सम्यक दर्शन की उत्पत्ति
पूज्य आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज ने अपने प्रवचनों में कहा कि सम्यक दर्शन की उत्पत्ति में अनेक कारण होते हैं हरेक गति में धर्म श्रवण होता है, नरक में भी देवलोग जाकर नार्कियों को संबोधित करते हैं। 16 स्वर्ग वाले शुक्ल लेश्या वाले देवों के नीचे वाले देव जाते हैं। अधोगति में अपने ढंग की कषाय अलग होती हैं बहुत तीव्र होती है फिर भी सम्यक दर्शन उन्हें होता है। यदि आप दुसरे से सत्य बुलवाना चाहते हो तो आपको भी सत्य को अंगीकार करना होगा। वात्सल्य चाहते हो तो अपने ह्रदय को वात्सल्य से भरना होगा। अधोलोक में अनुग्रह नहीं होता स्वयं जाग्रत होना पड़ता है। आज समाचार पत्रों में गरम ख़बरों का चलन ज्यादा हो गया है सही ख़बरों का नितांत आभाव हो गया है, आज अपनी विचारधारा थोपने का चलन बढ़ता जा रहा है। सब अपने विचारों को थोपने में लगे हैं।
उन्होंने कहा कि जब तक भूख से बच्चा नहीं रोता तब तक माँ उसे खाना नहीं देती,इसी प्रकार आप अपने अंतरात्मा में धर्म की भूख नहीं बढ़ाओगे तब तक आपको कोई गुरु सदमार्ग का अमृतपान नहीं करायेगा।
लोकतंत्र में किसी को बाध्य नहीं किया जा सकता है किसी बात को मानने के लिए परंतु अपनी बात पूरी निष्ठा और ईमानदारी से रखना चाहिए। सबको अपनी बात रखने का अधिकार है,अपने गुणों को रखने का अधिकार है परंतु किसी को किसी की आलोचना का अधिकार है, समालोचना तो होना चाहिये। दूसरों के गुणों की जो प्रशंशा करता है समाज में उसका महत्व बढ़ जाता है। जो अपनी आलोचना करता है दुनिया कभी उसकी आलोचना नहीं करती। समालोचना से साहित्यकार को भी समाज में स्वीकार किया जाता है। समाचार पत्रों को आलोचना की ख़बरोंं से बचकर समाज को सही दिशा देने वाले समाचार देना चाहिए तभी समाज और राष्ट्र को सही दिशा मिल सकेगी।
उन्होंने कहा कि सम्यक दर्शन कोई छोटी वस्तु नहीं है जो बाजार में मिल जाय वो तो स्वयं की कमियों को दूर करके और अपनी आलोचना से ही सम्यक दर्शन प्राप्त किया जा सकता है।
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