मानव के जीवन की सम्पूर्ण शुभ और अशुभ प्रवृत्ति उसके संस्कारों के अधीन है, जिनमें से कुछ वह इसी भव में संगति से प्राप्त संस्कार कुछ पूर्वोपाजित संस्कार, कुछ परम्परागत संस्कार, कुछ माता पिता द्वारा प्रदत्त संस्कार और कुछ गुरुप्रदत्त संस्कार होते हैं । जिस प्रकार मिट्टी के कलश का अग्नि संस्कार करने पर उसमें जल धारण की योग्यता प्रकट हो जाती है, उसी प्रकार मानव सत् संस्कारों से राजमान्यतादि गौरव को प्राप्त होता है। उन्हीं संस्कारों के बारे में इस अध्याय में कहा जा रहा है ।
1. संस्कार किसे कहते हैं ?
‘सम्’ उपसर्ग पूर्वक ‘कृ' धातु से 'धञ्' प्रत्यय लगकर संस्कार शब्द की उत्पत्ति हुई है । संस्कार का अर्थ सुधार, पालिश, मनोवृत्ति या स्वभाव का शोधन ।
विशेष -
- अपने पत्थरमय जीवन को पारसमणि बनाना ही संस्कार है ।
- अपने कुल, धर्म, देश, गुरु एवं ऐतिहासिक पुरुषों की संस्कृति उत्तम परम्पराओं को जीवित बनाए रखने की भावना ही संस्कार है ।
- आत्मा, शरीर एवं वस्तुओं की शुद्धि हेतु समय-समय पर जो विशेष कार्य किये जाते हैं, वे संस्कार कहलाते है ।
2. दान का संस्कार बताइए?
ऋषभदेव ने छ: माह के उपवास के साथ दीक्षा ली और 7 माह 9 दिन तक अन्तराय कर्म के उदय के कारण आहार नहीं मिला। जब मुनि ऋषभदेव हस्तिनापुर पहुँचे तब मुनि ऋषभदेव के दर्शन करते ही राजा श्रेयांस को जातिस्मरण हो गया कि पिछले आठवें भव में मैंने आहार दान दिया था। इसी आहार के लिए मुनि ऋषभदेव भ्रमण कर रहे हैं। यह ज्ञान होते ही वे अपने राजमहल के द्वार पर खड़े होकर मङ्गल वस्तुओं को हाथ में लेकर मुनि ऋषभदेव का पड़गाहन कर नवधा भक्ति से इक्षु रस का आहार दिया ।
3. पूजन का संस्कार बताइए ?
राजगृह पर्वत पर तीर्थङ्कर वर्धमान स्वामी का समवसरण आया सुनकर राजा श्रेणिक बड़े वैभव के साथ वन्दना के लिए गए । तभी एक मेढ़क भी पूजन के निमित्त एक फूल की पाखुड़ी मुँह में दबाकर चला किन्तु वह राजा श्रेणिक के हाथी के पैर से कुचलकर मर गया । पूजन सम्बन्धी भाव थे । अतः पुण्य के प्रभाव से सौधर्म स्वर्ग में महान् ऋद्धियों को धारण करने वाला देव हुआ । अवधिज्ञान से अपने पूर्व भव की घटना जानकर वर्धमान स्वामी के समवसरण में पूजन करने पहुँच गया।
4. जाप का संस्कार बताइए?
गुरुवर आचार्य श्री विद्यासागरजी के सान्निध्य में एलक सुमतिसागर जी की सल्लेखना ईस्वी सन् 1982 में नैनागिर सिद्ध क्षेत्र में चल रही थी। एक हाथ उनका प्रायः सुन्न सा रहता था । किन्तु जैसे ही उनके हाथ में माला दी जाती थी । तब वह जाप करने लगते थे। क्योंकि वह पहले माला से जाप करते थे ।
5. कुल परम्परा का संस्कार बताइए ?
