Jump to content
प्रथम धारा मूल संस्कार विधि : जबलपुर 22 सितंबर 2024 ×
मेरे गुरुवर... आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
  • चंदोवा : विधि नहीं, विवेक

       (0 reviews)

    एक बार आचार्य श्री का दर्शन मुझे शाहपुर में हुआ। जब भाग्योदय का शिलान्यास सागर में हुआ था। मैंने आचार्य श्री से कहामुझे अकारण जब कभी बहुत अन्तराय आते हैं। कभी सब्जी में मकड़ी, तो कभी छिपकली के अण्ड़े ऊपर से गिरते, तो कभी छिपकली गिर जाती, चिड़ियाँ पंखे पर बैठकर बीट कर देती हैं। तो कभी चीटियाँ ऊपर से गिरती हैं। ऐसे बहुत अन्तराय होते हैं। स्वप्न में मुझसे किसी ने कहा कि अगर तुम चंदोवा के नीचे बैठकर आहार लेने लगोगी तो अन्तराय नहीं आयेंगे। यह सुनकर आचार्यश्री बोले-लेने लगोचदोवा में। कुछ देर बाद मैंने आचार्य श्री से कहा- आचार्य श्री, चंदोवा की परम्परा क्यों समाप्त हो रही है ? अगर आप कहें तो श्रावक चंदोवा लगाकर आहार देने लग जायेंगे।

     

    उन्होंने सहज मुस्कुराते हुये कहा- देखो, मैं आचार्य हूँ, बड़े-बड़े मंचों पर यह बात मेरे मुख से अच्छी नहीं लगती। में क्षेत्रों पर रहता हूँ, मेरे मुख से सिद्धान्तों की बातें अच्छी लगती हैं। तुम महिलाओं के बीच रहती हो, चंदोवा के बारे में कहकर संस्कारित किया करो।

     

    आचार्य श्री के मुख से सुनकर लगा कि वास्तव में आचार्य श्री श्रावकाचार के बारे में विवेकपूर्ण बातें कब तक सुनाते रहेंगे। यह तो श्रावक का विवेक है। साधु के अनकहे ही चदोवा बाँधकर आहार देना चाहिए। पक्का मकान कहकर टालना नहीं चाहिये। पक्के हों या कच्चे, सभी में मकड़ी के जाले, मकड़ी, छिपकली आदि होती हैं। यह कहना नहीं, करना ही श्रावक का धर्म है। गुरु से आज्ञा पाकर मैं चंदोवा में आहार

    लेने लगी, अन्तराय समाप्त हो गये। 


    User Feedback

    Create an account or sign in to leave a review

    You need to be a member in order to leave a review

    Create an account

    Sign up for a new account in our community. It's easy!

    Register a new account

    Sign in

    Already have an account? Sign in here.

    Sign In Now

    There are no reviews to display.


×
×
  • Create New...