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मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • अध्याय 33 - सूतक - पातक

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    Vidyasagar.Guru

    जन्म एवं मरण के पश्चात् कुछ समय के लिए धार्मिक कार्य अभिषेक, पूजन, स्वाध्याय, आहार दानादि नहीं करते हैं । उसे सूतक ( जन्म के बाद) एवं पातक ( मरण के बाद ) का वर्णन इस अध्याय में है। तथा कहीं-कहीं जन्म के सूतक को शोर एवं मरण के पातक को सूतक भी कहते हैं ।


    1. सूतक - पातक का जैन आगम में क्या उल्लेख है ?
    जैन आगम के ग्रन्थ जैसे - मूलाचार, मूलाचार प्रदीप में उल्लेख मिलता मुनि सूतक वाले घरों में आहार के लिए न जाए तथा त्रिलोकसार ग्रन्थ में लिखा है सूतक वाले आहार दान देते तो वे कुमानुषों में उत्पन्न होते हैं । धर्मसंग्रह श्रावकाचार में लिखा है सूतक में धार्मिक कार्य करने से नीच गोत्र का बन्ध होता है । आगे किशनसिंह क्रियाकोश एवं राजवैद्य पण्डित बारेलाल जी ने संस्कृत में जैन व्रत विधान संग्रह में उल्लेख किया है इन्हीं को मुख्य मानकर किस पीढ़ी वाले को कितना सूतक - पातक लगता है । उसका वर्णन क्रमश: किया जा रहा है ।


    सूतक पातक का विवरण

    अवसर जन्म / मरण विशेष
    3 पीढ़ी तक जन्म 10 दिन, मरण 12 दिन  
    4 पीढ़ी में 10 दिन 6 दिन (जैन व्रत विधान संग्रह )
    5 पीढ़ी में 6 दिन (कि.क्रि. को., 6) 5 दिन (जैन व्रत विधान संग्रह )
    6 पीढ़ी में 4 दिन कि. क्रि . को . 6 एवं जैन व्रत विधान संग्रह
    7 पीढ़ी में 3 दिन कि. क्रि . को . 6 एवं जैन व्रत विधान संग्रह
    8 पीढ़ी में 1 दिन-रात कि. कि. क्रो. एवं जैन व्रत विधान संग्रह
    9 पीढ़ी में 6 घण्टा 6 घण्टा कि.क्रि. को. एवं जैन व्रत विधान संग्रह
    10 पीढ़ी में स्नान करने तक स्नान करने तक (जैन व्रत विधान संग्रह)
    विवाहित पुत्री एवं अन्य रिश्तेदार (निज घर में) 3 दिन (कि.क्रि. को., 10) घर से बाहर हो तो नहीं लगेगा (गृह निवास से बाहर जन्म मरण हो तो सूतक नहीं लगेगा) (जैन व्रत विधान संग्रह)
    अन्य व्यक्ति दासी, दास एवं पालतू जानवर (निज घर में) 1 दिन घर से बाहर हो तो नहीं लगेगा (गृह से बाहर बगीचे में, खेत में मरण वा जन्म होने पर नहीं लगेगा ।)
    गृह त्यागी, संन्यासी, संग्राम में

    1 दिन (कि.क्रि. को.,8)