सियार का एक बच्चा जिसे बचपन से ही एक सिंहनी ने पाला था । वह सिंह के बच्चों के साथ ही खेला करता था। एक दिन खेलते हुए वे सभी बच्चे किसी जङ्गल में गए। वहाँ उन्होंने हाथियों का समूह देखा देखकर जो सिंहनी के बच्चे थे वे हाथी के सामने हुए किन्तु वह सियार जिसमें अपने कुल का डरपोक पने का संस्कार था। हाथी को देखकर भागने लगा । तब वे सिंह के बच्चे भी अपना बड़ा भाई जानकर उसकाअनुकरण करते हुए अपनी माता के पास वापस आ गए और उस सियार की शिकायत की इसने हम सबको शिकार करने से रोका। तब सिंहनी ने उस सियार के बच्चे से कहा-
शूरोऽसि कृतविद्योऽसि, दर्शनीयोऽसि पुत्रक ! ।
यस्मिन् कुले त्वमुत्पन्नो, गजस्तत्र न हन्यते ॥
अर्थ- हे पुत्र ! तू शूरवीर है, विद्यावान् है, देखने में सुन्दर है, किन्तु जिस कुल में तू उत्पन्न हुआ है उस कुल मे हाथी नहीं मारे जाते हैं । तू यहाँ से भाग जा नहीं तो ये बच्चे तेरे को परेशान करेंगे ।
6. भोजन के संस्कार बताइए ?
- भीष्म पितामह शर - शय्या पर लेटे हुए अपने जीवन की अन्तिम साँसे गिन रहे थे। तभी युधिष्ठिर जी ने कहा उपदेश दीजिए? ऐसा सुनकर दौपद्री को हँसी आ गई । तब भीष्म पितामह हँसी का कारण समझकर कहने लगे- बेटी जिस समय तेरा चीर हरण हो रहा था, उस समय मैंने कौरवों का दूषित अन्न खाया था। इससे उनका पक्ष ले रहा था किन्तु शर - शय्या मिलने से वह सारा दूषित रक्त बाहर निकल गया, इससे परिणाम अच्छे हो गए, अत: धर्म का उपदेश देने का भाव हो गया ।
- अमेरिका में एक खोज की गई बहुत से अपराधियों ने मिलकर एक अपराध किया। उन्हें तीन भागों में विभाजित कर । एक समूह को तामसिक भोजन देना प्रारम्भ किया, दूसरे समूह को गरिष्ठ भोजन देना प्रारम्भ किया, तीसरे समूह को सात्विक भोजन देना प्रारम्भ किया फलतः जिसे सात्विक भोजन दिया जाता था। उन्हें दो माह के बाद बोध हुआ मैंने अपराध किया था । गरिष्ठ भोजन करने वालों चार माह बाद बोध हुआ कि हमने अपराध किन्तु तामसिक भोजन करने वालों को अपराध का बोध हुआ ही नहीं । अत: भोजन के संस्कार भी नियम से जीवों पर पड़ते हैं।
7. बर्तनों का संस्कार बताइए?
क्षुल्लक गणेशप्रसादजी वर्णी एक शहर में गए। एक श्रावक के यहाँ आहार करके आए । जब उन्होंने दोपहर की सामायिक करने बैठे तो उन्हें सामायिक में अण्डे, मछली आदि दिखे उस दिन अच्छी सामायिक नहीं हुई । पता करवाया क्या कारण है? तब ज्ञात हुआ कि जिस श्रावक के यहाँ आहार हुए, वहाँ मात्र एक बालक रहता है । जो पढ़ने के उद्देश्य से शहर में आया वह अण्डे, मछली आदि खाता था। और उन्हीं बर्त्तनों में आहार बनाकर उसके परिवार वालों ने गाँव से आकर वर्णी जी का आहार
कराया इससे उन बर्त्तनों के प्रभाव के कारण वर्णी जी की सामायिक में वही दिखा ।
8. वन्दना का संस्कार बताइए ?
अट्ठाईदास नामक एक विद्याधर नन्दीश्वर द्वीप की वन्दना की तीव्र भावना से जा रहा था । किन्तु मनुष्य मानुषोत्तर पर्वत का उल्लंघन नहीं कर सकता है । अतः वह मानुषोत्तर पर्वत से टकराकर मरण को प्राप्त हो गया और वह देवगति में उत्पन्न हुआ। अवधिज्ञान से अपना पूर्व भव जानकर वह नन्दीश्वर द्वीप की वन्दना के लिए चला गया ।
9. क्षेत्र के संस्कार बताइए ?
