मिलिट्रीवाले अनुशासन का पालन न करें तो वे देश की रक्षा नहीं कर सकते, उसी प्रकार मुनि आगम की आज्ञा का पालन न करे तो वे अपने व्रतों कि रक्षा नही कर सकते | अत : दोनों में क्या-क्या समानताएँ हैं इसका वर्णन इस अध्याय में है।
जिस प्रकार मुनि अपनी प्रत्येक क्रियाओं में सजग रहते हैं, उसी प्रकार मिलिट्री वाले भी अपनी क्रियाओं में सजग रहते हैं, दोनों की कुछ क्रियाओं में समानता है। उनके कुछ बिन्दु निम्नलिखित हैं-1. भोजन 2. अभ्यास 3. गुप्त मंत्रणा 4. कहाँ जाना है 5. जनसम्पर्क से दूर 6. शत्रुओं से रक्षा 7. ड्यूटी 8.रोड 9. स्थान परिवर्तन 10. आदेश का पालन 11. बगावत नहीं करते हैं 12. मरण से नहीं डरते हैं 13. सिर कटा सकते हैं पर सिर झुका सकते नहीं 14. क्रियाओं में कठोरता 15.यथालब्ध भोजन 16.अलाभ 17. विवित्त शय्यासन तप 18. कायक्लेश तप 19. एकल विहारी का निषेध 20. जीते जी मरण।
- भोजन - मिलिट्री में भोजन सीमित दिया जाता है उसी प्रकार मुनि भी सीमित भोजन करते हैं, क्योंकि अधिक भोजन से प्रमाद आता है। मिलिट्री वाले जहाँ कहीं भी भोजन नहीं करते हैं, उन्हें तो PURE QUALITY का माल सरकार से मिलता है। उसी प्रकार मुनि भी उत्तम श्रावक के घर में जाकर PURE (प्रासुक, शुद्ध एवं भक्ष्य)भोजन करते हैं।
- अभ्यास - जिस प्रकार मिलिट्री में हमेशा अभ्यास किया जाता है, जिससे युद्ध के समय जीत हो जाए एवं वाहनों का भी प्रयोग करते रहते हैं, जिससे वे जाम न हो जाएँ, उसी प्रकार मुनि भी परीषह उपसर्ग को सहन करते रहते हैं। परीषह उपसर्ग नहीं आते तो 12 तपों को तपते रहते हैं, जिससे समाधि के समय जीत हो जाए अर्थात् समाधि अच्छी तरह से हो जाए, क्योंकि मुनि मार्ग मंदिर है तो समाधि मंदिर पर कलश है। कलश बिना मंदिर अधूरा है, तो समाधि के बिना तपस्या अधूरी है।
- गुप्त मंत्रणा - जो मिलिट्री वालों की गुप्त बातें हैं, वे किसी को नहीं बताते हैं। उसी प्रकार श्रावक कहते हैं कि महाराज ‘आचार्य श्री' ने आपसे क्या कहा है ? यह मुनि नहीं बताते हैं, नहीं तो अनेक बार बड़ी परेशानी हो जाती है। मान लीजिए ‘आचार्यश्री' ने कहा तीन स्थान में से एक स्थान पर वर्षायोग करना है, कहाँ करना, यह महाराज आप को नहीं बताएगे, स्वम निर्णय करेगे |
- कहाँ जाना है - मिलिट्री की ट्रेन कहाँ जाती है, वह कहते हैं, पता नहीं है, उसी प्रकार महाराज आप कहाँ जा रहे हैं, बताया नहीं जाता है, और अनेक बार तो रास्ता बीच में से भी CHANGE हो जाता है।
- जनसम्पर्क से दूर - मिलिट्री वालों को जनसम्पर्क से दूर रखा जाता है, जनसम्पर्क करेंगे तो वह अपने कर्तव्य का सही पालन नहीं कर सकते। उसी प्रकार प्रवचनसार ग्रन्थ में आचार्य कुन्दकुन्द स्वामी ने मुनियों के लिए जनसम्पर्क नहीं करने को कहा है।
- शत्रुओं से रक्षा - जिस प्रकार सैनिक देश की सीमा में रहते हुए देश की रक्षा, शत्रुओं से करते हैं। उसी प्रकार मुनि भी शत्रुओं से आत्मा (देश) की रक्षा करते हैं। शत्रुओं से आशय क्रोध, मान, माया, लोभ और कर्म आदि से है।
- ड्यूटी - DUTY के समय यदि सैनिक ड्यूटी पर नहीं रहता तो उसे दण्ड दिया जाता है, दण्ड से आशय शारीरिक दण्ड से है। उसी प्रकार मुनि की ड्यूटी है कि समय पर प्रतिक्रमण, सामायिक, वंदना आदि आवश्यक करना ही है, नहीं तो प्रायश्चित रूपी दण्ड दिया जाता है। मुनि को भी आर्थिक नहीं शारीरिक दण्ड दिया जाता है। जैसे-अनशन, अवमौदर्य, रस परित्याग, कायोत्सर्ग आदि ।
- रोड - मिलिट्री की अलग से रोड रहती है, उसी प्रकार मुनि भी प्राय: देखते हैं कि महाराज मार्ग (कच्चा रास्ता) मिल जाए, जंगलों के रास्ते में MILE STONE नहीं होते हैं, उसी प्रकार मिलिट्री रोड में भी MILESTONE नहीं होते है |
