जिसके द्वारा कर्मों का फल देखने में आता है, वह नोकर्म है। ऐसे कर्मों की आठ मूल प्रकृति एवं उत्तर कर्म प्रकृतियों के नोकर्मों का वर्णन इस अध्याय में है ।
1. ज्ञानावरणादि अष्टकर्मों के नोकर्म बताइए?
- ज्ञानावरण कर्म - वस्त्र । वस्तु के चारों ओर लगा हुआ वस्त्र है जो वस्तु के ज्ञान को नहीं होने देता ।
- दर्शनावरण कर्म - द्वारपाल । द्वार पर नियुक्त द्वारपाल है, जो राजा के समान निजात्मरूप आत्मा का अवलोकन नहीं होने देता।
- वेदनीय कर्म - शक्कर की चाशनी से लपेटी तलवार जैसे- शक्कर की चाशनी से लपेटी तलवार को चाटते तो चाशनी से सुख का वेदन होता तथा तलवार द्वारा जिह्वा कटने से दुःख का वेदन होता है ।
- मोहनीय कर्म - शराब ।
- आयु कर्म - आयु का नोकर्म चार प्रकार का आहार है, जो शरीर के बल का कारण होने से शरीर में स्थिति का कारण है।
- नाम कर्म - नाम कर्म का नोकर्म औदारिक आदि शरीर है ।
- गोत्र कर्म - गोत्र कर्म का नोकर्म ऊँच-नीच शरीर है जो गोत्र कर्म के उदय के लिए ऊँच-नीच कुल को प्रकट करता है ।
- अन्तराय कर्म - अन्तराय कर्म का नोकर्म द्रव्य भण्डारी (कोषाध्यक्ष, रसोईदार ) है जो अन्तराय कर्मोदय के लिए भोग-उपभोग रूप वस्तु में विघ्न करता है ।
जैसे -
- अध्यक्ष ने एक संस्था के लिए दान की घोषणा कर और कहा इतना रुपया कोषाध्यक्ष से ले लो । कोषाध्यक्ष कहता मैं नहीं दे सकता तो वह कोषाध्यक्ष अन्तराय कर्म का नोकर्म हो गया।
- एक सेठ ने पूरे नगर का निमन्त्रण किया, भोजन बनकर तैयार हो गया । जहाँ भोजन रखा उसके बाहर रसोईदार बैठा है, वह कहता है मैं किसी को भोजन नहीं दे सकता तो वह रसोईदार अन्तराय कर्म का नोकर्म हो गया।
2. ज्ञानावरण कर्म के उत्तर भेदों के नोकर्म बताइए ?
- मतिज्ञानावरण- मतिज्ञानावरण कर्म का नोकर्म वस्तु स्वरूप को ढकने वाले वस्त्रादि पदार्थ हैं ।
- श्रुतज्ञानावरण- इन्द्रिय विषयादि श्रुतज्ञानावरण के नोकर्म हैं जो श्रुत ज्ञान को नहीं होने देते हैं ।
विशेष -
- इन्द्रिय विषयादि श्रुतज्ञानावनरण कर्म के नोकर्म हैं । इसी कारण से धवला पुस्तक 9 में कलिकाल सर्वज्ञ आचार्य वीरसेन स्वामी जी कहते हैं। तिलमोदक, चिउड़ा, लाई और पूआ आदि चिक्कण एवं सुगन्धित पदार्थ खाकर सिद्धान्त ग्रन्थों का स्वाध्याय नहीं करें। क्योंकि चिक्कण पदार्थ इन्द्रिय विषय हैं जो श्रुतज्ञानावरण कर्म के नोकर्म हैं।
- प्रायः लोकव्यवहार में देखते हैं कि प्रज्ञाचक्षु (सूरदास) एक कला में या ज्ञान के क्षयोपशम में श्रेष्ठ होते हैं। क्योंकि उनके इन्द्रिय विषय स्वभावत: कम हो जाते हैं।
- विशेष शास्त्रों के प्रारम्भ व समाप्ति पर उपवासादि करना चाहिए। (मू.टी., 280) उपवास से इन्द्रिय विषय कम होने से अपने आप क्षयोपशम बढ़ता है।
- अवधिज्ञानावरण एवं मनः पर्ययज्ञानावरण के नोकर्म- अवधिज्ञान और मन:पर्यय ज्ञान का घात करने वाले संक्लेश परिणामों को उत्पन्न करने वाली बाह्य वस्तु अवधिज्ञानावरण एवं मन:पर्यय ज्ञानावरण का नोकर्म है ।
विशेष- वर्तमान पञ्चमकाल में संक्लेश ज्यादा हैं इससे पञ्चमकाल में अवधिज्ञान एवं मन:पर्यय ज्ञान नहीं होता है
- केवलज्ञानावरण का नोकर्म - केवलज्ञानावरण कर्म का नोकर्म द्रव्य नहीं है ।
3. दर्शनावरण की उत्तर प्रकृतियों के नोकर्म बताइए?
पाँच निद्रारूप दर्शनावरण के नोकर्म द्रव्य भैंस के दूध का दही आदि वस्तुएँ हैं । चक्षु-अचक्षु दर्शनावरण के नोकर्म द्रव्य व्याघातकारक पट (वस्त्र) आदि वस्तुएँ। ( गो .क., ,72)
अवधिदर्शनावरण और केवलदर्शनावरण का नोकर्मद्रव्य अवधिज्ञानावरण और केवलज्ञानावरण के समान जानना।
4. वेदनीय कर्म के नोकर्म बताइए ?
