Jump to content
नव आचार्य श्री समय सागर जी को करें भावंजली अर्पित ×
अंतरराष्ट्रीय मूकमाटी प्रश्न प्रतियोगिता 1 से 5 जून 2024 ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • अध्याय 29 - स्वप्न विज्ञान

       (0 reviews)

    Vidyasagar.Guru

    जीवों को अनेक प्रकार के स्वप्न आते हैं । उनमें कुछ निरर्थक होते हैं, कुछ सार्थक होते हैं। तीर्थङ्कर की माता तथा भरत चक्रवर्ती आदि के स्वप्नों के फलों का वर्णन इस अध्याय में है ।


    1. स्वप्न किसे कहते हैं ?
    निद्रा अवस्था में चित्तवृत्तिजनित प्रत्यक्ष दर्शन - ज्ञान को स्वप्न कहते हैं ।


    2. स्वप्न में क्या देखते हैं ?
    भूतकाल में घटित हुई घटना को या भविष्यकाल में घटने वाली घटना को देखते हैं ।

     

    3. स्वप्न किसको आते हैं?
    कर्मभूमि के मनुष्यों एवं तिर्यञ्चों को ।


    4. देव- नारकियों एवं भोग भूमि के मनुष्यों तथा तिर्यञ्चों को स्वप्न क्यों नहीं आते ?

    क्योंकि वे शयन नहीं करते हैं ।


    5. स्वप्न के बारे में विद्वानों के क्या विचार हैं ?
    प्लिनी ने अपनी पुस्तक NATURAL HISTORY में यह विचार व्यक्त किया है कि छोटे शिशु भी स्वप्न देखते हैं, क्योंकि वे सोते-सोते प्राय: चौंक उठते है । और ऐसा भी देखा गया है कि वह सोते-सोते ओंठ चलाते हैं जैसे माँ का स्तन चूस रहे हो ।


    एरिस्टोटल ने अपनी पुस्तक HISTORY OF ANIMALS में पशुओं के इतिहास में लिखा है केवल मानव ही स्वप्न नहीं देखते बल्कि घोड़े, बैल, भेड़, बकरियाँ, कुत्ते भी सोते-सोते भौंकने लगते हैं अर्थात् पशु भी स्वप्न देखते हैं ।


    6. स्वप्न कितने प्रकार के होते हैं?
    स्वप्न दो प्रकार के होते है - स्वस्थ अवस्था वाले दूसरे अस्वस्थ अवस्था वाले । जो वात, पित्त, कफ की समानता रहने पर दिखते हैं । वे स्वस्थ अवस्था वाले स्वप्न हैं ये सत्य होते हैं । जो वात, पित्त, कफ की असमानता रहने पर दिखते हैं वे अस्वस्थ अवस्था वाले कहलाते हैं ये असत्य होते हैं । (म.पु., 41/59- 60)


    7. कौन-कौन से स्वप्न सत्य एवं कौन-कौन से स्वप्न असत्य होते हैं ?
    सोते हुए रात्रि के पश्चिम भाग में अपने मुख कमल में प्रविष्ट चन्द्र, सूर्यादि शुभ स्वप्न हैं तथा गदहा, ऊँट आदि पर चढ़ना अशुभ स्वप्न हैं ।


    8. चिह्न स्वप्न और माला स्वप्न किसे कहते हैं ?
    स्वप्न में हाथी,सिंह आदि के देखने मात्र को चिह्न स्वप्न और पूर्वा पर सम्बन्ध रखने वाले स्वप्न को माला स्वप्न कहते हैं । (जै.सि., 2/613)


    9. तीर्थङ्कर की माता कौन -कौन से सोलह स्वप्न देखती है एवं उनका फल तीर्थङ्कर के पिता क्या बताते हैं ?

