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  • अध्याय 1 - चत्तारि दण्डक

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    Vidyasagar.Guru

         मङ्गलाचरण

    जिनवचनों का अमृतघट है, समकित पथ का खुलता पट है । 
    गुरुप्रसाद से कृति बनायीं, जिनसरस्वती सबको भायीं ॥
    द्वितीय खण्ड से ज्योति मिलेगीं, जीवन बगिया भविक खिलेगीं ।
    विद्यागुरु भव पार लगावें, तव पद में नित शीश झुकावें ॥

     

    मङ्गल किसे कहते हैं एवं कितने होते हैं, उत्तम किसे कहते है एवं कितने होते हैं इसीप्रकार शरण किसे कहते हैं कितनी होती हैं इन तीनों को चत्तारि दण्डक भी कहते हैं अतः इस अध्याय में चत्तारि दण्डक का वर्णन है ।

     

    1. मङ्गल किसे कहते हैं?

    मङ्गल शब्द का अर्थ दो प्रकार से किया जाता है।

    1.  मङ्गल = सुख ।ल = लाति, ददाति, जो सुख को देता है, उसे मङ्गल कहते हैं ।
    2.  मङ्गल = मम् पापं । गल गालयतीति = अर्थात् जो पापों को गलाता है नाश करता है उसे मङ्गल कहते है|

     

    2. मङ्गल कितने होते हैं ?

    चत्तारि मंगलं = चार मङ्गल हैं ।  अरिहंता मंगलं = अरिहंत मङ्गल हैं ।
    सिद्धा मंगलं = सिद्ध मङ्गल हैं ।  साहू मंगलं = साधु मङ्गल हैं ।
    केवलि पण्णत्तो धम्मो मंगलं = केवली भगवान् द्वारा कहा गया धर्म मङ्गल है ।

     

    3. मङ्गल के अपर नाम बताइए ?

    पुण्य, पूत, पवित्र, प्रशस्त, शिव, भद्र, क्षेम, कल्याण शुभ और सौख्य आदि सब मङ्गल के ही पर्यायवाची नाम हैं। (ध.पु., 1/131)

     

    4. छः प्रकार के मङ्गल कौन - कौन से होते हैं ?

    नाम, स्थापना, द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव ।
    नाम मङ्गल - वीतराग भगवान् ने अरिहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय और साधु इनके नामों को नाम मङ्गल कहा है । (ति.प., 1/19)
    स्थापना मङ्गल - जिन भगवान् के जो अकृत्रिम और कृत्रिम जिनबिम्ब हैं, वे सब स्थापना मङ्गल हैं। (ति.प., 1/20)
    द्रव्यमङ्गल - आचार्य, उपाध्याय और साधु के शरीर द्रव्यमङ्गल हैं। (ति. प., 1/20)
    क्षेत्रमङ्गल- जहाँ वीरासन आदि विविध आसनों से तदनुकूल ध्यानाभ्यास आदि अनेक गुण प्राप्त किए गए अर्थात् साधना क्षेत्र,दीक्षा क्षेत्र, केवलज्ञान उत्पत्ति क्षेत्र, केवली समुद्घात से व्याप्त क्षेत्र एवं निर्वाण क्षेत्र आदि क्षेत्रमङ्गल हैं। (ति.प., 1 / 21-25)
    कालमङ्गल - दीक्षा तिथि, केवलज्ञान तिथि, निर्वाण तिथि अष्टाह्निका पर्व आदि । (ति.प., 1/26)
    भावमङ्गल- वर्तमान में मङ्गल रूप पर्यायों से परिणत जो शुद्ध जीव द्रव्य है वह भावमङ्गल है । (ति.प.,1/27)

     

    5. मुख्य मङ्गल एवं गौण मङ्गल किसे कहते हैं ?

    मुख्य मङ्गल - ज्ञानियों द्वारा शास्त्र के आदि मध्य व अन्त में विघ्न निवारण के लिए जिनेन्द्र देव का गुणस्तवन किया जाता है, वह मुख्य मङ्गल है । (प.क.ता.वृ., 1/4)
    गौण मङ्गल- सफेद सरसों, पूर्ण कलश, वन्दन माला, छत्र, श्वेत वर्ण, दर्पण, उत्तम जाति का घोड़ा आदि ये गौण (अमुख्य) मङ्गल हैं । (प.का.ता.वृ. में उद्धृत)

     

    6. सफेद सरसों आदि को मङ्गल क्यों माना गया हैं ?

