संसारी जीव शरीर के माध्यम से ही सुख - दु:ख का अनुभव करता है | ये शरीर कितने प्रकार के होते हैं, शरीर किसके लिए उपकारी है.आदि का वर्णन इस अध्याय में है।
1. शरीर किसे कहते हैं ?
जो विशेष नाम कर्म के उदय से प्राप्त होकर शीर्यन्ते अर्थात् गलते हैं, वे शरीर हैं। अथवा अनन्तानन्त पुद्गलों के समवाय का नाम शरीर है।
2. शरीर कितने प्रकार के होते हैं ?
शरीर पाँच प्रकार के होते हैं
- औदारिक शरीर - मनुष्य और तिर्यच्चों का जो शरीर सड़ता, गलता है, वह औदारिक शरीर है। यह उराल अर्थात् स्थूल होता है। इसलिए औदारिक कहलाता है। उराल, स्थूल एकार्थवाची हैं। (ध.पु.14/322)
- वैक्रियिक शरीर - छोटा, बड़ा, हल्का, भारी, अनेक प्रकार का शरीर बना लेना विक्रिया कहलाती है। विक्रिया ही जिस शरीर का प्रयोजन है, वह वैक्रियिक शरीर कहलाता है।
- आहारक शरीर - छठवें गुणस्थानवर्ती मुनि को सूक्ष्म तत्व के विषय में जिज्ञासा होने पर उनके मस्तक से एक हाथ ऊँचा पुतला निकलता है, जहाँ कहीं भी केवली, श्रुतकेवली होते हैं, वहाँ जाकर अपनी जिज्ञासा का समाधान करके वापस आ जाता है। इसे आहारक शरीर कहते हैं। आहारक शरीर छठवें (प्रमतविरत गुणस्थान) गुणस्थानवर्ती मुनि के होता है एवं भाव पुरुषवेद वाले मुनि को होता है। इसके साथ उपशम सम्यकदर्शन, मन:पर्ययज्ञान एवं परिहार विशुद्धि संयम का निषेध है।
- तैजस शरीर - औदारिक वैक्रियिक और आहारक इन तीनों शरीरों को कान्ति देने वाला तैजस शरीर कहलाता है। यह दो प्रकार का होता है।
- अनिस्सरणात्मक तैजस - जो संसारी जीवों के साथ हमेशा रहता है।
- निस्सरणात्मक तैजस - जो मात्र ऋद्धिधारी मुनियों के होता है, यह दो प्रकार का होता है।
अ. शुभ तैजस - जगत् को रोग, दुर्भिक्ष आदि से दुखित देखकर जिसको दया उत्पन्न हुई है, ऐसे महामुनि के शरीर के दाहिने कंधे से सफेद रंग का सौम्य आकार वाला एक पुतला निकलता है, जो 12 योजन में फैले दुर्भिक्ष, रोग आदि को दूर करके वापस आ जाता है।
ब. अशुभ तैजस - मुनि को तीव्र क्रोध उत्पन्न होने पर 12 योजन तक विचार की हुई विरुद्ध वस्तु को भस्म करके और फिर उस संयमी मुनि को भस्म कर देता है। यह मुनि के बाएँ कंधे से निकलता है यह सिंदूर की तरह लाल रंग का बिलाव के आकार का 12 योजन लंबा सूच्यंगुल के संख्यात भाग प्रमाण मूल विस्तार और नौ योजन चौड़ा रहता है। अथवा लाऊडस्पीकर के आकार का।
5. कार्मण शरीर - ज्ञानावरणादि 8 कर्मों के समूह को कार्मण शरीर कहते हैं।
3. औदारिक शरीर तो स्थूल होता है फिर और शरीर कैसे होते हैं ?
आगे-आगे के शरीर सूक्ष्म होते हैं। औदारिक शरीर से वैक्रियिक शरीर सूक्ष्म होता है। वैक्रियिक शरीर से आहारक शरीर सूक्ष्म होता है। आहारक शरीर से तैजस शरीर सूक्ष्म होता है। तैजस शरीर से कार्मण शरीर सूक्ष्म होता है। (तसू,2/37)
4. आगे-आगे के शरीर सूक्ष्म होते हैं, तो उनके प्रदेश (परमाणु) भी कम-कम होते होंगे ?
