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नव आचार्य श्री समय सागर जी को करें भावंजली अर्पित ×
अंतरराष्ट्रीय मूकमाटी प्रश्न प्रतियोगिता 1 से 5 जून 2024 ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • ज्ञानार्जन में झिझक कैसी

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    एक बार मैं आहार जी क्षेत्र में ग्रीष्मकाल के समय बाबूलाल आहार वालों (दरबारीलाल कोठिया बीना वाले के शिष्य) से अष्टसहस्री का अध्ययन कर रही थी। मेरी प्रवृत्ति ही ऐसी रही कि जो जब कभी चाहे, ज्योतिष का विद्वान मिले, चाहे न्यायशास्त्र का, सिद्धद्वान्त का, वैद्य-आयुर्वेद का, संस्कृत का, किसी भी विधा का जानकार हो, मैं उनकी विद्या हासिल करने की हमेशा कोशिश करती रही।

     

    ऐसी प्रवृत्ति को देखकर एक ब्रह्मचारिणी बहिन को देखा नहीं गया। उसने जाकर उन आर्यिका जी को कहा, जो इसको अच्छा नहीं मानती थी। एक बार बहुत सारी आर्यिकायें आचार्य श्री के पास बैठकर चर्चा कर रही थीं कि आर्यिका बनकर असंयमी गृहस्थ पण्डित से अध्ययन नहीं करना चाहिये। इसमें रोक लगाना चाहिये। आचार्य श्री बोले- कौन है जो अध्ययन करता है ? सभी आर्थिकायें बोली- हम नहीं करते, हम नहीं करते। मेरी तरफ सभी देख रही थीं। नाम नहीं ले पा रही थीं। मैं इस बात को समझ रही थी, कि यह मेरी शिकायत चल रही है। मैंने आचार्य श्री से कहा- यह बात अध्ययन सम्बन्धी मुझे गले नहीं उतरती। आचार्य श्री मुस्कुराते हुये नासाग्रदूष्टि करके बैठे थे। फिर मेरी तरफ निगाह करके कहते हैं- अच्छा यह बात तुम्हें गले नहीं उतरती। अच्छा ऐसा करना, जब तुम्हें यह बात गले उतर जाये, तब छोड़ देना।

     

    मैं सुनकर खुश हो गई। शिकायत करने वालों ने शिकायत करके खुशी मना लीं। मुझ पर गुरुकृपा बरस गई। मेरी सोच को सम्बल मिला। अगर इन विद्वानों का ज्ञान नहीं लेंगे तो इनका ज्ञान समाधिस्थ होने पर इनके साथ चला जायेगा। वर्षों का अनुभव है, अगर इनसे अध्ययन कर लेंगे तो परम्परा चलाने में ज्ञान कारण बन जायेगा। भले व्यक्ति असंयमी हो, ज्ञान तो उसका पूज्य है, जिनवाणी का है, जो पढ़ाने वाला है, वह स्वयं स्वीकार कर रहा है कि मैं व्रती नहीं हूँ। वह बहुमान के साथ ज्ञान दे रहा है। इसमें कौन सा हर्ज ? न्यायशास्त्र आदि विषयों का अध्ययन करने से ज्ञान की महिमा समझ में आयेगी। और दूसरों को भी महिमा बताने में कारण बन सकेगी।

     

    अनुभवी आचार्य श्री मेरी मन की बातों को शायद समझ रहे थे, इसीलिए मुझे कुछ नहीं कहा। मैंने बोला- छोड़ दूंगी, लेकिन अभी तक नहीं छोड़ पायी।


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