    घर का त्याग कर समाधिपूर्वक मरण हो तो परिवार को एक दिन का सूतक लगेगा ।
    गोत्री अन्य स्थान पर (विदेश में ) समाचार आने के बाद शेष दिनों में  
    गर्भास्राव होने पर विशेष- 3 या 4 माह के बाद का गर्भच्युत होना स्राव कहलाता है । जितने माह का होगा माता को उतने दिन (कि.क्रि. को.,10) परिवारजनों को स्नान मात्र (जैन व्रत विधान संग्रह)
    गर्भपात होने पर विशेष - ( 5 माह से 6 माह तक का ) गर्भच्युत पात कहलाता है। जितने माह का हो माता को उतने दिन का । परिवार जनों को एक दिन का । विशेष- गर्भपात कराने वाले प्रायश्चित्त कराने के पश्चात् ही शुद्ध होगे ।
    जीवित बालक उत्पन्न हो नाल छेदने के पूर्व मरण हो जावे माता को 45 दिन आसन्न (तीन पीढ़ी तक ) बन्धुओं को 3 दिन
    मरा हुआ उत्पन्न हो या नालच्छेदन के पश्चात् मरण होने पर माता को 45 दिन अन्य पीढ़ी को उपर्युक्तानुसार 3 दिन
    एक माह तक का बालक मरण होने पर 1 दिन (जै. सि.को., 4/443 )
     
    आत्महत्या छ: माह (कि. क्रि. को., 14)  
    व्यभिचारी स्त्री हमेशा  

    विशेष -

    1. सूतक पातक का प्रभाव वंश व गोत्र के अनुसार लगता है, अत: सम्पत्ति के बटवारे, अन्य स्थान पर या विदेश में रहने, पारिवारिक वैमनस्यता, व्यापार आदि अलग-अलग होने पर भी इनका दोष लगेगा ।
    2. सूतक में दान, अध्ययन तथा जिन पूजनादि शुभकर्म नहीं करना चाहिए। क्योंकि सूतक के दिनों में दान, पूजनादि करने से नीच गोत्र का बन्ध होता है । (ध. श्रा., 6/260)
    3. अन्य मतानुसार क्षत्रिय कुलोद्भव लोगों को पाँच दिन, ब्राह्मण लोगों को दस दिन, वैश्यों को बारह दिन तथा शूद्रों को पन्द्रह दिन पर्यन्त सूतक पालन करना कहा। (ध.श्रा., 6/261)
    4. सूतक किसे नहीं लगता - विवाहित बहिन, पुत्री को सूतक नहीं लगता । प्रतिष्ठा पाठ के अनुसार प्रतिष्ठिा कार्य में सम्मिलित पात्रों का सकलीकरण एवं नान्दी विधान (जिसमें शुद्धि करके गोत्र परिवर्तन किया जाता है) होने पर सूतक नहीं लगता है किन्तु वह घर नहीं जाएगा न वहाँ का भोजन करेगा।
    5. पति का मरण होने पर ( विधवा महिलाएँ ) 12 दिन का सूतक मानें 13 वें दिन पूजन, स्वाध्याय आहारदान आदि करें कई महिलाएँ 30 दिन, 45 दिन तक धार्मिक कार्य नहीं करती हैं। यह अनुचित है ।
    6. सूतक, पातक में दान, अध्ययन तथा जिन पूजादि का निषेध किया गया है । इतना ही ग्रन्थ में लिखा है शेष के बारे में पिच्छी धारियों के, विद्वानों के अपने-अपने विचार उन सभी के विचारों को यहाँ संकलित करके लिखा जा रहा है। पातक में तीन दिन तक तो मन्दिरजी में प्रवेश न करे । बाद में गर्भगृह के बाहर से दर्शन करें। वहाँ मन्दिरों के उपकरण जैसे चटाई, पाटा आदि का स्पर्श न करें। कोई गन्धोदक देता है तो वह ले सकते हैं । शास्त्र सभा में बैठ सकता है। सन्त निवास में साधुओं के दर्शन करने जा सकता है । उनका पाटा, पिच्छी - कमण्डलु का स्पर्श न करे ।
    7. गोद जाने वाले को जहाँ गया है वहीं का सूतक लगेगा। पूर्व परिवार का नहीं ।
    8. अणुव्रती श्रावकों को भी सूतक पातक वाले घरों में भोजन नहीं करना चाहिए। (ला.सं., 4/251) किन्तु अणुवती श्रावक के यहाँ ही सूतक - पातक हो जाए तो वह भोजन कहाँ करेगा, वह तो भोजन अपने घर में ही करेगा ।
    9. धर्म संग्रह श्रावकाचार 6/257-258 में मरण में तथा प्रसूति में दस दिन सूतक पालन करना चाहिए। इसके बाद ग्यारहवें दिन घर, वस्त्र तथा शरीरादि शुद्ध करके और मृत्तिका के पुराने बर्तनों को अलग करके तथा पवित्र भोजनादि सामग्री बनाकर सर्वप्रथम जिन भगवान् की पूजा करनी चाहिए ।
    10. सूतक - पातक वाले के यहाँ की पूजन, आहारदान, आदि की द्रव्य रिश्तेदार उपयोग नहीं कर सकते हैं । वह द्रव्य सूतक समाप्त होने पर काल शुद्धि से शुद्ध हो जाती है ।
    11. यदि परिवार, व्यापार, पत्राचार, मोबाइल का त्याग करके तीर्थयात्रा पर संकल्प पूर्वक जाते हैं, तो परिवार में होने वाले सूतक, पातक का दोष नहीं लगेगा ।
    12. वर्तमान में सुनते हैं किसी के यहाँ रक्षाबन्धन के दिन या दीपावली के दिन मरण हो गया तो उस परिवार वाले आगामी रक्षाबन्धन में राखी नहीं बन्धवाते, आगामी दीपावली भी नहीं मनाते हैं । यह गलत परपम्रा है ।उन्हें ये त्यौहार अच्छे से मनाना चाहिए ।
    13. गर्भवती महिला 5 माह तक विधान अनुष्ठान एवं आहारदान कर सकती हैं। दैनिक देवदर्शन, स्वाध्याय एवं पूजन जन्म के दिन तक कर सकती हैं।
    14. सूतक पातक के सन्दर्भ में अनेक क्षेत्रीय परम्पराएँ प्रचलित है एवं पीढ़ी के निर्धारण में भी विभिन्न मान्यताएँ हैं । उन्हें भी ध्यान में रखते हुए कार्य करना चाहिए। विवाद नहीं करना चाहिए ।
    15. हमारे प्रमुख आचार्य प्रणीत ग्रन्थों में सूतक - पातक का उल्लेख प्राप्त होता है, कुछ ग्रन्थों के सन्दर्भ निम्नाङ्कित हैं ।


