हुआ और जब वापस संसद में आई तो सांसदों ने चुटकी ली अब तो आप जैन हो गई । तब इन्द्रा गाँधी ने कहा मैं क्या सारा भारत जैन है क्योंकि हमारा देश सत्य अहिंसा पर विश्वास रखता है एवं जैनधर्म का मूल सिद्धान्त भी सत्य अहिंसा है।
5. राजस्थान के मुख्यमन्त्री अशोक गहलोत आलू-प्याज भी नहीं खाते हैं । कारण कि उन्होंने एक जैन स्कूल में पढ़ाई की। धर्म की शिक्षा देने वाले शिक्षक कहते थे । जमीकन्द खाओगे तो पैर मजबूत होंगे, बुद्धि नहीं और ऊपर के फल खाओगे तो बुद्धि भी मजबूत एवं पैर भी मजबूत होंगे। अत: उन्होंने विद्यार्थी जीवन से ही आलू-प्याज का सेवन नहीं किया।
6. मध्यप्रदेश के तत्कालीन मुख्यमन्त्री (2005 - 2018 ) शिवराज सिंह चौहान कहते मैं जन्म से क्षत्रिय हूँ किन्तु कर्म से जैन हूँ । इस मुख्यमन्त्री की दो विशेषताएँ प्रथम दशलक्षण पर्व के बाद ये विधानसभा में क्षमावाणी मनाते हैं दूसरी यह कि इनकी घोषणा है जब तक मैं मुख्यमन्त्री के पद पर रहूँगा मध्यप्रदेश में किसी की आँगनवाणी में भोजन में अण्डे नहीं दिए जाएँगे। 23 मार्च 2020 को पुनः मुख्यमंत्री पद पर भी स्कूल आसीन हुए।
7. यदि पुनर्जन्म की अवधारणा यथार्थ है, तो मैं मरकर अगले जन्म में किसी जैन परिवार में ही जन्म लेना चाहूँगा। (जार्ज बनार्ड सा)
8.महावीर जयन्ती के अवसर पर महावीर दर्शन के माध्यम से वैश्विक चुनौतियों का समाधान विषय पर आयोजित संगोष्ठी में भारत के राष्ट्रपति श्री प्रणव मुखर्जी का अभिभाषण राष्ट्रपति भवन 22-04-2013 मुझे महावीर जयन्ती के कुछ दिन पूर्व महावीर दर्शन के माध्यम से वैश्विक चुनौतियों का समाधान विषय पर आयोजित संगोष्ठी के अवसर पर आपके बीच आकर प्रसन्नता हो रही है। मैं इस अवसर पर आप सभी को हार्दिक बधाई देता हूँ।
मौजूदा समय के लिए अत्यन्त प्रासंगिक विषय पर संगोष्ठी के आयोजन के लिए, मैं अहिंसा विश्व भारती को बधाई देता हूँ। ऐसे समय में जब विश्व के समक्ष बहुत सी चुनौतियाँ मौजूद है और हम उनके समाधान के उपाय ढूँढ़ रहे हैं । भगवान् महावीर द्वारा प्रतिपादित दर्शन एवं उपदेश बहुत महत्व रखते हैं। समय आ गया है कि हम उनके सन्देशों और उपदेशों को आज की समस्याओं का समाधान ढूँढ़ने के अपने प्रयासों में सबसे आगे रखें।
उन्होंने अपने जीवन काल में बहुत सी सामाजिक कुरीतियों की समाप्ति और समाज सुधार के लिए सम्यक् आस्था, सम्यक् ज्ञान और सम्यक् आचरण के सिद्धान्तों का प्रयोग किया। उन्होंने स्त्री दासता, महिलाओं के समान दर्जे और सामाजिक दर्जे और सामाजिक समता जैसे विषयों पर सामाजिक प्रगति की शुरुआत की।
भगवान् महावीर के उपदेश आज भी अत्यन्त समीचीन और प्रासंगिक हैं । उन्होंने उपदेश दिया कि कोई भी जन्म से निर्धन या धनी नहीं होता । उन्होंने कहा मनुष्य जन्म से नहीं कर्म से महान् होता है। ऐसे सिद्धान्त पर अमल करने से आधुनिक समाज के निर्माताओं द्वारा संकल्पित न्याय पूर्ण सामाजिक व्यवस्था के आदर्श को बढ़ावा मिलेगा।
भगवान् महावीर के दर्शन के तीन सिद्धान्त अहिंसा, अनेकान्तवाद और अपरिग्रहवाद बहुत-सी आधुनिक समस्याओं का समाधान प्रस्तुत कर सकते हैं।
