एक दिन कुण्डलपुर के हाथी वाले मन्दिर में हम सब क्षुल्लक जी के पास प्रतिक्रमण करने बैठे थे। छोटे-छोटे दो बच्चे आये। एक पत्थर पर दूसरा पत्थर पटक कर पुकार रहे थे- मम्मी पापा, मम्मी पापा। ऐसा सुनकर हम सबको हँसी आ गई। सब हँस ही रहे थे कि उसी समय आचार्यभक्ति का समय हो गया था। सभी आचार्यश्री के पास पहुँचे। हँसी तो रुक नहीं रही थी। जैसे-तैसे रोकी। सिद्धभक्ति का कायोत्सर्ग किया ही था कि हँसी फिर शुरु। पूरी भक्ति में एक-दूसरे को हँसता देखकर हम सभी हँसते रहे। भक्ति पूर्ण हुई। आचार्यश्री बोले- तुम लोग क्यों हँस रहे हो ? क्या बात हो गयी ? कहते-कहते वे भी मन्द-मन्द हँसने लगे। अन्त में कहते हैं- गम्भीरता रखा करो। हँसना अच्छा नहीं। बताओ क्यों हँस रहे हो ? सभी की तरफ आचार्य श्री ने देखा। सभी चुप। आचार्यश्री कहते हैंकलचौके में कोई भी दूध नहीं लेगा। यह इस हँसी का प्रायश्चित था।