1. उज्जैन के एक टीले पर एक ग्वाला जाता तब वह बड़े न्याय, ज्ञान और सदाचार की बात कहता था। और जैसे ही वे उस टीले से नीचे उतरता तब वही मूर्खो जैसी बातें करता। ऐसा जानकर लोगों ने उस टीले को खोदा तब वहाँ राजा विक्रमादित्य का सिंहासन मिला । अतः लोगों को बात समझ में आ गई राजा विक्रमादित्य न्यायप्रिय, ज्ञानवान एवं सदाचारी राजा था। इससे उनके सिंहासन के ऊपर जो भी जाएगा वह वैसी ही बातें करेगा ।
2. माता-पिता का परम भक्त श्रवण कुमार अपने अन्धे माता-पिता को तीर्थयात्रा कराने ले जा रहा था । रास्ते में जब सरयू नदी का वह तट आया जहाँ परशुराम ने अपने माता पिता को मारा था, वहाँ पहुँचते ही श्रवणकुमार के भाव बदल गए। वह माता पिता से कहता है- " मैं आपको अब यात्रा नहीं करवा सकता। मैं कब तक आपकी सेवा करता रहूँगा ।" आदि-आदि। उसके पिताजी पूछते हैं - "बेटा । यह कौन - सा स्थान है। श्रवणकुमार ने कहा पिताजी ! यह सरयू नदी का तट है" पिताजी समझ गए, उन्होंने कहा बेटा ! नदी पार करवा दे उसके बाद छोड़ देना । " श्रवणकुमार उनको नदी पार करवा देता है । किन्तु नदी पार होते ही उसके भाव परिवर्तित हो जाते हैं । वह पश्चात्ताप करता है माता-पिता से क्षमा माँगता है ।
3. आगरा नगर में पञ्चकल्याणक ईस्वी सन् 1994 में चल रहा था इधर जन्म कल्याणक का जुलूस निकला उधर पाण्डाल में अचानक आग लग गयी उस पञ्चकल्याणक में मुनिश्री क्षमासागर जी एवं मुनिश्री सुधासागर जी ससंघ विराजमान थे। रात्रि में पुनः पाण्डाल तैयार होकर कार्यक्रम चलता रहा। किन्तु ऐसा क्यों हुआ? मुनिराज सुधासागर जी ने पूछा बताओं इस भूमि पर क्या होता है ? क्या - क्या हुआ ? तब श्रावकों ने कहा महाराज यहाँ वर्षों पहले नगरपालिका वाले सारे शहर की गन्दगी यहीं पर एकत्रित करवाते थे एवं ब्रिटिश राज्य में यहाँ पर फाँसी दी जाती थी । तब महाराजों ने कहा यही क्षेत्र का प्रभाव इससे पाण्डाल में आग लग गई। हर काम हर जगह नहीं हो सकते हैं ।
4. महाभारत का युद्ध प्रारम्भ होना था श्रीकृष्ण ने विचार किया युद्ध के लिए ऐसा स्थान चुनना चाहिए जहाँ एक दूसरे के प्रति मोह परिणाम जागृत न होने पावें, बड़ों पूज्यों पुरुषों के प्रति नम्रता, आदर, कृतज्ञता का भाव उत्पन्न न हो क्योंकि युद्ध भाई-भाई के बीच में होना है ऐसे स्थान को खोजने के लिए वे अनेक ग्राम, नगर, खेत, जंगलों में गए किन्तु उन्हें कोई ऐसा स्थान नहीं मिला, जो भाई-भाई के साथ युद्ध के लिए उपयुक्त हो । आखिर खोजते खोजते उन्होंने एक खेत पर एक किसान (जाट) को रहट को चलाते हुए देखा। दोपहर का समय हुआ । उसकी पत्नी भोजन लेकर आयी । जाटनी के आते ही जाट कार्य छोड़कर भोजन करने लगा । वह बहुत थका हुआ था। भोजन करने के बाद वह थोडा लेट गया । उसकी गहरी नींद लग गई। इधर जाटनी रहट चलाने लगी। पानी का वेग अधिक बढ़ गया । और वह बाँध को तोड़ क्यारियों में भरने लगा। जाटनी ने आव देखा न ताव तुरन्त अपने बालक को बाँध में लगा दिया। पुनः अपने कार्य में जुट गई । कुछ समय पश्चात् किसान उठा । उसने अपने कार्य को सम्भाला। उधर जाटनी को बालक की याद आयी । उसने बालक को बाँध से निकाला तब तक वह बालक मरण को प्राप्त हो चुका। बालक को मरा देख जाटनी ने गड्ढा खोदकर बालक को गड़ा दिया । यह सब दृश्य देखकर उन्होनें यह निश्चय किया कि यह भूमि युद्ध के योग्य है। क्योंकि यहाँ एक माँ में भी बच्चे के प्रति मातृत्व का भाव नहीं है, ममता नहीं है तो यहाँ भाई-भाई के प्रति प्रेम भी नहीं उमड़ सकता । यह उस क्षेत्र का प्रभाव है।
10. दूध के संस्कार बताइए?
