Jump to content
मूकमाटी प्रश्न प्रतियोगिता प्रारंभ ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज

पवित्र मानव जीवन


संयम स्वर्ण महोत्सव

2,219 views

यह कृति आचार्य ज्ञानसागरजी ने उस समय सन् १९५६ में लिखी जब वे क्षुल्लक अवस्था में थे। यह कृति महत्त्वपूर्ण इसलिए नहीं कि इसके लेखक, वर्तमान के आचार्य विद्यासागरजी महाराज के गुरु हैं बल्कि यह इसलिए महत्त्वपूर्ण है कि वर्तमान में भारत जहाँ जा रहा है, यदि इस पुस्तक के अनुसार चला होता तो स्वतंत्रता के बाद यह देश अपने इतिहास की स्वर्णिम अवस्था को पुनः प्राप्त कर चुका होता। अब भी अवसर है यदि देशवासी इन नीतियों का अनुकरण करें, तो वह दिन दूर नहीं जब यह देश सोने की चिड़िया की ख्याति को पुनः प्राप्त कर पायेगा। आपको जानकर यह आश्चर्य होगा कि यह कृति इसी वर्ष पूज्य आचार्य श्री विद्यासागरजी महाराज व संघ के देखने, पढ़ने में आयी जबकि इसमें उल्लेखित विषयों को, आचार्य श्री विगत २५ वर्षों से प्रमुखता से प्रवचन में दे रहे हैं।

 

भूमिका

 

पूज्य क्षुल्लक श्री १०५ ज्ञानभूषणजी महाराज ने ‘पवित्र मानव जीवन’ काव्य लिखकर समाज का भारी कल्याण किया है। हम सुखी किस प्रकार हों, सामाजिक नाते से हमारा व्यवहार एक दूसरे से कैसे हो, हमारा आहार व्यवहार क्या हो ? हम किस प्रकार स्वस्थ रहें ? सामाजिक आवश्यकताओं को किस प्रकार पूरा किया जा सके? श्रमजीवी तथा पूँजीवादी व्यवस्था का समाज पर क्या प्रभाव होता है और समाज का किस प्रकार शोषण किया जाता है, इस ग्रन्थ में विस्तार पूर्वक किया गया है। गृहस्थधर्म के बारे में विवेचन करते हुए श्री क्षुल्लकजी लिखते हैं -

 

‘‘प्रशस्यता सम्पादक नर हो, मुदिर और नारी शम्पा।

जहाँ विश्व के लिये स्फुरित होती हो दिल में अनुकम्पा॥”

 

जो व्यक्ति आज भी महिलाओं को समान अधिकार देने के विरुद्ध हैं, उनकी ओर संकेत करते हुए लिखते हैं-

 

महिलाओं को आज भले ही व्यर्थ बताकर हम कोशे।

नहीं किसी भी बात में रही वे हैं पीछे मरदों से॥

जहाँ कुमारिल बातचीत में हार गया था शंकर से।

तो उसकी औरत ने आकर पुनः निरुत्तर किया उसे॥

 

इसके अतिरिक्त माता-पिता का बच्चों के प्रति कर्तव्य, पुरातनकालीन तथा वर्तमान शिक्षाप्रणाली का तुलनात्मक विवेचन तथा गृहस्थाश्रम की मर्यादाओं पर बड़े सुन्दर और अनोखे ढंग से प्रकाश डाला गया है। यदि हम यों कहें कि भारतीय संस्कृति तथा आम्नाय के महान् ग्रन्थों के सार को सरल और सुबोध काव्य में रचकर समाज का मार्गदर्शन किया है तो इसमें कोई अत्युक्ति नहीं होगी। हम आशा करते हैं कि इस ग्रन्थ का अध्ययन करके पाठक जहाँ अपना जीवन सफल करेंगे, वहाँ समाज को सुखी बनाने के लिये इसका अधिक से अधिक प्रचार करेंगे।

 

देवकुमार जैन

सम्पादक - ‘मातृभूमि’ हिसार

प्रथम संस्करण से साभार सन् १९५६ (वि. सं. २०१३)

6 Comments


Recommended Comments

बहुत खूब ,,,  बहुत ज्ञानवर्धन करा रहे हैं आप लोग,,। धन्यवाद ।।।

Link to comment

स्वाध्याय बहुत अच्छा है मगर हमे बारबर लींक बदलनी पड रही कलका बहुत अच्छा था

 

Link to comment

पवित्र मानव जीवन प्रतियोगिता---

यह प्रतियोगिता बहुत सरल,अच्छी,और मानव जीवन कैसे जिये ये बतलाने वाली है.मानव जीवन से पवित्र मानव जीवन कैसे बनाये?अहिंसा,गौ सेवा,खेती ही स्वर्ग संपत्ती,निरौगी कैसे रहे? भोजन के नियम आदि की बहुत सरल,काव्य मे जानकारी मिली है.इस प्रतियोगिता से हम बहुत कुछ सीख पाये है.इसीलिये आपको और अर्थात् आचार्यश्री जी को बहुत बहुत धन्यवाद.ज्ञानदान ही सर्वश्रेष्ठ दान है जिसके द्वारा अनेक पिढियाँ सुसंस्कारित होती है."नमोस्तु आचार्यश्री" जयजिनेन्द्र  !!  

Link to comment

Create an account or sign in to comment

You need to be a member in order to leave a comment

Create an account

Sign up for a new account in our community. It's easy!

Register a new account

Sign in

Already have an account? Sign in here.

Sign In Now
  • बने सदस्य वेबसाइट के

    इस वेबसाइट के निशुल्क सदस्य आप गूगल, फेसबुक से लॉग इन कर बन सकते हैं 

    आचार्य श्री विद्यासागर मोबाइल एप्प डाउनलोड करें |

    डाउनलोड करने ले लिए यह लिंक खोले https://vidyasagar.guru/app/ 

     

     

×
×
  • Create New...