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वतन की उड़ान: इतिहास से सीखेंगे, भविष्य संवारेंगे - ओपन बुक प्रतियोगिता ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज

खजुराहो अगस्त - सितम्बर अक्टूबर 2018

खजुराहो अगस्त - सितम्बर अक्टूबर  2018

आचार्य श्री के दर्शनार्थ उमड़ रहा है जन सैलाब

 

जिस घर संत करे आहार तो समझो धन्य हुए है भाग्य
           हमने भगवान को तो नहीं देखा लेकिन भगवान के स्वरूप में संतो के दर्शन जरूर किए यही क्या कम है और अगर संत आपके घर भोजन ग्रहण करें तो समझो इससे बड़ा पुण्य और प्रताप जीवन में कुछ हो ही नहीं सकता जैन धर्म में मुनियों को आहार दिलाना सबसे बड़ा पुण्य का कार्य माना जाता है और सच भी है ऐसे तपस्वी संत जिनके जीवन में त्याग ही त्याग है भोजन उनकी जरूरत नहीं बल्कि एक प्रक्रिया है एवं अपना अनुयाई पर एक कृपा है , तथा भोजन कराने के लिए आतुर अनुयाई जब संत उसके आमंत्रण को स्वीकार करते हैं तो चेहरे की चमक व खुशी देखने लायक होती है उसके पीछे कारण भी हैं मैं यहां आपको बता दूं कि जैन धर्म में मुनि श्री दिन में एक ही बार आहार लेते हैं तथा आहर लेने के विधान स्वरूप अगर कोई प्रक्रिया संपन्न नहीं दिखाई देती तो ऐसी स्थिति में वह उस दिन उपवास करना बेहतर समझते हैं मुनियों को आहार देने के लिए भोजनशाला में बहुत ही बारीकी के साथ दिया जाने वाला भोज्य पदार्थ कई बार जांचा वा परखा जाता है तथा छानबीन करके पकाया जाता है भोजन को पकाने आचार्य श्री को लुभाने एवं आहार ग्रहण कराने की अपनी एक अलग ही प्रक्रिया है जिस प्रक्रिया से गुजरने के बाद आचार्य श्री आहार ग्रहण करते हैं विभिन्न मुनियों के द्वारा भोजन ग्रहण करने में भी कई तरह के भोज्य पदार्थों का त्याग भी होता है अतः यह ध्यान देना भी बहुत आवश्यक है जैन धर्म में वर्तमान के युग में सबसे बड़े आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज जो नमक तेल घी शक्कर एवं हरी सब्जियों के अलावा बहुत से त्याग किए हुए हैं अब ऐसी स्थिति में उन्हें उबली हुई मूंग की दाल तथा सूखी रोटी आहार में देना होता है इतने महान संत और साधारण भोजन उसमें भी कभी-कभी उपवास भी होता है एक बार अन्न- जल ग्रहण करने वाले यह तपस्वी संतो को जब आप देखेंगे तो चेहरे में एक अलग ही तेज दिखाई देता है l


भोजन हाथों में लेते हैं और अपने हाथों से ही ग्रहण करते हैं जल भी चुल्लू लगाकर हाथों से पीते हैं 32 निवाले 32 बार चबा चबाकर भोजन को ग्रहण करते हुए तथा यह तपस्वी संत जब आहार के लिए निकलते हैं तो अंदर से कोई ना कोई विधान मन में लेकर चलते हैं उस विधान के अनुरूप ही अगर कोई याचक मिलता है तभी ही वह आमंत्रण स्वीकार कर आहार ग्रहण करते हैं तथा जहां आहार ग्रहण करने जाते हैं उस चौके में किसी भी तरह की कोई त्रुटि ना हो यहां तक की कोई एक चींटी भी मरी नजर नहीं आनी चाहिए एवं भोजन में बाल इत्यादि ना हो साफ सफाई का विशेष ध्यान दिया जाता है एवं कई बार महाराज श्री जिस याचक के हाथों भोजन ग्रहण करते हैं उसे कोई ना कोई एक बुराई छोड़ने के लिए भी प्रेरित करते हैं वैसे भी जैन धर्म में त्याग की भावना प्रेरित की जाती है क्योंकि संत बहुत ही त्यागी होते है वास्तव में उनके त्याग व सद्भाव के इन उद्देश्यों को हम अपने जीवन में क्षणिक मात्र ही ग्रहण करें तो हमारा जीवन धन्य हो जाएगा वैसे भी कहा गया है भोजन कराने वाले की आंखों में भूख होनी चाहिए जहां चाह वहां राह चतुर्मास  के दौरान  देश के कोने से  आकर खजुराहो में  आचार्य श्री को आहार देने के उद्देश्य से  लोग चौका लगाते हैं  एवं आचार्य श्री उनके यहां आहार ले इसके लिए  विभिन्न विभिन्न तरीके से लुभाते हैं महाराज श्री हमारे नगर खजुराहो में पधारे एवं उनके साथ एक बड़ा संत समाज भी आया वास्तव में यह धरा धन्य हो गई और हम समस्त नगर वासी अपने इस जीवन को धन्य मानते हैं संतो के चरण इस धरा में बार-बार पड़ें जिससे यह रज पुलकित एवं प्रभावी हो जाए तथा नगर में सुख शांति एवं समृद्धि आए इसी कामना के साथ आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के चरणो में शत शत नमन
राजीव शुक्ला पत्रकार खजुराहो

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