नहीं। औदारिक शरीर से असंख्यात गुणे परमाणु वैक्रियिक शरीर में होते हैं। वैक्रियिक शरीर से असंख्यात गुणे परमाणु आहारक शरीर में होते हैं। आहारक शरीर से अनन्त गुणे परमाणु तैजस शरीर में होते हैं और तैजस शरीर से अनन्त गुणे परमाणु कार्मण शरीर में होते हैं। (तसू,2/38-39) मान लीजिए पाँच प्रकार के मोदक हैं, जो आकार में क्रमशः सूक्ष्म हैं, किन्तु उन में प्रदेश (दाने) ज्यादा-ज्यादा हैं। जैसे-मक्का की लाई (दाने)से बना लड्डू, ज्वार की लाई से बना लड्डू, नुकती (बूदी) का लड्डू, राजगिर का लड्डू एवं मगद (वेसन) का लड्डू। मक्का के लड्डू से आगे-आगे के लड्डू सूक्ष्म होते हैं किन्तु उनमें प्रदेश (दाने) ज्यादा हैं। इसी प्रकार क्रमश: शरीर सूक्ष्म, किन्तु प्रदेश ज्यादा हैं।
5. एक साथ एक जीव में अधिक-से-अधिक कितने शरीर हो सकते हैं ?
एक जीव में दो को आदि लेकर चार शरीर तक हो सकते हैं। किसी के दो शरीर हों तो तैजस और कार्मण। तीन हों तो तैजस, कार्मण और औदारिक अथवा तैजस, कार्मण और वैक्रियिक। चार हों तो तैजस, कार्मण, औदारिक और वैक्रियिक शरीर (ध.पु., 14/237–238) अथवा तैजस, कार्मण, औदारिक और आहारक। एक साथ पाँच शरीर नहीं हो सकते क्योंकि वैक्रियिक तथा आहारक ऋद्धि एक साथ नहीं होती है।
6. कौन से शरीर के स्वामी कौन-सी गति के जीव हैं ?
तैजस और कार्मण |
सभी संसारी जीव। |
औदारिक |
मनुष्य एवं तिर्यञ्च। |
वैक्रियिक |
नारकी एवं देव। |
वैक्रियिक |
मनुष्य (लब्धि वाल')एवं तिर्यञ्च । (रा.वा.,2/47/4) |
आहारक |
मनुष्य (प्रमत गुणस्थान वाले मुनि) |
तैजस (लब्धि वाला) |
मनुष्य (प्रमत्त गुणस्थान वाले मुनि) |
7. कौन-कौन से शरीर अनादिकाल से जीव के साथ लगे हैं ?
जैसे-चन्द्र, सूर्य के नीचे राहु, केतु लगे हुए हैं, वैसे ही प्रत्येक जीव के साथ तैजस और कार्मण शरीर अनादिकाल से लगे हुए हैं।
8. कौन-कौन से शरीर को हम चक्षु इन्द्रिय से देख सकते हैं ?
चक्षु इन्द्रिय से हम मात्र औदारिक शरीर को देख सकते हैं। वैक्रियिक शरीर को हम नहीं देख सकते,किन्तु देव विक्रिया के माध्यम से दिखाना चाहें तो दिखा सकते हैं। आहारक शरीर को भी हम नहीं देख सकते हैं। तैजस और कार्मण तो और भी सूक्ष्म हैं।
9. कौन-कौन से शरीर किसी से प्रतिघात को प्राप्त नहीं होते हैं ?
तैजस और कार्मण शरीर किसी से प्रतिघात को प्राप्त नहीं होते हैं। प्रतिघात- मूर्तिक पदार्थों के द्वारा दूसरे मूर्तिक पदार्थ को जो बाधा आती है, उसे प्रतिघात कहते हैं।
10. कौन-कौन से शरीर भोगने में आते हैं ?
जिनमें इन्द्रियाँ होती हैं। जिनके द्वारा जीव विषयों को भोगता है। ऐसे तीन शरीर भोगने योग्य हैं। औदारिक, वैक्रियिक एवं आहारक। शेष दो शरीर (तैजस तथा कार्मण) भोगने योग्य नहीं है।
11. क्या शरीर दु:ख का कारण है ?
हाँ। हे आत्मन् ! इस जगत् में संसार से उत्पन्न जो-जो दुख जीवों को सहने पड़ते हैं, वे सब इस शरीर के ग्रहण से ही सहने पड़ते हैं। इस शरीर से निवृत्त होने पर कोई दुख नहीं है।
12. शरीर किसके लिए उपकारी है ?
जिसने संसार से विरत होकर इस शरीर को धर्म पालन करने में लगा दिया है। उसके लिए यह मानव का शरीर उपकारी है।
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