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मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
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आत्मा का स्वभाव जानना और देखना है | 29 मई २०२३ आचार्य श्री विद्या सागर जी महाराज के प्रवचन


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आत्मा का स्वभाव जानना और देखना है |

दाम बिना निर्धन दुखी, तृष्णा वस् धनवान |

कहीं न सुख संसार में, सब जग देखलियों छान ||

राजा राणा छत्रपति हाथिन के अश्वार |

मरना सबको एक दिन अपनी – अपनी बार ||

-  आचार्य श्री विद्यासागर महाराज

 

29/05/2023 सोमवार

डोंगरगढ़ – संत शिरोमणि 108 आचार्य श्री विद्यासागर महाराज ससंघ चंद्रगिरी डोंगरगढ़ में विराजमान है | आज के प्रवचन में आचार्य श्री ने बताया कि एक बड़ा वृक्ष है जिसकी छाँव में बहुत सारी गाये आदि बैठे थे और वहाँ के वातावरण में कुछ ठंडक थी | इसके पीछे क्या रहस्य है यह छाँव कहा से आ रही है और इसमें कुछ ठंडक का एहसास भी हो रहा है जिससे पशु – पक्षी आदि वहाँ एकत्रित हो गये है | उस वृक्ष को किसने लगाया या वह अपने आप ही उग गया है | जब उस वृक्ष के बारे में गहराई से शोध करते हैं तो पता चलता है कि वह वृक्ष एक सरसों के दाने जितना बड़ा बीज से उत्पन हुआ है और वह जो कुछ भी आज है उसे सब कुछ धरती से प्राप्त हुआ है | वह आज भी इतनी ऊंचाई पर होने के बाद भी अपनी जड़ से जुड़ा हुआ है जिसके कारण उसको भूमिगत जल से जल कि प्राप्ति हो जाती है जिससे वह स्वयं ठंडा रहता है और उसकी छाँव में भी कुछ ठंडक का एहसास होता है | आप लोग जो आज कल दिनभर कूलर के सामने बैठे रहते हैं वह शुरुवात में ठंडी ठंडी हवा देता देता है परन्तु कुछ घंटो बाद वह उतनी ठंडी हवा नहीं देता उसमे से भी हल्की गर्म हवा आने लगती है क्योंकि आपके कमरे का वातावरण में बाहर कि हवा का प्रवाह बंद होने के कारण ऐसा होता है जबकि उस वृक्ष कि छाँव में हमेशा ठंडक बनी रहती है चाहे बाहर लू चल रही हो तो भी छाँव में आते ही कुछ ठंडक का एहसास होने लगता है | आत्मा का स्वभाव जानना और देखना है | किसी भी वस्तु आदि को देखने  और जानने में कोई समस्या नहीं है लेकिन उस वस्तु को पकड़ने कि, खरीदकर अपने पास रखने कि  और छिनने का स्वभाव आत्मा का नहीं होता है | इसलिए जो व्यक्ति अपने स्वभाव में रहता है वह संतोषी होता है उसके भाव, परिणाम शांत रहते है |

 

 

दाम बिना निर्धन दुखी, तृष्णा वस धनवान |

कहीं न सुख संसार में, सब जग देखलियों छान ||

धन के बिना निर्धन दुखी है और तृष्णा के कारण धनवान भी और – और – और धन चाहिये के चक्कर में दुखी रहता है पर वह किसी से कहता नहीं है | इस संसार में कितने चक्रवर्ती हुए है कितने अरबपति, ख़राबपति हुए है पर आज तक कोई संतुष्ट नहीं हुआ है धन, दौलत, हीरा, मोती, सोना, चांदी आदि जमा कर - कर के | इस संसार में जो कुछ बाहर कि वस्तु आदि है वह सब सुखाभास है | जो सच्चा सुख है वह हमारे भीतर है जो इसे जान लेता है वह फिर पैसे के पीछे नहीं जाता जबकि उसके पीछे पैसा भागता है |