एक सेनापति था उसके देश का दूसरे से युद्ध चल रहा था। माँ ने कहा "बेटा ! मर जाना किन्तु युद्ध भूमि से पीठ दिखाकर मत आना ।" बेटा युद्ध स्थल पर गया। कुछ समय बाद वहाँ से भागकर घर आ गया और अपने कमरे का दरवाजा बन्द करके बैठ गया ।
माँ को ज्ञात हुआ तो वह दु:खी और चिन्तित हुई । उसने विचार किया मैंने अपने पुत्र को हमेशा अच्छी- अच्छी बातें सिखाई, अच्छे संस्कार डाले, धर्म की शिक्षा दी, फिर यह कायर कैसे निकला?" बेटे के इस कार्य को अपने दूध का अपमान समझकर दुःखी हो रही थी ।
माँ को अत्यन्त उदास एवं दुःखी देखकर घर की एक दासी ने पुत्र की कायरता का कारण बताते हुए कहा-माँ, आप एक दिन मन्दिर गई थीं, आपका यह पुत्र रो रहा था। मैंने इसे चुप कराने हेतु दया करके अपना दूध पिला दिया था ।
माँ ने पुत्र से कमरे के बाहर जाकर ऊँचे स्वर में कहा-'दासी के एक बार के दुग्धपान ने इतना असर किया और मैंने वर्षों से दुग्धपान कराया उसका क्या कोई असर नहीं पड़ा तुम पर ?'
माँ की ललकार और दूध की याद ने पर्याप्त प्रभाव डाला। माँ को चेहरा न दिखाकर पीछे के दरवाजे से पुन: युद्ध भूमि में जा खड़ा हुआ और फिर विजयी होकर ही घर वापस आया ।
11. सैनिक का संस्कार बताइए ?
एक सैनिक ने मुनि दीक्षा ली और एक दिन आहार ले रहे थे। एक श्रावक ग्रास ( रोटी का ) दे रहा था । वह ग्रास गिरते-गिरते बचा। तो वह मुनि कहते गिर जाता तो गोली चल जाती। क्योंकि सैनिक अनुशासनहीनता को स्वीकार नहीं कर सकता ।
12. पद के संस्कार बताइए?
खुरई, जिला सागर (मध्यप्रदेश) में एक जैन परिवार है। जिसे लोग कहते हैं मुल्लाजी। पूछा भाई इसका रहस्य क्या है? तब उन्होंने बताया हमारे पूर्वज मुस्लिम राज्य में एक मन्त्री पद पर थे वहीं बादशाह के बाजू में एक मुल्लाजी बैठते थे। उनका मरण हो गया। दूसरे मुल्लाजी मिले नहीं तब इन्हीं जैन से कहा कुछ दिन आप यहाँ कुर्सी पर बैठिए (मुल्लाजी के स्थान पर) वे बैठने लगे तब से आज तक सैकड़ों वर्ष के बाद उनकी परम्परा के बच्चे, नाती आदि भी मुल्लाजी के नाम से पुकारे जाते हैं ।
13. ज्ञान के संस्कार बताइए?