    1. दुब्भाव असुचिसूदगपुप्फवई जाइसंकरादीहिं । ।
    कयदाणा वि कुवत्ते जीवा कुणरेसु जायंते ।। (त्रि.सा., 924 )

     

    अर्थ: जो दुर्भावना, अपवित्रता, सूतक आदि से एवं पुष्पवती स्त्री के स्पर्श से युक्त तथा जातिसङ्कर आदि दोषों से सहित होते हुए भी दान देते हैं और जो कुपात्रों को दान देते हैं वे जीव मरकर कुमानुष्यों में उत्पन्न होते हैं ।

     

    2. सूतकं पातकं चापि यथोक्तं जैनशासने ।
    एषणाशुद्धिसिद्ध्यर्थं वर्जयेच्छ्रावकाग्रणी । (ला.सं., 4/251)


    अर्थ - एषणासमिति को शुद्ध रीति से पालन करने के लिए जैन शास्त्रों में बतलाए हुए सूतक - पातक का भी त्याग कर देना चाहिए ।


    3. अतिबाला अतिबुड्ढा घासत्ती गण्भिणी य अंधलिया ।
    अंतरिदा व णिसण्णा उच्चत्था अहव णीचत्था ।। ( मू., 469 )


    अर्थ - अतिबाला, अतिवृद्ध, भोजन करती हुई, गर्भिणी (पाँच माह के बाद), अन्धी हो, दीवाल आदि की आड़ में खड़ी हो, बैठी हो, उच्च स्थान में बैठी हो, नीचे स्थान में बैठी हो आदि आहार देने के पात्र नहीं है ।