9.मुख्यमन्त्री निवास पर मना क्षमावाणी पर्व- भोपाल (मध्यप्रदेश) सर्वधर्म समभाव की परम्परा को आगे बढ़ाते हुए आज (14-09-2014) यहाँ मुख्यमन्त्री निवास में क्षमावाणी पर्व मनाया गया। मुख्यमन्त्री श्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि वीर ही क्षमा माँग सकते हैं और क्षमा कर सकते हैं । क्षमा करने वाला और माँगने वाला ही जैन है। सबको सच्चा और अच्छा जैन बनने की कोशिश करना चाहिए । तथा मुख्यमन्त्री द्वारा यह घोषणा भी हुई कि आचार्य श्री विद्यासागरजी द्वारा रचित मूकमाटी महाकाव्य के प्रमुख अंश को उच्च शिक्षा के पाठ्यक्रम में शामिल किया जाएगा, साथ ही इसे हिन्दी विश्व विद्यालय के पाठ्यक्रम में शामिल किया जाएगा। (साभार पत्रिका भोपाल 15-09-2014)
10.प्रधानमन्त्री कनाडा पॉल एडगर फिलीपि मार्टिन तारीख 18-01-2005 को । श्रीमान् वेन जियाबो चीन के प्रधानमन्त्री तारीख 11-04-2005 को । मलेशिया के प्रधान मन्त्री श्रीमान् अब्दुल्ला बिन हाजी अहमद वदावी तारीख 20-12-2004 को । मोरक्को के प्रधानमन्त्री श्रीमान् ड्रिसजेट्टू तारीख 7-12- 2004 को । तथा पाकिस्तान के प्रधानमन्त्री शौकत अज़ीज तारीख 24-11-2004 को भारत के राष्ट्रपति डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम से राष्ट्रपति भवन में दिगम्बर जैन प्रतिमा के सामने वार्तालाप करते हुए।
11. कुण्डलपुर (बिहार) में नन्द्यावर्त राजप्रसाद का जिनालय का निर्माण हुआ, तब अनेक लोकार्पण हेतु भारत के तत्कालीन महामहिम राष्ट्रपति श्री ए. पी. जे अब्दुल कलाम को आमन्त्रित किया गया था। जब वे वायुयान से कुण्डलपुर की धरा पर उतरे तब उन्होंने अपने जूते, मोजे उतार दिए और अपना बटुवा (पर्स), चमड़े का कमरपट्टा (बेल्ट) उतारकर अपने निजी सहायक को दे दिए और घुटनों के बल धरती पर बैठ गए और वहाँ की मिट्टी को अपने मस्तक से लगाया और लोकार्पण करने हेतु जिनालय पहुँच गए। लोगों ने उनसे पूछा आपने मिट्टी को मस्तक से क्यों लगाया - तब उनका जवाब था कि इस पावन धरा पर कभी महावीर ने पद विहार किया था। यहाँ का तो कण-कण पवित्र और पावन है। मैंने तो महावीर की चरण धूली को अपने मस्तक पर तिलक रूप में धारण किया है।
12. भारतीय समाज पर जैनधर्म का स्थायी प्रभाव-
भारत के उपराष्ट्रपति श्री आर. वेंकटरमण ने नई दिल्ली में 20 जुलाई 1986 को एलाचार्य मुनि श्री विद्यानन्द जी के चातुर्मास स्थापना समारोह में जो अभिभाषण दिया था उसके कतिपय मुख्यांश यहाँ प्रस्तुत हैं।
वास्तव में जैनधर्म का प्रभाव कभी भी कम नहीं हुआ । यह हो भी नहीं सकता क्योंकि जैनधर्म के सिद्धान्त सार्वकालिक हैं। और हमेशा उपयोगी तथा जनमानस की चेतना में बसे हुए हैं।
अहिंसा का सिद्धान्त आज विश्वस्तर पर इतना अधिक मान्य है, कि प्रत्येक जागरुक व्यक्ति चाहे वह किसी धर्म का हो, उसे आधारभूत मानवीय मूल्य के रूप में स्वीकार करता है।
वास्तव में जैनधर्म ने हिन्दूधर्म को इतना अधिक प्रभावित किया है कि शाकाहार, समय-समय पर व्रत-उपवास और अपरिग्रह हिन्दूधर्म के भी अनिवार्य अङ्ग बन गए हैं।
आज आम जनता हिंसा को बुरी निगाह से देखती है । मानव विचारधारा पर जैनधर्म का जबरदस्त प्रभाव है।
वर्तमान काल में महात्मा गाँधी पर जैनधर्म का अत्यधिक प्रभाव पड़ा था। एक व्यक्ति जो महात्मा गाँधी का लगभग गुरु ही बन गए, वे थे श्री रायचन्द्र जी।