सातावेदनीय कर्म का नोकर्मद्रव्य इष्ट अन्नपानादि तथा असातावेदनीय कर्म का नोकर्म द्रव्य अनिष्ट पानादि है ।
5. मोहनीय कर्म की उत्तर प्रकृतियों के नोकर्म बताइए?
सम्यक्त्व प्रकृति के नोकर्म द्रव्य जिनायतन है । तथा मिथ्यात्व के नोकर्मद्रव्य अनायतन हैं । आयतन अनायतन ये दोनों मिश्रित रूप से सम्यग्मिथ्यात्व प्रकृति के नोकर्मद्रव्य हैं। ये नियम से इनके नोकर्म हैं । (गो.क.,74)
विशेष- जिनप्रतिमा, जिनमन्दिर, जिनागम, शास्त्रज्ञ, सुतप और सुतपस्वी ये छ: आयतन तथा सरागी देव, सरागीदेव मन्दिर, कुशास्त्र, कुशास्त्रज्ञ, कुतप और कुतपस्वी ये छ: अनायतन हैं ।
अनन्तानुबन्धी के छ: अनायतन आदि है । शेष कषायों के नियम से नोकर्म द्रव्य, देशचारित्र, सकलचारित्र तथा यथाख्यात चारित्र के घातक काव्य - नाटक - कोक शास्त्रादि अथवा पापी लोगों की संगति है । (गो.क.,75)
स्त्रीवेद का नोकर्म स्त्री का शरीर, पुरुषवेद का नोकर्म पुरुष का शरीर और नपुंसकवेद का नोकर्म नपुंसक का शरीर है। हास्य का नोकर्म जोकर, रति का नोकर्म गुणवान् पुत्र है क्योंकि गुणीपुत्र पर अधिक प्रीति होती है । (गो.क.,76)
अरति कर्म का नोकर्म इष्टवियोग - अनिष्ट संयोग है। शोक का नोकर्म सुपुत्रादि का मरण, भय का नोकर्म सिंहादि भयंकर वस्तुएँ तथा जुगुप्सा का नोकर्म निन्दित वस्तु है । (गो.क.,77 )
6. आयु कर्म एवं गति नाम कर्म के नोकर्म बताइए?
नरका का नोकर्म अनिष्टाहार है। शेष तीन आयु का नोकर्म इन्द्रियों को प्रिय लगने वाले अन्नपानादि हैं और सामान्य से चारों गतियों का नोकर्म चार गति रूप क्षेत्र अर्थात् 'योनिस्थान' है। (गो.क.,78)
7. नाम कर्म के उत्तरभेदों के नोकर्म बताइए?
नरकादि चार गतियों का नोकर्म नियम से नरकादि गतियों का अपना- अपना क्षेत्र (योनिस्थान ) है तथा जातिकर्म का नोकर्म द्रव्येन्द्रियरूप पुद्गल की रचना है। ( गो .क., 79)
औदारिक-वैक्रियिक-आहारक - तैजस शरीर नाम कर्म के नोकर्म अपने - अपने उदय से प्राप्त हुई शरीर वर्गणाएँ हैं । कार्मण शरीर का नोकर्मद्रव्य विस्रसोपचय (कर्मरूप होने योग्य वर्गणा) है। (गो.क., 81 )
शरीर बन्धन नाम कर्म से लेकर जितनी पुद्गलविपाकी प्रकृतियाँ है, उनका तथा शेष जीवविपाकी प्रकृतियों का नोकर्म द्रव्य कर्म शरीर ही है। क्षेत्रविपाकीरूप जो चार आनुपूर्वी हैं, उनका नोकर्म अपना-अपना विग्रह गतिरूप क्षेत्र ही है । (गो.क., 82)
स्थिर प्रकृति का नोकर्म द्रव्य अपने-अपने स्थान पर स्थित रहने वाला रस रुधिरादि है और अस्थिर प्रकृति का नोकर्म अपने-अपने स्थान से चलायमान रस - रुधिराधिक है । शुभ प्रकृति का नोकर्म शरीर के सुन्दर अवयव हैं तथा अशुभ प्रकृति का नोकर्म शरीर के अशुभ अवयव हैं। स्वर नाम कर्म का नोकर्म सुस्वर दु:स्वर रूप से परिणमित भाषा - वर्गणा रूप पुद्गल स्कन्ध हैं । ( गो .क., 83 )
8. गोत्र कर्म के उत्तरभेदों के नोकर्म बताइए ?
उच्चगोत्र का नोकर्म द्रव्य परम्परागत (साधु आचरण) कुल में उत्पन्न हुआ शरीर है। तथा इससे विपरीत नीचगोत्र का नोकर्म है।(गो.क., 84)
9. अन्तराय कर्म के नोकर्म बताइए ?
दानादि चार अन्तरायों का नोकर्म दानादि में विघ्न करने वाले पर्वत, नदी, पुरुष, स्त्री आदि जानना चाहिए तथा वीर्यान्तराय का नोकर्म रुक्ष आहार आदि बलनाशक पदार्थ हैं ।
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