- स्थान परिवर्तन - जिस प्रकार मुनि एक स्थान पर अधिक दिन तक नहीं रहते हैं, उसी प्रकार मिलिट्री वालों के लिए समय का विभाजन है, 3 वर्ष तक गर्म क्षेत्र में रहते हैं, 3 वर्ष तक शीत क्षेत्र में रहते हैं, 3 वर्ष तक शांति वाले क्षेत्र में रहते हैं एवं 3 वर्ष युद्ध के लिए जाते हैं।
- आदेश का पालन - COMMANDER का आदेश पाते ही उसे वह कार्य करना होता है, चाहे कुछ भी हो, इसी प्रकार मुनि भी COMMANDER (गुरु) के आदेश से चलते हैं, कहीं-कहीं तो महीनों बैठे रहेंगे और कभी-कभी तो एक दिन में ही 40-40 किलोमीटर गमन करते हैं।
- बगावत नहीं करते हैं - सैनिक कभी बगावत नहीं करते हैं, उसी प्रकार मुनि भी बगावत नहीं करते हैं, अर्थात् वह आगम और गुरु को अपने सामने रखते हैं।
- मरण से नहीं डरते - सैनिक मरण से नहीं डरते बल्कि मरण होने पर राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार किया जाता है, उसी प्रकार मुनि भी मरण से नहीं डरते वह भी हमेशा समाधि के लिए तैयार रहते हैं एवं समाधिमरण होने पर अर्थी नहीं बनाते बल्कि राजकीय सम्मान (विमान में बिठाकर) के साथ अंतिम संस्कार किया जाता है।
- सिर कटा सकते पर सिर झुका सकते नहीं - सैनिक शत्रु के सामने झुक नहीं सकते भले ही सिर चला जाए, उसी प्रकार मुनि भी कर्म रूपी शत्रु के सामने झुक नहीं सकते भले ही प्राण चले जाएं।
- क्रियाओं में कठोरता - सैनिक सामान्य कार्य भी सुविधापूर्वक नहीं करते हैं। एक बार सेना का वाहन फर्नीचर को लेने दुकान पर गया, फर्नीचर में पेच कसना बाकी था, दुकान पर मिस्तरी नहीं था, COMMANDER ने सैनिक से कहा पेच कसी, उसे औजार दिए गए, सैनिक ने लकड़ी में छिद्र किए बिना पेच कसना प्रारम्भ कर दिया, COMMANDER से पूछा कि सैनिक ऐसा क्यों कर रहा है, COMMANDER ने कहा कि युद्ध के समय तो इस्पात में पेच कसना पड़ता है, छिद्र किए बिना, ये तो लकड़ी है और मैंने आदेश में छिद्र करने को नहीं कहा है। इसी प्रकार मुनि भी अपनी क्रियाओं का कठोरता से पालन करते हैं, एक शिष्य को सामायिक करते समय बहुत प्रमाद आता था, गुरु ने कहा खड़े हो जाओ, वह मुनि 24 घंटे तक खड़े रहे क्योंकि गुरु ने बैठने के लिए नहीं कहा था। मुनि केशलोंच करते समय कंडे की राख का प्रयोग करते हैं, एक बार मुनि को केशलोंच करना था,राख उपलब्ध नहीं थी, अत: महाराज ने राख के बिना ही केशलोंच कर लिए ऐसी अनेक क्रियाओं को कठोरता के साथ करते हैं।
- यथालब्ध भोजन - जिस प्रकार मुनि यथालब्ध भोजन करते हैं। यथालब्ध से आशय जैसा श्रावक देता है वैसा ही लेते जाते हैं। वैसे ही सैनिकों को युद्ध के समय ऊपर विमान आदि से जो भोजन दिया जाता है, वही भोजन करते हैं।
- अलाभ - मुनियों को कई बार विधि न मिलने से, जंगलों में भटक जाने से अलाभ (आहार का न मिलना) हो जाते हैं। उसी प्रकार सैनिकों को युद्ध के समय अनेक बार भोजन न मिलने पर अलाभ हो जाते हैं।
- विवित्तशय्यासन तप - जिस प्रकार मुनि निद्रा को जीतने के लिए एकान्त स्थान में शयन करते हैं, आसन लगाते हैं, उसी प्रकार सैनिक भी कंकरीली भूमि, कंटक भूमि, ऊँची-नीची भूमि पर अल्प निद्रा लेते हैं।
- कायक्लेश तप - जिस प्रकार मुनि, वर्षा ऋतु में वृक्ष के नीचे, ग्रीष्म ऋतु में धूप में बैठकर, शीत ऋतु में नदी तट पर ध्यान लगाते हैं, उसी प्रकार सैनिक भी हमेशा शीत, उष्ण एवं वर्षा की बाधा को सहते रहते हैं।
- एकल विहारी का निषेध - जिस प्रकार मुनियों के लिए एकल विहारी का निषेध किया है। उसी प्रकार मिलिट्री वालों के लिए भी एकल विहारी का निषेध किया है। उन्हें स्वयं का सामान लेने भी बाजार जाना है, तब भी दो सैनिक जायेंगे। क्योंकि एक तो सुरक्षा, दूसरा वह किसी को गुप्त बात न बता दे।
- जीते जी मरण - जिस प्रकार मुनि समाधि लेते अर्थात् जीते जी अपने मरण को देखते हैं, उसी प्रकार सैनिक को भी रिटायर्ड से पूर्व अन्तिम संस्कार का भी पैसा दे दिया जाता है। इस प्रकार वह भी जीते जी अपने मरण को देखता है।
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