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नव आचार्य श्री समय सागर जी को करें भावंजली अर्पित ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज

कुछ शब्द गुरु चरणों मे....


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वीर प्रभु की सूरत से,

   मिलती जुलती एक सूरत है,

मन मंदिर मे वो मेरे,

   विद्या गुरु कि मूरत है,

ना देखा है मैंने दूजा,

   ऐसा संत इस धरती पर,

ओढ दिगंबर वेश जगत मे,

   जो आगम संयम धारी है।

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6 hours ago, Palak Jain pendra said:

कैसे पाउ दर्शन तेरे,

 थोडी दूर हूँ गुरुवर तेरे,

मेरे भाव रहते व्याकुल,

  नैनन ये मेरे है आकुल,

शीघ् दर्श प्रत्यक्ष होगा,

  मैं तेरे दर पे होगा,

तू सामने होगा मेरे,

  मैं चरणों मे तेरे होगा।

जय जिनेन्द्र

Edited by Palak Jain pendra
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5 hours ago, Palak Jain pendra said:

अनगिनत उपकार उनके,

  ऋण कैसे चुकाये हम,

सौंप दे जीवन अपना,

   तो भी ऋण ना दे पाये हम,

वो सूरज वो दिवाकर है,

   कैसे दीप दिखाए हम,

विद्या सिंधु की धारा मे,

   बस बहते ही तो जाए हम।

 

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क्या समर्पण मैं करुँ,

 शब्द भी तेरे दिए,

ऐसा कुछ ना मेरे पास,

  जो सूरज को हम दे सके,

असमां से चाँद भी मैं,

  दूँ सजा इस वसुंधरा पे,

तो भी तेरे सम्मुख गुरुवर,

  चाँद भी फीका लगे,

कोहनूर के हीरे को मैं,

  क्या अर्पण कर सकता हूँ,

जिसने देह मे प्राण दिए,

  क्या उसे मैं दे सकता हूँ,

जीवन समर्पित गुरु तुझे,

  अर्पण मेरे हर एक बोल,

हर पल गुरु ही स्वास मेरी,

  अंतिम पल भी गुरु के बोल।

Edited by Palak Jain pendra
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जो मिले है गुरु से शब्द,

  वो गुरु को समर्पित,

हर पल हर क्षण,

  गुरु को हि अर्पित,

सौभाग्य है मेरे ये,

  गुरु छत्र छाया मे हूँ,

मिलने को खुद से ही,

  गुरुवर पद चरणों मे हूँ।

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अपना तो सब कुछ बाबा,

  तुझ पे हि छोड़ा है,

तू सब कुछ देगा मालिक,

  मुझ को भरोसा है,

मैंने ना चाहा ज्यादा,

  कम तू ना देता है,

दोनों का नाता बाबा,

  जन्मो का लेखा है।

 

नमोस्तु गुरुदेव 🙏🏻

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हां माना दर्शन दुर्लभ है,
क्षेत्र से दुरी ज्यादा है,
आज श्रद्धा नैनो से किये,
कल साक्षात् करेंगे वादा है,
हां माना आशीर्वाद तेरा है,
चारों ओर फैला रहता है,
आज दूर से आशीर्वाद लिया,
कल पिछि से लेयेगे वादा है,
हाँ माना चरणों मे अमृत है,
दिखती मुझको जन्नत है,
आज दूर से नमोस्तु किया,
कल चरण छूयेगे वादा है।

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महावीर की प्रति छाया है,

   कुन्द कुन्द के जीवंत रूप,

वो मेरे घन श्याम है,

   मैं मीरा सी भक्तन उनकी,

एक दिन चन्दन बाला बन,

   मैं चौक पूराऊगी चौके का,

विद्या गुरु के रूप मे,

   वो घर आएंगे वीरा सा।

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गुरु विद्यासागर कि जय,

  ओह मेरे गुरुवर कि जय,

आचार्य श्री मेरे अरिहंता,

  है भावी तीर्थंकर वो भगवन्ता,

वो मंद मधुर मुस्कान,

   है मेरे गुरु जी महान,

वो सिद्ध परम उपकारी,

  है गुरुवर पंच महाव्रत धारी,

मैं उनको शीश नवाऊ,

  नित उनके ही गुण गाऊ,

चरणों के जीवन गुजारु,

  मैं गुरु ऐसी अरज लगाउ।

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वसुन्धरा मे वरदान है गुरु,

  जैनों के भगवान है गुरु,

मोती के माला है गुरु,

  युग मे जीवंतशाला है गुरु,

उनका हर एक पग,

  पहचान है आगम की,

उपदेश देती प्रभुवर का,

   शांत मुद्रा देख गुरु की।

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नत मस्तक होता जग सारा,

  नत मस्तक देव भी होते है,

कुन्द कुन्द कि परम्परा का,

  पालन गुरुदेव जो करते है,

आकार मिला फिर से जिनसे,

   धर्म नीव मजबूत करवाई है,

अरिहंत रूप ले कर जिसने,

   महा वीर ध्वजा फहराई है।

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क्या हुआ आँखो से देख नहीं पाया मैं,

