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बड़े बाबा और छोटे बाबा एवं उनके बड़े समवशरण की इन्द्रों द्वारा अद्भुत भक्ति....


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बड़े बाबा और छोटे बाबा एवंउनके बड़े समवशरण की इन्द्रों द्वारा अद्भुत भक्ति....

इन दिनों बड़े बाबा के दरबार मे मुनिसंघो, आर्यिका संघो का आगमन प्रतिदिन हो रहा है
जब भी आपको पुण्य उदय से अवसर मिले तो अवश्य देखियेगा, कि संघो के आगमन के समय जब समस्त मुनिराज एवम आर्यिका संघ अपने शिक्षा दीक्षा प्रदाता ऋषिराज श्रमणेश्वर आचार्यश्री की परिक्रमा करते है तब लगता है कि चारित्र, तप, त्याग, तपस्या के सुमेरु पर्वत की परिक्रमा ज्योतिषी देव सूर्य, चन्द्रमा, ग्रह, नक्षत्र तारे एक साथ कर रहे है
समस्त मुनिराजों के मुखमंडल पर दमकता तेज ज्योतिष देव सूरज की किरणों की मानिंद लगता है
वहीं श्वेत, धवल वस्त्र में समस्त आर्यिका माताजी ऐसी सुशोभित होती है जैसे साक्षात ज्योतिष देव चन्द्रमा अपनी चांदनी संग सुमेरु पर्वत की परिक्रमा कर रहे हों।
अभी तक लाखों श्रावक परिवार ऐसी अद्भुत भक्ति धारा में अवगाहित हो चुके है
तो भला स्वर्ग के इंद्र इंद्राणी कैसे दूर रह सकते है

प्रतिदिन मुनिराजों आर्यिका माताजी द्वारा भक्ति  और सौधर्म इंद्र एवम समस्त इंद्र परिवारों सूरज दादा, चंदा मामा की प्रति दिन गुरुभक्ति देख वरुण इंद्र और मेघकुमार इंद्र से रहा न गया उन्होंने कुबेर इंद्र को समझा बुझा कर अपने संग गठजोड़ कर लिया
इन तीनों  इन्द्रों ने बड़े बाबा और छोटे बाबा की भक्ति करने से पहले सांगानेर, चांदखेड़ी, बिजोलिया से भक्ति आरम्भ की, वरुण देव अपने धुंआधार गति से बढ़ रहे थे  वहीं कुबेर देव बड़ी उदारता से रत्नों की वर्षा कर रहे थे
यह बात अलग है कि वे रत्न धरती में पहुचने तक ओले की शक्ल में बदल जाते थे
राजस्थान से लेकर मप्र और फिर बड़े बाबा के दरबार मे भक्ति में ऐसे बरसे की  आहार चर्या के समय पड़गाहन में भी डटे रहे।
स्वर्ग वापसी के समय तीनों  इंद्रदेव ने छतीसगढ़ के चन्द्रगिरि ओर अमरकंटक में भी अपनी अद्भुत भक्ति का अनूठा प्रदर्शन  किया था
स्वर्ग के नारद मीडिया के अनुसार सुना गया है कि धनश्री कुबेर इंद्राणी और वरुण  व मेघकुमार इंद्र की इंद्राणी ने अपने महलों के द्वार बंद कर कोप भवन में चली गईं है उन्हें शिकायत है कि जब  अनेकों विशाल मुनिसंघ आर्यिका संघ बड़े बाबा के दरबार हेतु विहार कर रहे है तब तो ऐसे मौसम में वरुण कुमार मेघकुमार इन्द्रो और सबसे बड़ी बात कुबेर इंद्र  को वहां क्यो जाना था?  कम से कम रत्न वृष्टि से तो बचना था। और ज्यादा ही भक्ति भाव छलक रहा था तो मध्य रात्रि  ही जाना था। ताकि ऐसे ऋषिराज, यतिराजो, आर्यिका माताजी पर उपसर्ग करने से तो बच जाते
बेचारे तीनों इंद्र भीगती बरसात और कड़कड़ाती ठंड में बाहर खड़े है.....

 

शब्दआंकन
.राजेश जैन भिलाई .
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Edited by राजेश जैन भिलाई
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