    4. सूती शौंडी तथा रोगी मृतकश्च नपुंसकः ।
    पिशाचो नग्न एवाज्ञ उच्चारः पतितस्तत: (मू.प्र., 439 )


    अर्थ- जो बच्चों को खिलाने वाला हो, जो मद्यपान का लम्पटी हो, रोगी हो, जो मृतक के साथ श्मशान में जाकर आया हो, अथवा जिसके घर कोई मर गया हो, जो नपुंसक हो, जिसे वात की व्याधि हो गई हो, जो वस्त्र न पहने हो, जो मल-मूत्र करके आया हो, मूर्छित हो, पतित हो आदि आगे और भी दायक दूषण का वर्णन किया है । आहारदान के पात्र नहीं ।


    2. रजस्वला स्त्री का सूतक कितने दिनों का होता है ?
    रजस्वला स्त्री चौथे दिन स्नान करने पर पतिसेवा और भोजनपान बनाने के योग्य हो जाती है। किन्तु देवपूजा, आहारदानादि के योग्य पाँचवें दिन ही होती है ।


    विशेष- ऋतुकाल के वीत जाने पर 18 दिन के पहले यदि कोई स्त्री रजस्वला हो जाए तो वह स्नानमात्र से शुद्ध हो जाती है । (जैन व्रत विधान संग्रह)


    3. सूतक - पातक का वैज्ञानिक कारण बताइए ?
    वैज्ञानिक व्रेतिस्लान के अनुसार इस बायोप्लाज्मा की रचना शरीर की कोशिकाओं से भिन्न है, इसका अपना अलग विद्युत् चुम्बकीय क्षेत्र है जो मनुष्य मृत्यु के पश्चात् तुरन्त नष्ट नहीं होता किन्तु यह धीरे- धीरे ब्रह्माण्ड में विलीन होता है। अब हम सूतक की स्थिति पर विचार करें। जब प्राणी का मरण होता है तब वह भय एवं पीड़ा से आतंकित होता है, जिससे वह आर्त, रौद्र परिणामों के कारण खोटी लेश्यामय हो जाता है । अति पीड़ा के इन क्षणों में शरीर की स्थिति अति उत्तेजित होती है, जिसमें मस्तिष्क, हृदय, श्वसन, नाड़ी तन्त्र प्रभावित होने के साथ पसीना एवं मलमूत्र भी निष्कासित हो जाता है। इस प्रक्रिया में कई विकारी तत्त्व रोग के कीटाणु भी उत्सर्जित होते हैं। आभामण्डल विकृत होने के साथ बायोप्लाज्मा भी विकृत हो जाता है । प्राणान्त के बाद व्यक्ति के मरण स्थान पर बायोप्लाज्मा विद्युत चुम्बकीय ऊर्जा के रूप में विद्यमान रहता है जिसका अपघटन तीन दिन में होता है। इसलिए तीन दिन की विशेष अशुद्धि मानी जाती है ।


    परिणामों में खोटी लेश्या हो जाती प्रसव के समय शारीरिक उत्तेजना से विकारी पदार्थ पसीने के साथ उत्सर्जित होते हैं, विकृत आभामण्डल की विद्युत् चुम्बकीय ऊर्जा अपघटित होने में तीन दिन लगते हैं । अत: सार (अशुद्धि) का कार्यकाल तीन दिन माना जाता है।


    4. सूतक पातक में पीढ़ियाँ कैसे गिनते हैं ?
    पीढ़ियाँ गिनने के बारे में आचार्यों, मुनियों एवं विद्वानों के विभिन्न मत हैं। उन्हीं में से एक मत को तालिका से प्रस्तुत किया जा रहा है ।


    विशेष- एक ही दादाजी के पुत्र एवं पौत्र की पीढ़ी में सूतक पातक है तो उन्हीं से पीढ़ी ली जावेगी यदि दादाजी के चचेरे भाइयों की पीढ़ी में सूतक पातक होता है। तो दादाजी के पिताजी से पीढ़ी ली जावेगी |

