यदि मनुष्य अपनी मृत्यु के पूर्व अरिष्टों (अशुभ चिह्नों) द्वारा अपने मरण को ज्ञात कर ले, तो वह सल्लेखना द्वारा आत्मकल्याण में विशेष रूप से प्रवृत्त हो सकता है । इस अध्याय में इन्हीं अरिष्टों का वर्णन है ।
1. अरिष्ट किसे कहते हैं?
प्राकृतिक, शारीरिक चिह्न जिनसे मृत्यु के समय की सूचना मिलती हो अरिष्ट कहलाते हैं।
विशेष- अरिष्ट अर्थात् मृत्यु की पूर्व सूचना है, इसे जानकर साधक सल्लेखना के लिए उद्यत हो जाए जिससे वह अपनी आत्मा का कल्याण कर सके ।
शीघ्र मरण
- अघन आकाश को घन आकाश, घनीभूत पृथ्वी को अघन पृथ्वी, तेज अग्नि को निस्तेज, स्थिर वस्तु को चंचल, निरभ्र आकाश को मेघाच्छित देखें। (च., 1364)
- यदि किसी व्यक्ति का मुख और जीभ काली पड़ जाए, गर्दन बिना किसी करण से झुक जाए तथा बार- बार श्वास रुकने लगे तो उसका शीघ्र मरण समझना चाहिए। (रि.स., 28 )
- जो चमकते हुए सूर्य का अनुभव नहीं करता बल्कि उल्टा उसे ठण्डा बतलाता है, वह इन्द्र के द्वारा रक्षा किए जाने पर भी उसी क्षण मृत्यु को प्राप्त हो जाता है । (रि.स.,59)
- यदि कोई व्यक्ति अपनी छाया को बैल, हाथी, कौवा, गधा, भैसा और घोड़ा इत्यादि अनेक रूपों में देखता है तो उसका तत्काल मरण जानना चाहिए। (रि.स., 78)
- जिसके मुख, नाक तथा गुप्त इन्द्रिय से शीतल वायु निकले वह शीघ्र ही मरता है । (रि.स.,32)
- यदि कोई व्यक्ति अपनी छाया को धुएँ से आच्छादित अग्नि से प्रज्वलित और बिना सिर के केवल छाया का धड़ ही देखता है उसका जल्दी ही मरण समझना चाहिए। (रि.स., 80 )
- हाथ-पैर आदि के पीड़ित करने पर भी जिसे पीड़ा का अनुभव न हो उसकी शीघ्र मृत्यु होती है । (भद्र- बाहु संहिता पृ.,464)
- जो दीपक के प्रकाश की लौ को अनेक रूप में देखता है। (रि.स., 48 )
निकट
- यदि मुख से खून निकलता हो, मुख से ही तेजी से श्वास निकलती हो और खूब छटपटाहट होती हो तो मृत्यु निकट समझनी चाहिए। (रि.स., 20)
- जिसे दिन का रात और रात का दिन दिखलाई पड़े। (रि.स., 58 )
1. दिन
- यदि कोई अपनी जिह्वा न देख सके। (रि.स., 37 )
- यदि कन्धों से रहित छाया दिखे। (रि.स., 104 )
2. दिन
- जो व्यक्ति अपनी छाया को दो रूपों में देखता है वह दो दिन जीवित रहता है और जो आधी छाया का दर्शन करता है वह भी दो दिन जीवित रहता है। (रि.स., 76)
- यदि नेत्रों के संचालन के साथ पुतलियाँ नहीं घूमती हों तो निस्सन्देह दो दिन के भीतर मरण होता है। (रि.स., 35 )
3 दिन
- अपनी नाक न देख सकते पर तीन दिन जीवित रहता है । (रि.स.,37)
- जिसके हाथ और पैरों पर जल रखने से सूख जाए। (रि.स.,31)
4 दिन
- सूर्य, चन्द्रमा और तारा बिम्ब नीले दिखलाई पड़े तो ।
- यदि छाया पुरुष बिना हाथों के दिखलाई पड़े।(रि.स., 104)
5 दिन
- आँखों के तारा आँखों के भीतर रहने वाले मसूर के समान प्रकाश को, जो नाक के पास के कोनों को दबाने से प्रकट होता है, न देख सकने पर पाँच दिन की आयु अवशेष रहती है । (रि.स., 38)