    व्रत, नियम, संयम आदि गुणों के द्वारा साधित जिनवरों को ही समस्त अर्थ की सिद्धि हो जाने के कारण परमार्थ से सिद्ध संज्ञा प्राप्त है । इसलिए सिद्धार्थ (सफेद सरसों ) को मङ्गल कहते हैं । अरहंत भगवान् सम्पूर्ण मनोरथों से केवलज्ञान से परिपूर्ण हैं, इसीलिए लोक में पूर्णकलश मङ्गल माना जाता है। घर से बाहर निकलते हुए तथा उसमें प्रवेश करते हुए चौबीस तीर्थङ्कर वन्दनीय होते हैं, इसीलिए भरत चक्रवर्ती ने चौबीस कलियों वाली वन्दनमाला की रचना की थी। इसी से वह मङ्गल रूप समझी जाती है । जगत् के सर्व जीवों को मुक्ति दिलाने के लिए अरहंत भगवान छत्राकार है अर्थात् एकमात्र आश्रय है । अतः सिद्धि छत्राकार है। इसी से छत्र को मङ्गल कहा जाता है । अरहंत भगवान का ध्यान, लेश्या व शेष अघाती कर्म ये सब श्वेत वर्ण के अर्थात् शुक्ल होते हैं इसीलिए लोक में श्वेतवर्ण को मङ्गल समझा जाता है जिनेन्द्र भगवान् को केवलज्ञान में जिस प्रकार समस्त लोकालोक दिखाई देता है, उसी प्रकार दर्पण में भी उसके समक्ष रहने वाले दूर व निकट के समस्त छोटे व बड़े पदार्थ दिखाई देते हैं इसलिए दर्पण को मङ्गल जानो। जिसप्रकार वीतराग सर्वज्ञ जिनेन्द्र भगवान् लोक में मङ्गल रूप हैं उसी प्रकार 'हयराय' अर्थात् उत्तम जाति का घोड़ा और हयराय बाल कन्या अर्थात् राग द्वेष रहित सरल चित्त बाल कन्या भी मङ्गल है । क्योंकि‘हयराग' का अर्थ हतराग भी है और उत्तम घोड़ा भी ।
    कर्मरूपी शत्रुओं को जीतकर ही जिनेन्द्र भगवान मोक्ष को प्राप्त हुए हैं। इसीलिए शत्रु समूह पर जीत को दर्शाने वाला चमर मङ्गल कहा जाता है । (प. का. ता. वृ., 1/1 में उद्धृत)
    विशेष-

    लोकव्यवहार में गाय का दूध पीता हुआ बछड़ा भी मङ्गल माना जाता है|

     

    7. उत्तम किसे कहते है एवं वे कितने प्रकार के होते हैं ?

    जो लोक में सबसे महान् होते हैं उन्हें उत्तम कहते हैं उत्तम चार होते हैं ।
    चत्तारि लोगुत्तमा- लोक में चार उत्तम हैं।  अरिहंता लोगुत्तमा- अरिहंत उत्तम हैं। 

    सिद्धा लोगुत्तमा- सिद्ध उत्तम हैं ।  साहू लोगुत्तमा- साधु उत्तम हैं ।
    केवल पण्णत्तो धम्मो लोगुत्तमा- केवली भगवान् द्वारा कहा गया धर्म लोक में उत्तम हैं ।
    विशेष -

    उत्तम गुणों से सहित होने से, उत्तम पद को प्राप्त होने से, उत्तम मार्ग पर आरूढ़ होने से अथवा भव्य जीवों को उत्तम गुणों की प्राप्ति कराने में कारणभूत होने से अरिहंत आदि चार उत्तम हैं । (सामायिक दण्डकटीका, पृष्ठ 24 प्रणम्यसागर)

     

    8. शरण किसे कहते है एवं कितनी होती हैं ?
    जो आत्मा की रक्षा करता है वह शरण है । शरण चार होती हैं|

    चत्तारि सरणं पव्वज्जामि- मैं चार की शरण को प्राप्त होता हूँ। 
    अरिहंते सरणं पव्वज्जामि - मैं अरिहंत की शरण को प्राप्त होता हूँ । 
    सिद्धे सरणं पव्वज्जामि- मैं सिद्ध की शरण को प्राप्त होता हूँ । 
    साहू सरणं पव्वज्जामि- मैं साधु की शरण को प्राप्त होता हूँ ।
    केवलि पण्णत्तं धम्मं सरणं पव्वज्जामि - मैं केवली भगवान् द्वारा कहे गए धर्म की शरणको प्राप्त होता हूँ । 

     

    9. दो प्रकार की शरण कौन-सी होती हैं ?

    1. लौकिक शरण, 2. लोकोत्तर शरण 

    लौकिक शरण तीन प्रकार के हैं- 1. जीव 2. अजीव 3. मिश्र

    1. जीव शरण - राजा, देवता, स्वामी आदि लौकिक जीव शरण हैं ।
    2. अजीव शरण- परकोटा, खातिका आदि लौकिक अजीव शरण हैं ।
    3. मिश्र शरण - ग्राम, नगर आदि मिश्र लौकिक शरण हैं ।

    लोकोत्तर शरण तीन प्रकार के हैं-

    1. जीव शरण - पञ्च परमेष्ठी लोकोत्तर जीव शरण हैं ।
    2. अजीव शरण - पञ्च परमेष्ठी के प्रतिबिम्ब लोकोत्तर अजीव शरण हैं ।
    3. मिश्र शरण - धर्मोपकरण सहित साधुजन लोकोत्तर मिश्र शरण हैं। (त.वा., 9/7/2)

    विशेष-

    ये ही चार मङ्गल और उत्तम होने से इनकी शरण में जाना चाहिए क्योंकि इनका सहारा लेने से जीवों के पापों का नाश होता है अर्थात् दुःखों से छूटकर सच्चे सुख की प्राप्ति होती है ।

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