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    1. पीढ़ी की गिनती के लिए यदि अजितकुमार जी के पुत्र पद्म कुमार जी के यहाँ सूतक-पातक की स्थिति बनती है और वासुकुमार जी के पुत्र मल्लिकुमार जी के परिवार में सूतक - पातक की गणना करनी हो तो गणना आदिकुमार जी से की जायेगी ।
    2. यदि सूतक - पातक श्रेयांसकुमार जी के पुत्र विमलकुमार जी के यहाँ होता है उसकी गणना मल्लिकुमार जी के परिवार में करनी है तो गणना अभिनन्दनकुमार जी से होगी ।
    3. मल्लिकुमार जी के यहाँ सूतक - पातक की स्थिति है और श्री भद्रकुमार जी के परिवार में सूतक- पातक की स्थिति की गणना करनी है तो वासुकुमार जी से की जायेगी।


    5. जन्म सूतक आयुर्वेद की दृष्टि में क्या है ?
    आयुर्वेद के अनुसार प्रसव के समय गर्भ की झिल्ली तथा नाल के कुछ अवयव गर्भाशय में अशुद्धि के रूप में रह जाते हैं जो दोषयुक्त रक्तस्राव के साथ तीन दिन तक बाहर निकलते रहते हैं । इसके पश्चात् गर्भाशय के स्राव का वर्ण कुछ पीलापन लिए होता है । जो गर्भाशय के दोष के रूप में दस दिन तक रिसता रहता है। इस दोष को रजस्वला के स्राव के सामन ही अशुद्ध मानते हैं । जिस प्रकार रजस्वला चौथे दिन शुद्ध हो जाती है। उसी प्रकार प्रसूता ग्यारहवें दिन शुद्ध होती है। इसके पश्चात् गर्भाशय को पूर्व स्थिति में आने में छ: सप्ताह लगता है इसीलिए प्रसूता की प्रसूतावस्था के साथ एलोपैथी भी छ: सप्ताह मानता है ।

     

    6. किस सूतक की तत्काल शुद्धि होती है?
    यज्ञ (विधान), महान्यास (पञ्चकल्याणक ) जैसे बड़े-बड़े धार्मिक प्रभावना के कार्यों का समारम्भ कर दिया हो और अपना बहुत द्रव्य लग रहा हो जिसका विनाश होता हो ऐसी दशा में सूतक या पातक कोई भी हो तत्काल शुद्धि कर अपना कार्य प्रारम्भ कर देना चाहिए। (जैन व्रत विधान संग्रह )


    7. उन महापुरुषों के नाम बताइए जिन्हें सूतक नहीं लगा?

    1. भरत चक्रवर्ती के पुत्र रत्न, वृषभदेव को केवलज्ञान एवं आयुधशाला में चक्ररत्न की प्राप्ति एक साथ हुई, भरत चक्रवर्ती ने प्रथम ही समवसरण में जाकर पूजा की ।
    2. सुकमाल का जन्म होते ही सबसे पहिले सुभद्रा सेठानी ने मन्दिर में जाकर भगवान् की पूजा की।
    3. कृष्णनारायण के जब प्रद्युम्नकुमार का जन्म हुआ तब श्रीकृष्णजी ने मन्दिर में पूजन कराया।
    4. तीर्थङ्कर का जन्म कल्याणक के बाद इन्द्र की आज्ञा से भगवान् के पिता ने अपने बाँधवों के साथ जिनमन्दिर में अभिषेकपूर्वक महापूजा की।


    विशेष- उपरोक्त जो ग्रन्थों के उदाहरण दिए गए हैं इनमें चारों प्रसङ्गों में जन्म के बाद धार्मिक कार्य किए अतः इससे यह फलित होता कि महापुरुषों को जन्म का सूतक नहीं लगता । अतः सर्व सामान्य को लगता या नहीं यह विषय विद्वान् वर्ग के लिए चिन्तनीय है ।

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