- विनय से पढ़ा हुआ शास्त्र किसी समय प्रमाद से विस्मृत हो जाए तो भी वह अन्य जन्म में स्मरण हो जाता है, संस्कार रहता है, और क्रम से केवलज्ञान को प्राप्त कराता है । (मू.टी., 286)
- नरकादि भवों में जहाँ उपदेश का अभाव है, वहाँ पूर्व भव में धारण किए हुए तत्त्वार्थ ज्ञान के संस्कार के बल से सम्यग्दर्शन की प्राप्ति होती है। (ल.सा.जी., 6/365)
14. अच्छी माँ के संस्कार बताइए ?
एक नारी हुई जिसका नाम था मदालसा । वह गर्भवती होते ही अनेक लोरी एवं अच्छी धर्म चर्चा गर्भस्थ शिशु के निमित्त से बोलती थी ।
उसने बच्चों के पालन पोषण का दायित्व किसी धाय को न सौंपकर स्वयं अपने ऊपर लिया था क्योंकि उसे इस बात का पूरा ज्ञान और विश्वास था कि एक माँ बच्चे को जितना अपनत्व एवं वात्सल्य से पालन पोषण और संस्कारित कर सकती है उतना और कोई नहीं ।
वह झूला झुलाते समय अच्छी-अच्छी लोरी सुनाती थी। जिनमें कुछ निम्नाकिङ्कत हैं-
- सिद्ध बुद्ध हो परम निरञ्जन, जग की माया रहित रहे । तज दो चेष्टा देह भिन्न हो, माँ मदालसा पूत कहें ।।
- अखण्ड स्वरूपी ज्ञाता दृष्टा, परमातम गुणखानी हो । जित इन्द्रिय हो मान तजो सुत । मदालसा की वाणी ओ ।
- निष्काम धाम हो कर्मरहित हो, रत्नत्रय से परम पवित्र । वेत्ता चेता काम तो है, बेटा बनना सबके मित्र ।।
इसी प्रकार के संस्कारों से संस्कारित होते-होते जब मदालसा के छः पुत्र मुनि दीक्षा ले चुके । राजा मदालसा से कहता मैं राज्य का उत्तराधिकारी किसे बनाऊँ? मैं सोचता हूँ कि अबकी बार होने वाली सन्तानका पालन पोषण तुम्हें करने ही न दूँ, तुम्हें उसका मुँह ही न देखने दूँ ताकि मेरा यह राज्य का भार उतर जावे। मदालसा कहती अबकी बार होने वाली सन्तान को ऐसे संस्कारों से संस्कारित करूंगी कि वह निश्चित रूप से आपका उत्तरदायित्व बनेगा ।
अब वह कुछ संस्कार परिवर्तित करती है तू एक ईमानदार राजा बनेगा। धर्मयुद्ध करेगा आदि आदि ।राजा ने अपने निश्चय के अनुसार प्रसूति होते ही एक विश्वासपात्र धाय से बालक को उठवाकर पालन पोषण के लिए सौंप दिया ।
मदालसा ने परोक्ष रूप से बेटे को संस्कारति किया । माँ और बेटे का जिन्दगी में प्रथम और अन्तिम मिलन उस समय हुआ जिस समय युवराज ने युद्धक्षेत्र में जाने का संकल्प किया। माँ से आशीर्वाद लिया और कहा-माँ! मैं युद्ध करने जा रहा हूँ । आप आशीर्वाद दे मैं विजयी होकर लौटू । मदालसा ने कहा बेटा मैं तुम्हारे गले में यह पत्र बाँध रही हूँ, यदि कोई विपत्ति आवे तो इसे खोलकर देख लेना, इसमें हर विपत्ति का समाधान लिखा है। युद्ध में बेटा हारने की स्थिति में आने लगा । बेटे को अपनी माँ की बात याद आ गई । उसने पत्र खोलकर देखा पढ़ा। पत्र में लिखा था - " बाहर जो कुछ भी दिख रहा है वह तुम नहीं हो और वह तुम्हारा भी नहीं है।" पत्र पढ़कर उसे विरक्ति आ गई वह वन में जाकर मुनि दीक्षा ले लेता है ।
15. संस्कार के कुछ सैद्धान्तिक उदाहरण बताइए ?