    1. ऐरावत हाथी - सर्वोच्च माननीय पुत्र होगा। हाथी अहिंसक होता है, इसलिए वह पुत्र पृथ्वी के जीवों को आजीविका के साधन भी अहिंसात्मक बताएगा तथा अहिंसा धर्म का प्रवर्तक होगा ।
    2. श्वेत वृषभ - धर्मरूपी धरा को धारण करने वाला जगत् पूज्य होगा ।
    3. सिंह- सिंह के देखने से अनन्त बल का धारी होगा और सिंह के समान इस भूमण्डल पर विचरण करेगा।
    4. हाथियों द्वारा लक्ष्मी का अभिषेक - पुत्र का इन्द्रों के द्वारा सुमेरु पर्वत पर अभिषेक होगा ।
    5. दो पुष्प मालाएँ - धर्म प्रकट करने वाला होगा ।
    6. अखण्ड चन्द्र बिम्ब - वह सम्पूर्ण जगत् का सन्तापहर्त्ता आनन्दकारी होगा ।
    7. उदित होता सूर्य - उदित सूर्य के देखने से वह महाप्रतापी होगा । भव्य जीवों के अज्ञानरूपी अन्धकार का विनाशक होगा ।
    8. युगल स्वर्ण कलश- वह अनेक प्रकार की निधि का स्वामी होगा ।
    9. मीन युगल - वह विविध सुख का भोक्ता होगा |
    10. कमलों से सुशोभित सरोवर- वह 1008 लक्षणों से सम्पन्न होगा।
    11. गम्भीर समुद्र - वह केवलज्ञान का धारी होगा।
    12. रत्नजड़ित सिंहासन - वह समवसरण की विभूति को प्राप्त होगा ।
    13. छोटी-छोटी घटिकाओं से सुशोभित विमान - वह स्वर्ग से अवतरित होगा । इसके अलावा ये अर्थ भी हो सकता है । यह विगत: मानः इति विमान: अर्थात् मानकषाय को नष्ट करने वाला होगा। विमान आकाश में चलता है अतः यह सभी केवलज्ञान होने के बाद आकाश में ही चलेंगे। तीसरा अर्थ ये भी सम्भावित है कि स्वर्ग विमान देखने से इनके कल्याण के अवसर पर देवों का आगमन होगा ।
    14. धरणेन्द्र का भवन - जन्म से ही अवधिज्ञानी होगा ।
    15. चमकते रत्नों की राशि - गुणों का निधान (खजाना) होगा।
    16. निर्धूम अग्नि- अष्ट कर्मों का नाश करेगा।

    तथा जो तुम्हारे मुख में वृषभ ने प्रवेश किया है अर्थात् तुम्हारे गर्भ में वृषभदेव ने प्रवेश किया ।

     

    10. भरत चक्रवर्ती ने कौन-कौन से सोलह स्वप्न देखे एवं उनका फल तीर्थङ्कर वृषभदेव ने क्या बतलाया था ?

    1. पर्वत पर 23 सिंह - तीर्थङ्कर महावीर के अतिरिक्त 23 तीर्थङ्करों के समय दुष्ट नयों की उत्पत्ति का अभाव ।
    2. सिंह के साथ हिरणों का समूह - तीर्थङ्कर महावीर के तीर्थ में अनेक कुलिंगियों की उत्पत्ति ।
    3. अधिक बोझ से झुकी पीठ वाला घोड़ा - पञ्चम काल में तपश्चरण के समस्त गुणों से रहित साधु होंगे।
    4. शुष्क पत्ते खाने वाले बकरों का समूह - पञ्चम काल में दुराचारी मनुष्यों की उत्पत्ति ।
    5. हाथी के ऊपर बैठा वानर- क्षत्रियों के वंश नष्ट हो जाएंगे और फिर नीच कुल वाले इस पृथ्वी का शासन व पालन करेंगे।
    6. अन्य पक्षियों द्वारा त्रास किया गया उल्लू - धर्म की इच्छा से मनुष्य अन्य मत के साधुओं के पास जाएगें ।
    7. आनन्द करते भूत- व्यन्तर देवों की पूजा होगी।
    8. मध्य भाग में सूखा हुआ तालाब - यह धर्म आर्य क्षेत्र में न रहकर म्लेच्छ देश के लोगों में रहेगा। जैसे-जैसे आज विदेशों में शाकाहार का प्रयोग बढ़ रहा है एवं जहाँ तीर्थ क्षेत्र है । वहाँ जैन समाज नहीं है।
    9. मलिन रत्न राशि - ऋद्धिधारी मुनियों का अभाव ।
    10. कुत्ते का नैवेद्य आदि से सत्कार - गुणी पात्रों के समान अगुणी पात्रों का सम्मान होगा ।
    11. जवान बैल- तरुण अवस्था में ही मुनिपद धारण करेंगे।
    12. मण्डल से युक्त चन्द्रमा - अवधिज्ञान व मन:पर्ययज्ञान का अभाव ।
    13. जिनकी शोभा नष्ट हो रही है ऐसे दो बैल - एकल विहारी का अभाव अर्थात् पञ्चम काल में मुनि अकेले विहार करने वाले नहीं होंगे ।
    14. मेघों से आवृत्त सूर्य- केवलज्ञान का अभाव ।
    15. छाया रहित सूखा वृक्ष - स्त्री-पुरुषों का चारित्र भ्रष्ट होगा ।
    16. जीर्ण पत्तों का समूह - महा औषधियों का रस नष्ट होगा।

    इन स्वप्नों को इस प्रकार फल देने वाले और दूर अर्थात् आगामी पञ्चम काल में फल देने वाले जानना । (म.पु., 41 /63-79)


    11. अन्तिम सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य जो मुनि हुए थे उनने सोलह कौन-कौन से स्वप्न देखे थे एवं उनका फल आचार्य भद्रबाहु ने क्या बताया था ?

