माटी ने सुना, धरती माँ का सम्बोधन और व्यक्त किया जो अनुभूत हुआ- मार्मिक कथन, कार्मिक व्यथन, धार्मिक मथन और चार्मिक वतन की बातें । माँ ने दिया धन्यवाद और निश्चिन्त होकर जीवन विकास की यात्रा हेतु दिए कुछ सूत्र कुम्भकार के प्रति समर्पण, उसकी शिल्प कला पर मात्र चितवन तथा अपनी शक्तियों को जानना।
माटी और धरती के बीच चली चर्चा-चिन्तन से दिन का समय व्यतीत हुआ, प्रभात के इंतजार में माटी को निद्रा नहीं आई। प्रतीक्षा की घड़ी समाप्त हुई, अवसर का स्वागत माटी द्वारा दुर्लभ दर्शनीय दृश्य दिखा सरिता तट का, माटी के चरणों में समर्पित फूल मालाएँ, तट के करों में कलश, करुणा की उमड़न, ओस के कण, जोश के क्षण, रोष के मनों तथा दोष के कणों की स्थिति।