6 दिन
- सूर्य और चन्द्र बिम्ब में से धुँआ निकलता हुए देखें। (रि.स., 55 )
7 दिन
- कानों के भीतर होने वाली ध्वनि को न सुनने पर । (रि.स.,38)
- यदि अकारण ही नेत्रों से अनवरत पानी निकलता रहे और दाँत काले पड़ जाए। (रि.स., 34 )
- जो अपने शरीर के शब्द को नहीं सुनता और दीपक की गन्ध का अनुभव नहीं करता । (रि.स.,139)
- जिसकी आँखें स्थिर हो जाए, पुतलियाँ इधर-उधर न चले। (रि.स., 20)
- जो स्वस्थ होते हुए भी सुगन्ध का अनुभव न कर सके। (रि.स., 133)
8 दिन
- अपनी बाहु-भुजा न दिखलाई पड़े।
9 दिन
- अपनी भौंह के मध्य भाग को न देख सके। (रि.स., 30)
10 दिन
- अपने नख और दाँतों का विवृत हो जाना ।
15 दिन
- शरीर कान्तिहीन हो और बाहर निकलने में श्वास तेज हो जाए। (रि.स., 33 )
1 माह
- जिसकी जिह्वा की नोक (अग्रभाग) बिलकुल काली हो जाए और ललाट पर की बढ़ी रेखाएँ मिट जाए।(रि.स., 30 )
- अकारण नख, ओठ और दाँत काले पड़ जाए। (रि.स.,27)
- जो स्वप्न में सूर्य और चन्द्र ग्रहण को देखता है अथवा पृथ्वी पर स्वप्न में सूर्य और चन्द्र के पतन को देखता है, वह एक माह से कुछ अधिक जीवित रहता है । (रि.स., 124)
- जो स्वप्न में रुधिर, चर्बी, पीप, चमड़ा, घी और तेल के गड्ढे में गिरकर डूबता है । (रि.स., 129)
- जो स्वप्न में भैंसे, गधे और ऊँट की सवारी द्वारा अपने को दक्षिण दिशा की ओर जाता हुआ देखता अथवा घी या तेल से भींगा हुआ अपने को देखता है। (रि.स., 123)
- जिसे कडुवे तीखे, कषायले, खट्टे मीठे और खारे रसों का स्वाद न आये। (रि.स.,24)
2 माह
- जो व्यक्ति स्वप्न में अपने को विलीन होते हुए देखता है, काक या गृद्ध के द्वारा अपने शरीर का भक्षण करते देखता है या स्वयं को वमन करते हुए देखता है । (रि.स., 122)
3 माह
- यदि सात दिनों तक रवि, शशि एवं ताराओं के बिम्बों को नाचता हुआ देखें। (रि.स.,50)
4 माह
- धैर्य नष्ट हो जाए, स्मृति नष्ट हो जाए, चलने में असमर्थ हो जाए, अत्यन्त निद्रा या निद्रा ना आवे । (रि.स., 36 )
- स्वप्न में जिनेन्द्र प्रतिमा हस्त रहित देखें (रि.स., 118)
8 माह
- स्वप्न में जिनप्रतिमा का उदर नष्ट होते हुए देखता है । (रि.स., 119)
1 वर्ष
- स्वप्न में जिन प्रतिमा घुटना रहित दिखे। (रि.स., 118)
- यदि अपनी छाया घुटनों के बिना दिखे। (रि.स., 103 )
2 वर्ष
- स्वप्न में जिन प्रतिमा की जंघा नष्ट होते हुए देखें। (रि.स., 119)
3 वर्ष
- स्वप्न में जिन प्रतिमा पैरों के बिना देखता । (रि.स., 118)
विशेष -
- अपनी छाया का आकाश में पूर्ण प्रतिबिम्बित छाया पुरुष के रूप में जितना स्पष्ट देखता है उतना ही वह अधिक संसार में जीवित रहेगा । ( रि.स.,99)
- स्वप्न में जिनेन्द्र प्रतिमा के छत्र का भंग दिखलाई पड़े तो उस देख के राजा का मरण निश्चित समझना चाहिए। (रि.स., 120)
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