तेरी याद का आना काफी है,

तू साथ है मेरे यकीन है मुझे,

इस बात का होना काफी है,

दूर हो कर भी पास है तू मेरे,

 तेरा साथ होना हि काफी है,

चरणों को छूया नहीं तो क्या हुआ,

आशीष साथ है मेरे ये अहसाह हि काफी है।

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गुरु का आशीर्वाद ही,
  मेरी सबसे बड़ी धरोहर है,
ना चाहत रत्न आभूषण कि,
   मुझे चाहत रत्नाकर कि है,
वो सूरज की पहली किरण,
   वो चांदनी सी मुस्कान है,
और दाता मे सबसे बड़े,
   वो ऋषि राज महान है।

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गुरु अथाह गुरु उत्कृष्ठ

हम निरा निकृष्ठ

गुरु सिंधु है

हम एक बिंदु भी नही

 

जतन यही कि उन महा सिंधु की

बिंदु का भी साथ मिले

अपना कर लूँ उद्धार

इस अधम का

हो जाये बेड़ा पार।

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तोड़ा जग से नाता

तुम्हें अपना माना है॥

तुम्हीं तो हितेशि हो

दिल से पहचाना है ॥

हम दास है चरणो के

पहचान अमर कर दो॥

गुरुवर हम आए है,

हमें अपनी शरण ले लो ॥

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गुरू जी,

आपके दर्शन को तरसती है आँखे

तरसते तरसते जब बरसती हैं

आँखें

बरसते बरसते जब थमती है

आँखें

फिर से आपके दर्शन को

तरसती है आँखें।

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मन मे एक दीप जलाये,
बस गुरु को पूजा है,
जो जग मे सर्व श्रेष्ट,
उन सा ना दूजा है,
जो काले आकाश मे,
चाँद से चमकते है,
जो घने अंधकार मे,
जुगनू से दमकते है,
जो तीर्थंकर सा तेज लिए,
विश्व को महकाते है,
ऐसे गुरु विद्या सागर,
गुरु तीर्थ कहलाते है।

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गुरुवर तेरे चरणों मे मैं,

दिन रात निकलूंगा,

तेरे सम्मुख बैठे तेरी,

छवि निहारुगा,

देख ह्दय से तुझको भगवन,

जन्म सुधारुगा,

भावों कि शुभ थाल सजाकर,

पूजा रचाउगा,

ह्दय वेदी मे तुझको लाकर,

तुझे विराजुगा,

मन मंदिर मे आकर भगवन,

करना मुझको निहाल,

नैनो से फिर दिखते रहना,

सुनना भक्त पुकार।🙏🏻🙏🏻

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विद्या सा दूजा ढूँढू कहा,

   उनसा ना दूजा जग मे दिखा,

वो ऐसे हीरे मोती है,

   जिसे ज्ञान ने जोहरी सम परखा,

ऐसे साधक कि साधना भी देखो,

   तप की अग्नि मे तपती है,

रख कदम मोक्ष की राहों मे,

   समता क्षमता सी निखरती है।

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जिनके मुख से मुकमाटी सा,

     आध्यात्म रस है बहता,

जिनको सुनकर श्रोता जन को,

     निज दर्शन है होता,

ऐसे साधक गुरु विद्यासागर की,

      साधना हर पल झलकती,

समता क्षमता तप संयम की,

      बगिया गुरुवर मे महकती।

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तोड़ दिए है सारे बंधन,

    नाता जग से तोड़ लिया,

रत्नत्राय धार लिया गुरु ने,

    नाता प्रभु सँग जोड़ लिया,

बढा दिया है कदम अपने,

     मोक्ष पथ की राहों मे,

लिए ज्ञान का ज्ञान साथ,

     संयम पथ की राहों मे।

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चाँद सी शीतलता है,
   तो रवि सा तेज भी,
मुख मे कोमलता है,
   तो अमृत सा ज्ञान भी,
चरणों मे चरणामृत है,
   तो मधुवन सा तीर्थ भी,
हाथो मे पिछिका है,
   तो प्रभु सा आशीर्वाद भी।

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