Jump to content
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • पाठ्यक्रम 27ब - जैनत्व की गौरव गाथा - जैन तीर्थक्षेत्र

       (1 review)

    तन की गर्मी तो मिटे, मन की भी मिट जाये। तीर्थ जहाँ पर उभय सुख, अमिट अमित मिल जाये।

    जहाँ पर शारीरिक और मानसिक दोनों प्रकार की आकुलताऐं नष्ट हो जाती हैं, जो शाश्वत और अनन्त सुख का साधन है। ऐसे तीर्थकर एवं केवलियों की निर्वाण भूमि (मोक्ष स्थान) तीर्थक्षेत्र कहलाते हैं। तीर्थकरों के पञ्चकल्याणकों से पवित्र एवं अतिशय युक्त स्थानों को भी तीर्थ कहते हैं। अष्टापदजी (कैलास पर्वत), ऊर्जयन्त पर्वत (गिरनारजी), श्री सम्मेदशिखरजी, चम्पापुरजी, पावापुरजी, नैनागिरजी, बावनगजाजी, सिद्धवरकूटजी, मुक्तागिरिजी, सिद्धोदयजी (नेमावर), कुंथलगिरिजी, मथुरा चौरासीजी, तारंगाजी, शत्रुजयजी, गुणावाजी, कुण्डलपुरजी आदि सिद्धक्षेत्र कहलाते हैं। रत्नपुरीजी, हस्तिनापुरीजी, मिथिलापुरजी, कुशाग्रपुरजी, शौरीपुरजी, कुण्डलपुरजी आदि। नवागढ़जी, नेमगिरिजी (जिन्तूर), कचनेरजी आदि अतिक्षेत्र कहलाते हैं।

    1. तीर्थराज श्री सम्मेदशिखरजी - तीर्थराज सम्मेदशिखर दिगम्बर जैनों का सबसे बड़ा और सबसे ऊँचा शाश्वत सिद्धक्षेत्र है। ये वर्तमान में झारखण्ड प्रदेश में पारसनाथ स्टेशन से 23 किलोमीटर पर मधुवन में स्थित है। तीर्थराज सम्मेदशिखर की ऊँचाई 4,579 फीट है। इसका क्षेत्रफल 25 वर्गमील में है एवं 27 किलोमीटर की पर्वतीय वन्दना है। सम्पूर्ण भूमण्डल पर के कण-कण में अनन्त विशुद्ध आत्माओं की पवित्रता व्याप्त है। अत: इसका एक-एक कण पूज्यनीय है, वन्दनीय है। कहा भी है- एक बार वन्दे जो कोई ताको नरक पशुगति नहीं होई। एक बार जो इस पावन पवित्र सिद्धक्षेत्र की श्रद्धापूर्वक वन्दना करते हैं। उसकी नरक और तिर्यच्चगति छूट जाती है अर्थात् वो नरकगति में और तिर्यञ्चगति में जन्म नहीं लेता है। इस तीर्थराज सम्मेदशिखर से वर्तमान काल सम्बन्धी चौबीसी के बीस तीर्थङ्करों के साथ-साथ अरबों मुनियों ने मोक्ष प्राप्त किया है। इस तीर्थ की एक बार वन्दना करने से करोड़ों उपवास का फल मिलता है। इस सिद्धक्षेत्र की भूमि के स्पर्श मात्र से संसार ताप नाश हो जाता है। परिणाम निर्मल, ज्ञान उज्वल, बुद्धि स्थिर, मस्तिष्क शांत और मन पवित्र हो जाता है। पूर्वबद्ध पाप तथा अशुभ कर्म नष्ट हो जाते हैं। दु:खी प्राणी को आत्मशांति प्राप्त होती है। ऐसे निर्वाण क्षेत्र की वन्दना करने से उन महापुरुषों के आदर्श से अनुप्रेरित होकर आत्मकल्याण की भावना उत्पन्न होती है।
    2. श्री पावापुरजी (बिहार) - यहाँ से अन्तिम तीर्थङ्कर महावीरस्वामी को निर्वाण की प्राप्ति हुई थी। यहाँ तालाब के मध्य में एक विशाल मन्दिर है, जिसे जलमन्दिर कहते हैं। जलमन्दिर में तीर्थङ्कर महावीरस्वामी, गौतम स्वामी एवं सुधर्मास्वामी के चरण स्थापित है | कार्तिक क्रष्ण अमावस्या को तीर्थकर महावीरस्वामी के निर्वाण दिवस के में यहाँ बहुत बड़ा मेला लगता है |
    3. गिरनारजी (गुजरात) - 22 वें तीर्थङ्कर श्री नेमिनाथजी के दीक्षा, केवलज्ञान एवं निर्वाण कल्याणक यहीं से हुए तथा 72 करोड़ 700 मुनि यहाँ से मोक्ष पधारे यहाँ कुल 5 पहाड़ी हैं। प्रथम पहाड़ी पर राजुल की गुफा, दूसरी पहाड़ी पर अनिरुद्धकुमार के चरण चिह्न, तीसरी पहाड़ी पर शम्भुकुमार के चरण चिह्न, चौथी पहाड़ी पर प्रद्युम्नकुमार के चरण चिह्न हैं। पाँचवीं पहाड़ी पर तीर्थङ्कर नेमिनाथ जी के चरण चिह्न हैं। चरणों के पीछे तीर्थङ्कर श्री नेमिनाथजी की भव्य दिगम्बर प्रतिमा है। गुरुवर आचार्य श्री विद्यासागरजी ने इस पहाड़ी पर सन् १९९७ में ५ एलक दीक्षा प्रदान की थीं।

    User Feedback

    Create an account or sign in to leave a review

    You need to be a member in order to leave a review

    Create an account

    Sign up for a new account in our community. It's easy!

    Register a new account

    Sign in

    Already have an account? Sign in here.

    Sign In Now

    रतन लाल

       1 of 1 member found this review helpful 1 / 1 member

    जैन तीर्थ पर विस्तृत चर्चा

    Link to review
    Share on other sites


×
×
  • Create New...