हम सब जानते हैं कि गाँधी जी ने धर्म के पाँच व्रतों पर कितना अधिक जोर दिया। उन्होंने इन पाँच व्रतों को अपनी दैनिक प्रार्थना में शामिल किया । अहिंसा में गाँधीजी का दृढ़ विश्वास और समय-समय पर अनशन करने पर बल तथा विभिन्न वर्गों के लोगों को एक सूत्र में बाँधने के उनके प्रयत्न यही जाहिर करते हैं कि उनके जीवन पर जैनधर्म का कितना गहरा प्रभाव पड़ा था।
जैनधर्म का एक बहुत महत्त्वपूर्ण योगदान स्याद्वाद जो मानवता के सिद्धान्तों स्याद्वाद विभिन्न दृष्टिकोणों को मानता है । और इस सम्भावना को स्वीकार करता है कि परस्पर विरोधी बातें किसी विशेष दृष्टिकोण के अभाव पर अपनी-अपनी जगह सच हो सकती हैं।
स्याद्वाद सह अस्तित्व का सिद्धान्त है । यह एक सागर की तरह है जिसमें सारे वाद समाहित हो जाते हैँ। भारत में अनेक पन्थ और धर्म हैं। स्याद्वाद यह मानता है कि सभी धार्मिक विचारों का लक्ष्य उनकी पूर्ति है । इसलिए पारस्परिक सद्भाव और समझ से सभी धर्मों का समन्वय किया।
विश्वशान्ति और गुटनिरपेक्ष के प्रति हमारी नीति का मुख्य आधार अहिंसा ही है। महावीर ने घोषणा की थी कि अहिंसा से सभी प्राणियों को सुख की प्राप्ति होती है। (साभार- जैन सिद्धान्त भास्कर सम्पादक - डॉ. ज्योतिप्रसाद जैन )
13. केनिया क्रिकेट टीम के एक सदस्य हीरेन वारिया है। ये प्रभु वर्धमान महावीर के अनुयायी हैं। हीरेन की माता हीरेन को आलू-प्याज, लहसुन आदि के त्याग करा रखे हैं । हीरेन वेस्टइण्डीज के दौरे पर क्रिकेट खेलने गए तो उनके निरामिष भोजन में प्याज, लहसुन आदि मिला हुआ था। उन्होंने भोजन ग्रहण करने से मना कर दिया और जब तक केनिया क्रिकेट दल वेस्टइण्डीज दौरे पर रहा हीरेन दही चावल आदि खाकर काम चलाते रहे।
14. अमेरिका के प्रदेश मिशिगन की संसद में जैन सोसाइटी ऑफ डिटरोइट (जैन संस्था) फार्मिगटन हिल्स (शहर) से अल्प संख्यक की ओर से श्री मनीष मेहता को एक विशेष कार्यक्रम में अतिथि के रूप में आमन्त्रित किया गया था, संसद में उनको वक्तव्य देने का अवसर प्राप्त हुआ।
सदन अध्यक्ष ने बहुत ही सम्मान के साथ उन्हें आमन्त्रित किया। उन्होंने नमस्कार मन्त्र का अर्थ बताते हुए सिर झुका कर नमस्कार किया।
महामन्त्र के बाद उन्होंने "मेरी भावना" को जैन प्रार्थना कहा। अन्त में श्री मनीष मेहता ने सभी को धन्यवाद देते हुए जय जिनेन्द्र कर के अपना वक्तव्य समाप्त किया।
15. मुस्लिम कवि अब्दुल गफ्फार अपनी काव्य रचना का पाठ करते हुए णमोकार मन्त्र की महिमा बताते हुए कहा कि विश्व में हजारों मन्त्र हैं कुछ मन्त्र वशीकरण करते हैं, कुछ मन्त्र वैवाहिक बन्धन में बाँधते हैं पर णमोकार महामन्त्र सभी मन्त्रों का राजा है जो आत्म कल्याण कराता है । उन्होंने अपनी कविता में चौबीसों तीर्थङ्करों के गुणों का गायन क्रमबद्ध तीर्थङ्कर भगवान् का नाम लेकर किया।
16. सिनेमा जगत् के लोकप्रिय सितारे आमिर खान से पत्रकारों के पूछे जाने पर बताया कि उन्होंने कई धर्मों का अध्ययन करने पर जैनदर्शन को उन्होंने बेहतर बतलाया उन्होंने कहा कि मैं तीन कारणों से जैनधर्म से अत्यधिक प्रभावित हूँ । 1. अहिंसा, 2. जितना आवश्यक उतना संग्रह करना अर्थात् अपरिग्रहवाद, 3. विचारों की मतभेदता से कोई झगड़ा नहीं सभी को विचारों की स्वतन्त्रता मतभेद के बाद भी सभी से समानता का व्यवहार एवं सभी जीवों से मैत्री भाव।
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