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मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज

वेल्कम नहीं वेल गो के बारे में सोचो


संयम स्वर्ण महोत्सव

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साधु को यह प्रषिक्षण दिया जाता है कि आप व्यापार कर रहे हो यदि अचानक कुछ हो जाये तो सावधानी से अंतिम समय अच्छे से निकल जाये। रत्नात्रय ऐसा माल है जो कोई लूट नहीं सकता यदि लूट ले तो माला – माल हो जायेगा। दुनिया छूट जाये तो कोई बाधा नहीं लेकिन रत्नात्रय नहीं छूटना चाहिये। संसार रूपी महान वन से पार कर देते हैं। आना इतना महत्वपूर्ण नहीं जितना जाना है। अपनी – अपनी इन्द्रियों को चोर के समान समझो वेल्कम नहीं वेल गो के बारे मे ंसोचो। पाॅंच इंद्रिय और मन के द्वारा आप लूट रहे हैं। जो इंद्रियों का दमन करते हैं, कषायों का शमन करते हैं, देव उन्हे नमन करते हैं। इंद्रिय और मन को जो काबू में करता है वह सबको वष मे ंकरता है। आत्मा इंद्रियों से वषीभूत होकर भगवान को भूल जाती है। गुरू अपने आप में सहायक तत्व है मोक्ष मार्ग में । अनंत कालीन संस्कार रहते हैं जो छूटने के बाद भी बार – बार आ जाते हैं, उन्हे वह गुरू दूर करते रहते हैं। मोक्ष मार्ग में जो जाना चाहता है उसको मोह, प्रमाद से बचना चाहिये। यदि स्कूल में कोई प्रमाद करता है तो बैंच पर खड़ा कर देते हैं।

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