SAUMYA UKAWAT Posted December 6, 2023 Report Share Posted December 6, 2023 तलवाड़ा 06-12-2023 **पुत्र अच्छा होगा तो आपकी धन ,संपत्ति को सुरक्षित रखेगा* *पुण्य होता है तो आपका सब अच्छा होता है* श्री संभवनाथ दिगंबर जैन मंदिर तलवाड़ा जिला बांसवाड़ा राजस्थान में आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के शिष्य मुनि श्री विमल सागर जी महाराज मुनि श्री अनंत सागर जी महाराज मुनि श्री भाव सागर जी महाराज के सानिध्य में 6 दिसंबर 2023 को धर्मसभा का आयोजन हुआ जिसके अंतर्गत चित्र अनावरण, दीप प्रज्वलन, पाद प्रक्षालन,शास्त्र अर्पण किया गया धर्म सभा को संबोधित करते हुए मुनि श्री विमल सागर जी महाराज ने कहा कि बच्चे कई घंटे तक हिंसक गेम खेलते हैं इनका त्याग करवाना चाहिए, साधुओं से बच्चों के संस्कार करवाना चाहिए, धर्म की महिमा अपरंपार है, अनंत जन्म ,मरण हमारे हो चुके हैं ,अब कल्याण करना है,जैन समाज में रात्रि में विवाह आदि पर प्रतिबंध होना चाहिए ,पुत्र अच्छा होगा तो आपकी धन ,संपत्ति को सुरक्षित रखेगा और पुत्र को कुपुत्र होगा तो आपकी संपत्ति को नष्ट कर देगा, पुण्य होता है तो आपका सब अच्छा होता है ,साधु की संगति से सब अच्छा हो जाता है, मुनि श्री अनंत सागर जी महाराज ने कहा कि निंदा में समय कब निकल जाता है पता नहीं चलता है ,ऐसी चर्चाओं से बचे जिसमें पाप का बंध हो रहा हो ,अपने समय का उपयोग धार्मिक क्रियाओं में करेंगे तो फायदा होगा, ऐसा व्यापार नहीं करें जिसमें हिंसा हो मुनि श्री भाव सागर जी महाराज ने कहा कि *पंचकल्याणक महोत्सव यह कहलाता है* यह नर से नारायण, आत्मा से परमात्मा बनने और सिद्ध अवस्था को प्राप्त करने की प्रक्रिया का महोत्सव है। । तीर्थंकरों के जीवन में घटित पांच घटनाओं का चित्रण होता है पंचकल्याणक में। पौराणिक पुरुषों के जीवन का संदेश घर-घर पहुंचाने का उद्देश्य होता है इन महोत्सवों में पात्रों का अवलम्बन लेकर जीवन यात्रा को रेखांकित किया जाता है। पंचकल्याणक तीर्थंकर भगवान के गर्भ में आने से लेकर मोक्ष जाने पर्यन्त विशिष्ट समारोहों के रूप में मनुष्यो द्वारा यथासमय मनाए जाते हैं। ये कल्याणक इनके तीर्थंकर नामक पुण्य प्रकृति के उदय से ही होते हैं, पंचकल्याणक तीर्थंकरों के ही होते हैं। गर्भ में आने से लेकर मोक्ष तक की यात्रा का जीवंत चित्रण है पंचकल्याणक जैसे एक सामान्य व्यक्ति का जन्म होता है, वैसे ही तीर्थंकर का भी जन्म होता है। गर्भ में आने से लेकर मोक्ष तक की यात्रा का जीवंत चित्रण पंचकल्याणक के माध्यम से देखने को मिलता है। जन्म तो सबका होता है, लेकिन कुछ लोग जीवन ऐसा जीते हैं, जो अन्य के लिए भी आदर्श बन जाते हैं। अपना तो कल्याण कर ही लेते हैं, लेकिन उनके संपर्क में आने वालों का भी कल्याण हो जाता है। मानव जीवन के हितार्थ व आत्मिक शांति की प्राप्ति