राजा राणा छत्रपति हाथिन के अश्वार |

मरना सबको एक दिन अपनी – अपनी बार ||

इस धरती पर कितने ही राजा, महाराजा हुए है जिनके पास सैकड़ों, हजारों कर्मचारी, महल, धन, दौलत, हीरा, मोती, सोना, चांदी आदि होते हुए भी आज वे कहाँ है कुछ पता नहीं | कितने आये और कितने चले गए ऐसे ही सबको एक दिन जाना है यह निश्चित है जिसको कोई रोक नहीं सकता है | बारह भावना में यह सब कुछ लिखा है जिसे हमें प्रतिदिन पढना चाहिये और उसका स्मरण भी करना चाहिये| दिगम्बर मुनिराज जो इस तपती गर्मी में पहाड़ पर जाकर तप करते हैं जहाँ बाहर लू चल रही हो और निचे चट्टान भी तप रही हो ऐसे में वो अपने तप में ऐसे लीन रहते हैं जिससे उनके कर्मों कि निर्जरा होती है | आज आप लोग तप के बारे में सुन रहे हैं अच्छा है जिसके बारे में सोचने से भी आपको पसीना आता है ऐसे में वो मुनिराजों कि तपस्या क्या गजब होती होगी जो शिखरों में, बड़े – बड़े पहाड़ कि गुफाओं में अपनी तपस्या करते होंगे | कभी चंद्रगिरी के पहाड़ में भी कई साधुओं ने तप किया होगा | ऐसे तपस्वियों के प्रभाव से ही आपको यहाँ आकर शान्ति का अनुभव होता है | तो सोचो उन तपस्वियों को कितनी शान्ति का अनुभव होता होगा और वे कितने आनंदीत होते होंगे | एक – एक पल में कितने – कितने कर्मों कि निर्जरा होती होगी | इस प्रकार आप अपने स्वभाव में रहकर अपना आत्मकल्याण कर सुख – शांति से अपना जीवन जी सकते हैं | आज आचार्य श्री को नवधा भक्ति पूर्वक आहार कराने का सौभाग्य श्री श्रेणिक जी परिवार को प्राप्त हुआ जिसके लिए चंद्रगिरी ट्रस्ट के अध्यक्ष सेठ सिंघई किशोर जैन,सुभाष चन्द जैन, चंद्रकांत जैन, निखिल जैन (ट्रस्टी),निशांत जैन  (सोनू), प्रतिभास्थली के अध्यक्ष श्री प्रकाश जैन (पप्पू भैया), श्री सप्रेम जैन (संयुक्त मंत्री) ने बहुत बहुत बधाई और शुभकामनायें दी| श्री दिगम्बर जैन चंद्रगिरी अतिशय तीर्थ क्षेत्र के अध्यक्ष सेठ सिंघई किशोर जैन ने बताया की क्षेत्र में आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी की विशेष कृपा एवं आशीर्वाद से अतिशय तीर्थ क्षेत्र चंद्रगिरी मंदिर निर्माण का कार्य तीव्र गति से चल रहा है और यहाँ प्रतिभास्थली ज्ञानोदय विद्यापीठ में कक्षा चौथी से बारहवीं तक CBSE पाठ्यक्रम में विद्यालय संचालित है और इस वर्ष से कक्षा एक से पांचवी तक डे स्कूल भी संचालित हो चुका है | यहाँ गौशाला का भी संचालन किया जा रहा है जिसका शुद्ध और सात्विक दूध और घी भरपूर मात्रा में उपलब्ध रहता है | यहाँ हथकरघा का संचालन भी वृहद रूप से किया जा रहा है जिससे जरुरत मंद लोगो को रोजगार मिल रहा है और यहाँ बनने वाले वस्त्रों की डिमांड दिन ब दिन बढती जा रही है | यहाँ वस्त्रों को पूर्ण रूप से अहिंसक पद्धति से बनाया जाता है जिसका वैज्ञानिक दृष्टि से उपयोग कर्त्ता को बहुत लाभ होता है|आचर्य श्री के दर्शन के लिए दूर – दूर से उनके भक्त आ रहे है उनके रुकने, भोजन आदि की व्यवस्था की जा रही है | कृपया आने के पूर्व इसकी जानकारी कार्यालय में देवे जिससे सभी भक्तो के लिए सभी प्रकार की व्यवस्था कराइ जा सके |उक्त जानकारी चंद्रगिरी डोंगरगढ़ के ट्रस्टी निशांत जैन (निशु) ने दी है |

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