नरक गति से आने वाले जीवों के संस्कार-
- सप्तम पृथ्वी का नारकी सप्तम पृथ्वी में छ: अन्तर्मुहूर्त कम 33 सागर तक सम्यग्दर्शन के साथ रहता है किन्तु वही जीव मरण कर कर्मभूमि का तिर्यञ्च बनता है तो वह उस भव में सम्यग्दर्शन प्राप्त नहीं कर सकता है।
- छठवीं पृथ्वी से आने वाला नारकी मनुष्य तो बन जाता है किन्तु वह मुनि नहीं बन सकता ।
- पाँचवी पृथ्वी से आने वाला मुनि बन सकता किन्तु मोक्ष नहीं जा सकता है ।
- चतुर्थ पृथ्वी से आने वाला मुनि बनकर मोक्ष जा सकता किन्तु वह तीर्थङ्कर नहीं बन सकता है ।
16. बद्धायुष्क के संस्कार बताइए ?
- कर्मभूमि के तिर्यञ्च ने आगामी नरक आयु, तिर्यञ्च आयु और मनुष्य आयु का बँध कर लिया है तो वह उस भव में देशसंयम ग्रहण नहीं कर सकता है ।
- किसी मनुष्य ने आगामी नरक आयु, तिर्यञ्य आयु या मनुष्य आयु का बँध कर लिया है तो वह उस भव में देशसंयम तथा सकल संयम प्राप्त नहीं कर सकता है ।
17. भाव स्त्रीवेद एवं भाव नपुंसक वेद के संस्कार बताइए ?
द्रव्य से पुरुषवेद एवं भाव से पुरुषवेद वाले को ही मन:पर्ययज्ञान हो सकता है। तब धवलाकार ने स्वयं शंका की भाव स्त्रीवेद एवं भाव नपुंसकवेद का उदय नवमें गुणस्थान तक रहता है । तथा मन:पर्ययज्ञान का क्षयोपशम छठवें से बारहवें गुणस्थान तक रहता है । अतः जिसका भाव स्त्रीवेद या भाव नपुंसक वेद का उदय था उसे दसवें से बारहवें गुणस्थान तक मनः पर्ययज्ञान का क्षयोपशम हो जाए ? तब समाधान किया जैसे अग्नि से दग्ध हुए बीज में अङ्कुर उत्पन्न नहीं हो सकता उसी प्रकार भाव स्त्रीवेद एवं भाव नपुंसकवेद से दूषित जीव को मन:पर्ययज्ञान हो ही नहीं सकता है। (ध.पु., 2/528)
18. चोरी से प्राप्त भोजन सामग्री का संस्कार बताइए?
एक साधु राजा के घर भोजन करने गए भोजन के बाद साधु के मन में विचार आया कि खूँटे पर लटकी हीरों की माला उठा लूँ। राजा की नजर बचाकर उन्होंने माला चुपके से कमण्डलु में रख ली और चले गए। दूसरे दिन जब प्रातः काल शौच क्रिया से निवृत हुए कमण्डलु खाली करने के लिए अन्दर हाथ डाला तो चौंक गए। कमण्डलु में हीरों की बेशकीमती माला कहाँ से आई?
याद आया कल राजा के यहाँ भोजन करने गया था वहीं से माला उठाई है। घोर पश्चात्ताप हुआ राजा को बुलाया क्षमा माँगी हीरों की माला वापस की। राजा को साधु के कृत्य पर आश्चर्य हुआ । ये आध्यात्मिक साधु ये ऐसा कर ही नहीं सकते। उसने महल में वापस आकर अधिकारियों को आदेश दिया जो कल भोजन बनाया था वह कहाँ से आया। खोजबीन हुई । पाया कि चोरी के जप्त किये गए चावलों की खीर साधु जी को खिलाई थी।
अत: चोरी की भोजन सामग्री जिसने खायीं उसके परिणाम भी चोरी करने के हुए ।
***
अन्तर्मुहूर्त
अन्तर्मुहूर्त में जो अन्तर शब्द आया है उसका सामीप्य अर्थ में ग्रहण किया गया है । इसका तात्पर्य यह हुआ कि जो मुहूर्त के समीप हो उसे अन्तर्मुहूर्त कहते हैं । इस अन्तर्मुहूर्त का अभिप्राय मुहूर्त से अधिक भी हो सकता है। (ध.पु., 3/69)