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मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज

*दया-अहिंसा,परोपकार को जन्म देती है,योगियों की योग्यता का मापदंड ही दया*योग सागर जी मह मुनिश्री योगसागर जी महाराज ने शुक्रवार की सुबह मंगल प्रवचन दिए। उन्होंने कहा कि विद्याधर की शुद्ध दया ही अहिंसा महाव्रत में परिणत हुई। जिस प्रकार दूध में


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दया-अहिंसा, परोपकार को जन्म देती है, योगियों की योग्यता का मापदंड ही दया योग सागर जी महाराज
पथरिया

मुनिश्री योगसागर जी  महाराज ने शुक्रवार की सुबह मंगल प्रवचन दिए। उन्होंने कहा कि विद्याधर की शुद्ध दया ही अहिंसा महाव्रत में परिणत हुई। जिस प्रकार दूध में घी तैरता है वैसे ही भव्य पुरुष के हृदय में दया स्वाभाविक रूप से तैरती हुई नजर आती है। दया, अहिंसा, परोपकार को जन्म देती है। योगियों की योग्यता का मापदंड दया है।
उन्हाेंने कहा बचपन की दया ने विद्याधर को दया का सागर विद्यासागर बना दिया। बचपन में एक बार विद्याधर ने घर के एक कोने में चूहे का एक बड़ा बिल देखा, उसमें नवजात चूहे का बच्चा तड़प रहा था। उसके शरीर पर लाल चीटियां काट रहीं थीं। देखते ही विद्याधर ने शिशु चूहे को अपने हाथों में उठा लिया और एक-एक करके चीटियों को फूंक से उड़ा दिया। वह शिशु चूहा बच गया। उसी समय मां ने देखा और पूछा-क्या कर रहे हो। विद्याधर ने बताया तब मां बोली यह तिर्यंच गति दुख की गति है, इस प्रकार से तिर्यंच जीव संसार में सदा दुःख उठाते हैं। दुखी जीवों पर दया करना अच्छी बात है, किंतु शिक्षा भी लेना चाहिए ऐसी गति में जाने से बचना चाहिए। विद्याधर ने मां को कहा मैं सदा दुखी जीवों को बचाऊंगा और ऐसे कोई कार्य नहीं करूंगा जिससे तिर्यंच गति में जाना पड़े। और शिशु चूहे को ऊंचे स्थान पर रख दिया जिससे अन्य जीव उसे पीड़ा न पहुंचा पाए।
उन्होंेने कहा इस प्रकार आज आपके दिव्य शिष्य की प्रेरणा से सैकड़ों गौशालाएं संचालित हो गई हैं। जहां पर कल्त खानों से गौवंश को बचाया गया है। बचपन की दया आज दया का सागर बन गई है। ऐसे अहिंसा के पुजारी गुरूदेव को उन्होंने प्रणाम किया। प्रवचनों के बाद मुनिश्री की पथरिया नगर में आहारचर्या हुइ। इसके बाद दोपहर में दमोह की ओर बिहार हुआ।
  संकलन अभिषेक जैन लुहाडीया  रामगंजमंडी

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