    1. सूर्य का अस्त होना - इस पञ्चम काल में ग्यारह अङ्ग एवं चौदह पूर्व का ज्ञान न्यून हो जाएगा ।
    2. कल्पवृक्ष की शाखा का टूटना - अब आगे कोई क्षत्रिय राजा जिन दीक्षा को अङ्गीकार नहीं करेगा ।
    3. चन्द्रमण्डल का छिद्र सहित होना - इस पञ्मकाल में जिनमत में अनेक मतों का प्रादुर्भाव होगा ।
    4. बारह फण वाला सर्प- इस पञ्चम काल में बारह वर्ष पर्यन्त भयंकर दुर्भिक्ष पड़ेगा ।
    5. पीछे लौटता हुआ देवताओं का विमान- देव, विद्याधर तथा चारणऋद्धिधारी नीचे ( भरत ऐरावत क्षेत्र में) नहीं आवेंगे ।
    6. अपवित्र स्थान पर उत्पन्न हुआ विकसित कमल - बहुधा हीन जाति (जिनका आचरण वर्तमान में ही है) के लोग जिनधर्म धारण करेंगे। उच्च जाति वाले नहीं ।
    7. नृत्य करता हुआ भूतों का परिवार - मनुष्य कुदेवों में अधिक श्रद्धा रखेंगे।
    8. जुगनू का प्रकाश- जिन सूत्रों के उपदेश करने वाले भी मनुष्य मिथ्यात्व युक्त होंगे और जिनधर्म भी कहीं-कहीं रहेगा।
    9. अन्त में थोड़े से जल से भरा हुआ तथा बीच में सूखा हुआ सरोवर - जहाँ-जहाँ तीर्थङ्करों के कल्याणक हुए ऐसे स्थानों पर धर्म नहीं रहेगा दक्षिण भारत में कुछ धर्म रहेगा।
    10. स्वर्ण के पात्र में खीर खाता हुआ कुत्ता - अधिक लक्ष्मी प्राय: नीच कुल में होगी कुलीन पुरुषों में यह दुष्प्राप्य होगी।
    11. हाथी पर चढ़ा हुआ बन्दर - नीच कुल में उत्पन्न लोग राज्य करेंगे क्षत्रिय लोग राज्य से रहित होंगे ।
    12. समुद्र का मर्यादा छोड़ना - प्रजा की समस्त लक्ष्मी राजा लोग ग्रहण करेंगे तथा न्याय मार्ग का उल्लंघन करने वाले होंगे ।
    13. रथ को छोटे-छोटे बछड़े ले जा रहे - इसका फल प्राय: लोग युवा अवस्था में संयम ग्रहण करेंगे किन्तु शक्ति के घट जाने से वृद्धावस्था में धारण नहीं कर सकेंगे ।
    14. ऊँट पर चढ़ा हुआ राजपुत्र - राजा लोग निर्मल धर्म को छोड़कर हिंसा का मार्ग स्वीकार करेंगे ।
    15. दैदीप्यमान कान्ति युक्त रत्न राशि - मुनि परस्पर में निन्दा करने लगेंगे ।
    16. काले हाथियों का युद्ध - मेघ मनोभिलाषित नहीं बरसेंगे ।


    12. सात प्रकार के स्वप्न कौन-कौन से हैं?
    दृष्ट, श्रुत, अनुभूत, प्रार्थित, कल्पित, भाविक और दोषज ।

     

    1. दृष्ट- जो जागृत अवस्था में देखा हो उसी को स्वप्नावस्था में देखा जाए ।
    2. श्रुत- सोने से पहले कभी किसी से सुना हो उसी को स्वप्नावस्था में देखें ।
    3. अनुभूत - जो जागृत अवस्था में किसी भाँति अनुभव किया हो उसी को स्वप्न में देखें ।
    4. प्रार्थित - जिसकी जागृत अवस्था में प्रार्थना / इच्छा की हो उसी को स्वप्न में देखें ।
    5. कल्पित- जिसकी जागृतावस्था में कभी भी कल्पना की गई हो उसी को स्वप्न में देखें ।
    6. भाविक - जो कभी न तो देखा गया हो और न सुना गया हो, पर जो भविष्य में घटित होने वाला हो उसे स्वप्न में देखा जाए।
    7. दोषज - वात, पित्त और कफ से विकृत हो जाने से जो स्वप्न देखा जाए।

