Jump to content
नव आचार्य श्री समय सागर जी को करें भावंजली अर्पित ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • उपदेश का प्रभाव

       (0 reviews)

    उपदेश का प्रभाव

    एक सेठ जी की पुत्री मुनि महाराजजी के दर्शन करने गई मुनि महाराज पाँच पापों पर धर्मोपदेश दे रहे थे, वह पुत्री भी पाँच पापों का वर्णन सुन रही थी, तभी मन पवित्र कर उसने उन पाँचों पापों का त्याग कर दिया और पाँच अणुव्रत लेकर घर गई। घर आकर व्रत लेने की बात अपने पिता जी से कह सुनाई। पिता जी नाराज हो गए और कहा कि मेरी आज्ञा के बिना मेरी पुत्री को व्रत देने वाले मुनि कौन होते हैं? और अपनी पुत्री से व्रत छोड़ने की बात कही पर वह नहीं मानी तब दोनों मुनि महाराज जी के पास जाते हैं तब देखते हैं कि -

     

    रास्ते में एक व्यक्ति को सूली पर चढ़ाया जा रहा था। पुत्री ने उसे देखकर पिता से पूछा पिता जी इसे सूली पर क्यों चढ़ाया जा रहा है, पिता ने कहा इसने अपने एक साथी की हत्या की है अत: इसे फाँसी दी जा रही है। पुत्री ने कहा जो हिंसा इस लोक में सूली और दु:ख देने वाली है और परलोक में नरकगति का कारण है अत: हिंसा नहीं करना चाहिए, पिताजी यह व्रत तो बहुत अच्छा है, मैंने हिंसा पाप छोड़ दिया तो क्या बुरा किया ? पिता ने कहा, अच्छा बेटी यह व्रत रख ले। किन्तु शेष चार को छोड़ दे। कुछ आगे और चले तो देखा कि एक पुरुष की जीभ काटी जा रही थी। बेटी ने पूछा पिताजी इसकी जीभ क्यों काटीं जा रही है? पिताजी ने कहा बेटी इसने झूठ बोला था उसी कारण उसे सजा दी जा रही है। बेटी ने कहा झूठ बोलने वाले का कोई विश्वास नहीं करता और राजा भी दंड देता है परलोक में भी दुर्गति होती है अत: झूठ बोलने से बचना चाहिए पिताजी यह व्रत लेकर मैंने क्या बुरा किया? पिता ने कहा अच्छा यह भी रख लो किन्तु शेष तीन छोड़ दे। कुछ और आगे चलकर देखा कि एक पुरुष को पुलिस वाले हाथ में हथकड़ी बांधे ले जा रहे हैं। बेटी ने पिताजी से पूछा-इसने क्या किया है पिता ने कहा इसने चोरी की है यह चोर है इसलिए इसके हाथ काटने को पुलिस इसे ले जा रही हैं। बेटी ने कहा देखों तो चोरी छोड़ना तो मेरा तीसरा व्रत है। पिताजी अच्छा इसे भी रख ले। दो मुनि महाराज जी को वापस कर देना और आगे चलकर देखा तो एक पुरुष के हाथ पैर काठ में फैंसाए जा रहे हैं। बेटी ने पूछा इसने क्या किया, पिताजी ने कहा इसने पर स्त्री सेवन किया उसी अपराध में यह सजा दी जा रही है। बेटी ने कहा जिस कुशील पाप से व्यभिचारी का मन सदा भ्रान्त रहता है लोगों को दुर्गति का दंड भोगना पड़ता है वह तो छोड़ना ही चाहिए, पिताजी ने कहा यह व्रत भी रख ले, बाकी अब एक तो वापस कर देना। आगे देखा कि पुलिस वाला एक पुरुष को पकड़े लिए जा रहा है बेटी ने पूछा इसे क्यों पकड़े हुए हैं पिता ने कहा इसने अत्यधिक धन एकत्रित किया है। बेटी ने कहा धन कमाने जोड़ने रखवाली करने में कष्ट है तृष्णा बढ़ती है, लोभी कहलाता है अत: दु:ख उठाता रहता है और अधिक परिग्रह नरक आयु के बंध का कारण है अत: ऐसे परिग्रह पाप को मैंने त्याग दिया तो क्या बुरा किया ? पिता ने कहा ठीक है यह व्रत भी रख लो। इस तरह हिंसादि पापों की बुराई का विचार करते रहना चाहिए। उसके पिता ने भी मुनिराज के समक्ष पापों को बुरा जानकर मुनिव्रत धारण कर आत्मकल्याण किया इसी तरह हम सभी को आत्म कल्याण के मार्ग पर बढ़ना चाहिए।

    शिक्षा- नियम की नियम से परीक्षा होती है, अत: लिए हुए नियमों का दृढ़ता से पालन करना चाहिए।


    User Feedback

    Create an account or sign in to leave a review

    You need to be a member in order to leave a review

    Create an account

    Sign up for a new account in our community. It's easy!

    Register a new account

    Sign in

    Already have an account? Sign in here.

    Sign In Now

    There are no reviews to display.


×
×
  • Create New...