हेतु प्राणी मात्र के कल्याण हेतु होते हैं विविध धाार्मिक आयोजनों के साथ पंचकल्याणक की ही क्रिया के साथ नई मूर्तियां प्रतिष्ठित होती हैं और पूजनीय मानी जाती है। पंचकल्याणक, ग्रन्थों के अनुसार वे पांच मुख्य घटनाएं हैं जो सभी तीर्थंकरों के जीवन में घटित होती हैं। ये पांच कल्याणक हैं- *गर्भ कल्याणक* जब तीर्थंकर प्रभु की आत्मा माता के गर्भ में आती है। *जन्म कल्याणक* जब तीर्थंकर बालक का जन्म होता है। *तप कल्याणक* जब तीर्थंकर सब कुछ त्यागकर वन में जाकर मुनि दीक्षा ग्रहण करते है। *ज्ञान कल्याणक* जब तीर्थंकर को केवल ज्ञान की प्राप्ति होती है। *मोक्ष कल्याणक* जब भगवान शरीर का त्यागकर अर्थात सभी कर्म नष्ट करके निर्वाण/ मोक्ष को प्राप्त करते है। पंचकल्याणक महोत्सव तीर्थंकर प्रभु के जीवन का जीवंत प्रस्तुतीकरण है जीवन की कालिमा कम होती है सम्यक जीवन शैली का दिग्दर्शन है बिंबो में श्रद्धा समर्पण संयम तप के द्वारा अर्हत सत्ता का गुण आरोपण किया जाता है तीर्थंकर के जीवन की विशेष घटनाओं का प्रस्तुतीकरण है तीर्थंकर प्रभु के जीवन चरित्र को स्मरण करके मोक्ष मार्ग प्रशस्त किया जाता है मंत्रो, भक्तियों एवं अनुष्ठान क्रिया विधि द्वारा आत्मा को परमात्मा बनाया जाता है आत्मा से परमात्मा बनते हैं पंचकल्याणक से प्रभु का जन्म होते ही समस्त दिशाएं आकाश निर्मल हो जाता है शीतल सुगंधित पवन बहने लगती है शंखनाद भेरीनाद, सिंहनाद, घंटानाद होता है धर्म प्रभावना व संस्कारों के जागरण के लिए मांगलिक क्रियाओं के आयोजन करने का नाम पंचकल्याणक है संस्कारों से मानव महामानव बन जाता है पवित्र आत्माओं के महोत्सव मनाए जाते हैं कल्याणक का अर्थ होता है पुण्य पवित्र प्रशस्त्र मंगल जो हित करने वाला होता है जो इनको लाता है कल्याणक कहलाता है यह अत्यंत कल्याण व मंगलकारी होते हैं निर्मित प्रतिमा की शुद्धि के लिए जो पंचकल्याणक किए जाते हैं या उसी की कल्पना है प्रतिमा में स्थापना की जाती है सूरि मंत्र से संस्कारित पाषाण परमात्मा बन जाते हैं ,फिर उनकी पूजा, वंदना ,स्तुति होने लगती है ,इसके माध्यम से नव पीढ़ी उन महापुरुषों के चरित्र से परिचित होती है, तीर्थंकरों की स्मृति हमारे अतः पटल पर बनी रहती है, तीर्थंकर की भक्ति करके पुण्य उपार्जन का शुभ अवसर प्राप्त होता है, जो पंचकल्याणक में सहभागिता देते हैं आगामी काल में उनके भी पंचकल्याणक होते हैं, पंचकल्याणक महापुरुषों के श्रेष्ठ गुण रूपी पुष्पों की वह विकसित अवस्था है जिसकी सुगंधि से जनमानस भी आकर्षित होकर निज कल्याण की भावना साकार करता है ,किकंर से तीर्थंकर बनने की कला सिखाई जाती है तीर्थंकरों के गुणो को स्मरण करने तथा उन्हें पाने की प्रक्रिया है Link to comment Share on other sites More sharing options...
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