    इन सात प्रकार के स्वप्नों में से पहले पाँच प्रकार के स्वप्न प्राय: निष्फल होते हैं, वस्तुत: भाविक स्वप्न का फल ही सत्य होता है। ( भद्रबाहु संहिता पृष्ठ, 444)


    13. रात्रि में किस समय देखे गए स्वप्न कब फल देते हैं?
    रात्रि के प्रथम प्रहर में देखे गए स्वप्न एक वर्ष में, दूसरे प्रहर में देखें गए आठ माह में, तीसरे प्रहर में देखे गए स्वप्न तीन माह में, चौथे प्रहर में देखें गए स्वप्न एक माह में, ब्रह्ममुहूर्त (सूर्योदय से 3 घड़ी पहले तक) में देखे गए स्वप्न दिन में और प्रात: काल सूर्योदय से कुछ पूर्व देखे गए स्वप्न अतिशीघ्र फल देते हैं । (भद्रबाहु संहिता, 444-445 )


    14. किस तिथि में देखे गए स्वप्न का फल कब मिलता है ?

    • शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा- बिलम्ब से फल मिलता है ।
    • शुक्ल पक्ष की द्वितीया - विपरीत फल होता है । अपने लिए देखने से दूसरों को और दूसरों के लिए देखने से अपने को फल मिलता है ।
    • शुक्ल पक्ष की तृतीया - विपरीत फल मिलता है, पर फल की प्राप्ति बिलम्ब से होती है।
    • शुक्ल पक्ष की चतुर्थी पञ्चमी - दो माह से लेकर दो वर्ष के भीतर फल मिलता है।
    • शुक्ल पक्ष की षष्ठी से दसवीं तक - शीघ्र फल की प्राप्ति होती है तथा स्वप्न सत्य निकलता है ।
    • शुक्ल पक्ष की एकादशी - द्वादशी - बिलम्ब से फल मिलता है।
    • शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी - चतुर्दशी - फल नहीं मिलता तथा स्वप्न मिथ्या होते हैं।
    • शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा- इसका फल अवश्य मिलता है।
    • कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा - इसका फल नहीं होता है ।
    • कृष्ण पक्ष की द्वितीया- बिलम्ब से फल मिलता है ।
    • कृष्ण पक्ष की तृतीया - चतुर्थी - फल मिथ्या होता है ।
    • कृष्ण पक्ष की पञ्चमी - षष्ठी- दो माह से तीन वर्ष के अन्दर फल देने वाले हैं।
    • कृष्ण पक्ष की सप्तमी - शीघ्र फल मिलता है ।
    • कृष्ण पक्ष की अष्टमी-नवमीं - विपरीत फल ।
    • कृष्ण पक्ष की दसवीं से त्रयोदशी तक- फल मिथ्या होता है ।
    • कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी - सत्य तथा शीघ्र फल मिलता है।
    • कृष्ण पक्ष की अमावस्या - फल मिथ्या होता है । (भद्रबाहु संहिता)

     

    ***

    1. पाड़ाशाह ने किस शताब्दी में कहाँ-कहाँ मन्दिर बनवाएँ ?
    12वीं - 13वीं शताब्दी में 1 बुन्देलखण्ड के विभिन्न स्थानों में एक हजार वर्ष, आठ सौ वर्ष पुराने जो सैकड़ों जैनमन्दिर या उनके अवशेष पाए जाते हैं, प्राय: उन सबके निर्माण का श्रेय पाड़ाशाह को ही दिया जाता है । (प्र.ऐ.जै., पृ. 247 )


    2. जीवराज पापड़ीवाल ने किस शताब्दी में अनेक जिनमन्दिरों में प्रतिमाएँ विराजमान कराई थीं?
    ईस्वी सन् 1490-1493 अक्षय तृतीया में लाखों प्रतिमाएँ प्रतिष्ठित की गयीं। आज भी उत्तरप्रदेश, पंजाब, हरियाणा, बंगाल, बिहार, बुन्देलखण्ड, मध्यप्रदेश, राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र, कर्नाटक के नगरों एवं ग्रामों के अधिकांश जिनमन्दिरों में एक वा अधिक प्रतिमाएँ सन् 1491 में शाह जीवराज पापड़ीवाल द्वारा प्रतिष्ठित पाई जाती हैं। (प्र. ऐ. जै., पृ. 277)


    User Feedback

    Create an account or sign in to leave a review

    You need to be a member in order to leave a review

    Create an account

    Sign up for a new account in our community. It's easy!

    Register a new account

    Sign in

    Already have an account? Sign in here.

    Sign In Now

    There are no reviews to display.


×
×
  • Create New...